देखें स्क्रीनशॉट-

मूल ट्वीट-
https://twitter.com/DainikBhaskar/status/1667218214076710919?t=YUQHEj79sEyoJqVrsmuR6A&s=08
Saurabh Sinha-
असली पत्रकारिता तो आज भी स्ट्रिंगर्स के ही भरोसे है! जिन्हें नहीं पता उनके लिए – टीवी और अखबारों में दो तरफ के लोग रिपोर्टिंग करते हैं। एक जो कंपनी के इम्प्लॉई होते हैं जिनको सैलरी मिलती है। और दूसरे होते हैं स्टिंगर। जिन्हें प्रति ख़बर के हिसाब से पैसे मिलते हैं। उनको न तो तनख्वाह मिलती और न कोई और सुविधा। ये जिला/प्रखंड स्तर पर होते हैं। संस्थान को उनसे ख़बर के अलावा कोई संबंध नहीं होता। वो भी संस्थान की सुविधा से। मतलब स्ट्रिंगर के द्वारा भेजी गई ख़बर संस्थान अपनी जरूरत और सहूलियत से लेता है। ख़बर की गिनती के मुताबिक महीने दो महीने बाद उनका भुगतान होता है। यह रकम बहुत छोटी होती है। ( इसीलिए कई बार इनमें से कुछ लोग घर चलाने के लिए बेईमानी करते हैं। )
दूर दराज से आम – जनता से जुड़ी ख़बरें इन्हीं स्ट्रिंगर्स से आती हैं। क्योंकि देश और राज्य की राजधानी के पत्रकार तो राजनीतिक खबरों में ही व्यस्त रहते हैं!
स्ट्रिंगर जब कभी किसी ख़बर के लिए जाते हैं, अपने साथ अक्सर सहयोगी लेकर चलते हैं। क्योंकि कई बार कैमरा इत्यादि पकड़ने के लिए जरूरत होती है। किसी विवाद की स्थिति में संस्थान बहुत आसानी से उस स्ट्रिंगर से किनारा कर लेता है।
(इस पोस्ट का संदर्भ समझने के लिए सोशल मीडिया पर दैनिक भास्कर के स्ट्रिंगर से जुड़े विवाद को जानना जरूरी है )