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सुख-दुख

भाजपा की वृंदावन कार्यसमिति में पत्रकारों को परोसे गए कीड़े

लाल घेरे में दिख रहे कीड़े

वृंदावन में आयोजित हुई प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति लखनऊ के पत्रकारों के लिए हाहाकारी साबित हुई. पत्रकारों को खाने में कीड़े परोसे गए तो पीने के पानी तक के लिए उन्‍हें यहां से वहां चक्‍कर लगाना पड़ा. रही सही कसर बिजली ने पूरी कर दी. मीडिया प्रभारी की नेतागिरी करने का शौक इतना भारी पड़ा की अमूमन संयम रखने वाले वरिष्‍ठ पत्रकार भी अपने-अपने सामान बांधकर लखनऊ वापस कूच करने को तैयार हो गए. प्रदेश अध्‍यक्ष डा. लक्ष्‍मीकांत बाजपेयी ने किसी तरह हाथ-पैर जोड़कर वरिष्‍ठ पत्रकारों को अपना फैसला वापस लेने को बाध्‍य किया.

लाल घेरे में दिख रहे कीड़े

वृंदावन में प्रदेश भाजपा की दो दिवसीय कार्यसमिति का आयोजन किया गया था. इसमें लखनऊ से कवरेज करने के लिए पत्रकारों को वृंदावन ले जाया गया था. इसमें दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्‍तान, यूएनआई समेत बड़े मीडिया संस्‍थानों और एजेंसियों के पत्रकार शामिल थे. भाजपा के मीडिया सेल की आपसी राजनीति में एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्‍कर में बेचारे पत्रकार ही पिस गए. पत्रकारों को विवेक विहार के जिस आश्रम में रोका गया, वहां की हालत ‘ऊंची दुकान, फीकी पकवान’ साबित हुई.

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आश्रम के कमरों की स्थिति तो ठीक थी, लेकिन किसी में एसी काम नहीं कर रहा था तो किसी में टीवी नहीं चल रहा था. फिर भी पत्रकार जिस कवरेज के उद्देश्‍य आए थे, उसे सब कुछ भुलाकर पूरा कर रहे थे. लेकिन दिक्‍कत तब शुरू हुई, जब मीडिया प्रभारी मनीष शुक्‍ला अपने मूल काम से इतर अपनी नेतागिरी चमकाने के चक्‍कर में पत्रकारों को उनके हाल पर छोड़कर कार्यक्रम स्‍थल पर जम गए. इधर, आश्रम के आसपास नेट के नाम करने से खबरों को भेजने को लेकर पत्रकार परेशान थे. उस पर कोढ़ की खाज यह हुई कि पहले बिजली कटी, फिर आश्रम का इनवर्टर की व्‍यवस्‍था भी ध्‍वस्‍त हो गई.

बिजली के गायब होने के चलते पत्रकारों के लैपटॉप भी जवाब देने लगे. कमरों के भीतर उमस तथा गर्मी ने उन्‍हें और परेशान कर दिया. गर्मी से बेहाल पत्रकार जब मुंह-हाथ धोने बाथरूम की तरफ गए तो पता चला कि वहां पानी ही नहीं आ रहा है. पीने के लिए आश्रम के कमरों में पानी की कोई व्‍यवस्‍था नहीं थी. पत्रकार बेहतर खबर भेजने की बजाय जैसे तैसे अनमने ढंग से अपनी खबरों को भेजकर अपनी नौकरी पूरी की. सबसे ज्‍यादा परेशानी बड़े अखबारों के पत्रकारों को हुई, जिन्‍हें एक दूसरे से बेहतर खबर भेजकर कंप्‍टीशन में पहले नंबर पर आना था. रोते-गाते सबने किसी ना किसी तरह अपनी खबर भेजी.

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इसके बाद जब वे खाने को पहुंचे तो वहां भी हालात ऐसे ही थे. आश्रम की व्‍यवस्‍था थी, लिहाजा बिना लसहुन-प्‍याज का जो मिला पत्रकार खाने लगे. पर अति तब हो गई, जब खाने में कीड़े मिलने लगे. चावल और अन्‍य सामान खत्‍म हो गया. आमतौर पर कम बोलने व नाराज ना होने वाले नवभारत टाइम्‍स के संवाददाता प्रेमशंकर मिश्र भी अव्‍यवस्‍था से नाराज होकर एक कर्मचारी पर अपनी भड़ास निकाली. जब इंडियन एक्‍सप्रेस के पत्रकार लालमणि वर्मा खाने बैठे तो उनके रायता में कई कीड़े-पंतगों ने आत्‍महत्‍या कर रखी थी. लालमणि बिना खाए टेबल से उठ गए. किसी तरह खाने पीने का कार्यक्रम निपटा.

