Prakash K Ray : कोरोना वायरस का खेल खुलने लगा है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट कर पूछा है कि अमेरिका अपने यहाँ इस बीमारी के फैलने से जुड़ी सूचनाएँ जारी करे. कल अमेरिका के रोगों के नियंत्रण व रोकथाम केंद्रों के निदेशक ने कांग्रेस की सुनवाई में माना है कि इनफ़्लुएंज़ा से मरनेवाले कुछ रोगियों में मरणोपरांत कोविड-19 का संक्रमण पाया गया था.
इसका एक मतलब यह है कि बहुत पहले यह वायरस अमेरिका में पैदा हुआ या पैदा किया गया तथा वहाँ से यह चीन (शायद ईरान भी) पहुँचा या पहुँचाया गया. हम जैसे कई लोग पहले दिन से कह रहे हैं कि यह एक हाईब्रिड वार/बायोलॉजिकल वारफ़ेयर का मामला हो सकता है. इस बारे में वैज्ञानिक तथ्यों के साथ अनेक क़ायदे के लेख लिखे जा चुके हैं.
संदेह है कि पिछले साल चीन में किसी सैन्य आयोजन में गए अमेरिकी सैनिक इस वायरस को ले गए हों. बहरहाल, समूची दुनिया को अमेरिका पर दबाव बनाना चाहिए कि वह सच बताए. हालाँकि उसका डीप स्टेट इतना ताक़तवर है कि प्रेज़िडेंट भी ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता.
ट्वीट देखें-
Vijender Masijeevi : देहात की बुढ़िया अब भी कोसने या गाली में “इन्फ्लूएंजा से मरेगा” का इस्तेमाल करती दिख जाती हैं- उनकी सामाजिक स्मृति का सन्दर्भ 1918 है, यह वह साल था जब पश्चिम का इन्फ्लुएंजा बंदरगाह के रास्ते पहले बम्बई फिर मद्रास और अन्य शहरों फिर पूरे देश मे फैला… पहले केवल फ्लू के रूप में इसने सिर्फ वृद्ध और कमजोरों को मारा लेकिन जब रिलैप्स हुआ तो लाखों स्वस्थ युवा भी मारे गए।
कुल मिलाकर भारत दुनिया मे इसका सबसे बड़ा शिकार बना। अर्थव्यवस्था की इसने ऐसी कमर तोड़ी कि वह विचित्र स्थिति पैदा हुई जिसमें जीडीपी में भयानक गिरावट के साथ साथ ऊंची इन्फ्लेशन देखी गई… यानी अकाल।
निराला ने लिखा है कि गंगा तट पर लाशों का ढेर लग गया लेकिन जलाने के लकड़ी नहीं थी..लाशें सड़ने लगीं।
100 साल में हमने बस ये किया है कि बजाए कोई सबक लेने के, इसमें सामाजिक नफरत का ज़हर और जोड़ लिया है। कोरोना, अर्थव्यवस्था में भयानक मंदी और देश मे नफरत का कारोबार… ये हत्यारी तिकड़ी है।
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वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के रे और शिक्षक विजेंद्र मसिजीवी की एफबी वॉल से.