खाने में कीड़ा दिखा रहे पत्रकार लालमणि वर्मा

भन्‍नाए पत्रकार जब अपने-अपने कमरों में पहुंचे तो लाइट ही चली गई. थोड़ी देर में इनवर्टर भी चें चीं करते जवाब दे गया. गर्मी-उसम से बेहाल पत्रकार आश्रम के कमरों से बाहर सड़क पर आकर व्‍यवस्‍था की ऐसी-तैसी करते हुए कोसने लगे. किसी ने प्रदेश अध्‍यक्ष डा. लक्ष्‍मीकांत बाजपेयी को फोन मिलाकर इसकी जानकारी दी तो मीडिया प्रभारी समेत कुछ नेता सक्रिय हुए. घंटों सक्रियता के बाद भी कोई हल नहीं निकला. बंदर की तरह इस डाल से उस डाल पर कूदते हुए यह दिखाने का प्रयास होता रहा कि उनकी मेहनत में कहीं कोई कमी नहीं है. बड़ी ईमानदारी से भाजपा के मीडिया प्रभारी ने पत्रकारों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया था.

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शायद कुछ लोगों से उनकी पुरानी खुन्‍नस और बदला भी पूरा हो चुका था. खैर, रात एक बजे जब बिजली आई तो पत्रकार बंधु अपने कमरों में पहुंचे. सोने का प्रयास कर ही रहे थे कि आधा घंटे बाद बिजली फिर चली गई. थके हारे पत्रकार कुनमुनाते हुए उमस में ही सो गए. सुबह जब कवरेज के लिए निकलने की तैयारी होने लगी तो पता चला कि किसी कमरे में पानी ही नहीं आ रहा है. और इस तरह की व्‍यवस्‍था वरिष्‍ठ-कनिष्‍ठ सभी तरह के पत्रकारों के साथ हो रही थी. पहली बार लगा कि पत्रकारों के ‘अच्‍छे दिन’ जा चुके हैं भाजपा में. रासलीला करने वाले कान्‍हा की पावन धरती पर मीडिया प्रभारी पार्टी की ‘नाशलीला’ कराने पर तुले हुए थे.

अमूमन अपने काम से काम रखने वाले अमर उजाला के वरिष्‍ठ पत्रकार अखिलेश बाजपेयी भी इस व्‍यवस्‍था से नाराज हो गए. उनके नेतृत्‍व में कई वरिष्‍ठ पत्रकारों ने वृंदावन से रूखसत होने का निर्णय ले लिया. बैग पैक करके सभी वरिष्‍ठ पत्रकार रिसेप्‍शन पर आ गए. किसी ने पत्रकारों के नाराज होने की जानकारी डा. लक्ष्‍मीकांत बाजपेयी को दी तो वे भागे भागे वहां पहुंचे तथा तत्‍काल स्‍थानीय नेताओं से जनरेटर तथा पानी के टैंकर की व्‍यवस्‍था करने के निर्देश दिए. पत्रकारों के हाथ-पैर जोड़कर नाराजगी दूर कराई.

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जनरेटर की व्‍यवस्‍था तो हो गई लेकिन पानी की व्‍यवस्‍था को लेकर कई पत्रकार जूझते रहे. हिंदुस्‍तान के वरिष्‍ठ पत्रकार राजीव बाजपेयी भी नहाने-धोने के पानी को लेकर ऊपर नीचे करते रहे. दिन भर यही स्थिति बनी रही. पत्रकार टॉयलेट जाने के लिए भी एक दूसरे के कमरे में पानी के बारे में पूछते रहे. कुछ लोगों ने तो रेगिस्‍तानी प्रदेशों की तरह आधे बाल्‍टी पानी से नहाकर स्‍थान धर्म को पूरा किया. भाजपा नेता कार्यक्रम स्‍थल पर अपने मस्‍त भोजन पेलते रहे, लेकिन पत्रकारों को ‘देख पराई चूपड़ी मत ललचाओ जी’ की तर्ज पर कीड़ायुक्‍त भोजन प्रदान किया. इस वृंदावन में ना जाने कितने शाकाहारी पत्रकार कीड़े खाकर मांसाहारी बने, भगवान ही जाने.

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