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सियासत

यादव सिंह ने 32 करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत वाली कंपनी 6 करोड़ रुपए से भी कम दाम में क्रिकेटर कपिल देव को क्यों बेच दी?

घोटाले के आरोप में जेल में बंद नोएडा विकास प्राधिकरण के पूर्व चीफ इंजीनियर से जुड़े एक मामले में अहम खुलासा हुआ है। एक न्यूज चैनल ने विशेष रिपोर्ट के जरिए बताया कि यादव सिंह से पूर्व क्रिकेट कप्तान कपिल देव के संबंध हैं। खुलासा हुआ है कि कपिल देव ने यादव सिंह के ग्रुप की 32 करोड़ की कंपनी को औने-पौने दाम पर खरीदा। न्यूज चैनल ने दावा किया कि उसके पास तमाम दस्तावेज मौजूद हैं। यादव सिंह पर लगे आरोपों की जांच में यह बात सामने आई है। कपिल देव और उनकी पत्नी रोमी देव को यादव सिंह की सहयोगी कंपनी ने 32 करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत वाली कंपनी 6 करोड़ रुपए से भी कम कीमत में बेच दी।

<p>घोटाले के आरोप में जेल में बंद नोएडा विकास प्राधिकरण के पूर्व चीफ इंजीनियर से जुड़े एक मामले में अहम खुलासा हुआ है। एक न्यूज चैनल ने विशेष रिपोर्ट के जरिए बताया कि यादव सिंह से पूर्व क्रिकेट कप्तान कपिल देव के संबंध हैं। खुलासा हुआ है कि कपिल देव ने यादव सिंह के ग्रुप की 32 करोड़ की कंपनी को औने-पौने दाम पर खरीदा। न्यूज चैनल ने दावा किया कि उसके पास तमाम दस्तावेज मौजूद हैं। यादव सिंह पर लगे आरोपों की जांच में यह बात सामने आई है। कपिल देव और उनकी पत्नी रोमी देव को यादव सिंह की सहयोगी कंपनी ने 32 करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत वाली कंपनी 6 करोड़ रुपए से भी कम कीमत में बेच दी।</p>

घोटाले के आरोप में जेल में बंद नोएडा विकास प्राधिकरण के पूर्व चीफ इंजीनियर से जुड़े एक मामले में अहम खुलासा हुआ है। एक न्यूज चैनल ने विशेष रिपोर्ट के जरिए बताया कि यादव सिंह से पूर्व क्रिकेट कप्तान कपिल देव के संबंध हैं। खुलासा हुआ है कि कपिल देव ने यादव सिंह के ग्रुप की 32 करोड़ की कंपनी को औने-पौने दाम पर खरीदा। न्यूज चैनल ने दावा किया कि उसके पास तमाम दस्तावेज मौजूद हैं। यादव सिंह पर लगे आरोपों की जांच में यह बात सामने आई है। कपिल देव और उनकी पत्नी रोमी देव को यादव सिंह की सहयोगी कंपनी ने 32 करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत वाली कंपनी 6 करोड़ रुपए से भी कम कीमत में बेच दी।

जांच के दौरान आयकर विभाग को पता चला है कि यादव सिंह का पैसा तीन ग्रुप में लगा हुआ है। पहला ग्रुप यादव सिंह ग्रुप, जिसके मालिक खुद यादव सिंह और उनकी पत्नी कुसुमलता हैं। दूसरा ग्रुप मैकॉन्स ग्रुप, जिसके मालिक राजेंद्र मिनोचा, राजेश मिनोचा और उनकी पत्नी नम्रता मिनोचा हैं। तीसरा ग्रुप है मीनू क्रिएशंस जिसके मालिक अनिल पेशावरी और मीनाक्षी पेशावरी हैं। साल 2008 में जब यादव सिंह के करीबी राजेश मिनोचा और पत्नी नम्रता मिनोचा ने बिजनेसबे कॉरपोरेट पार्क्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी खरीदी। इसके बाद इस कंपनी ने नोएडा के सेक्टर 65 में चार करोड़ साढ़े चार लाख का एक प्लॉट खरीदा। साल 2012 में मिनोचा दंपति ने अपनी कंपनी के शेयर सुपर मैनेजमेंट एंड पोर्ट फोलियो और सिस्मका बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम कर दिए गए।

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आयकर विभाग को दिए बयान में खुद राजेश मिनोचा ने कहा कि है उसके परिवार के पास कुल दस कंपनियां है और जिन दो कंपनियों के नाम शेयर ट्रांसफर किए गए ये दोनों कंपनियां भी मिनोचा परिवार की ही हैं। इसके बाद कंपनी में कपिल देव की एंट्री हुई। इस बार मिनोचा दंपति ने शेयर चार लोगों के नाम पर ट्रांसफर कर दिए। पहला नाम कपिल देव जिन्हें 1,55,500 शेयर दिए गए। दूसरा नाम कपिल देव की पत्नी रोमीदेव, जिन्हें 51,500 शेयर दिए गए। इसके अलावा दीपराज सिंह सेठी को 1,03500 शेयर और देवेन्द्रजीत सिंह सेठी के नाम 10,3500 शेयर दिए गए।

दस्तावेजों के मुताबिक कंपनी के सबसे ज्यादा शेयर कपिल देव के पास गए जबकि सबसे कम शेयर उनकी पत्नी रोमी देव के पास गए लेकिन दोनों के शेयर मिला कर कंपनी के आधे शेयर कपिलदेव परिवार के पास थे और आधे सेठी फैमिली के पास दोनों परिवारों ने इसके लिए कुल पांच करोड 79 लाख 60 हजार रुपये की पेमेंट भी की। आयकर विभाग ने मामले में कपिल देव समेत कंपनी के चार शेयरधारकों के खिलाफ जांच के आदेश दिए है। इस पूरे मामले में चौंकाने वाली बात ये है कि कपिल देव और उनकी पत्नी ने जो शेयर खरीदे उसके लिए वास्तविक कीमत से आधे से भी कम कीमत चुकाई गई।

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आयकर विभाग ने कपिल देव समेत चारों शेयरधारकों के खिलाफ आयकर विभाग एक्ट की धारा 148 के तहत नोटिस जारी करने को कहा है और साथ ही ये भी कहा है कि इस सेक्शन में अन्य स्त्रोत से आई आय की भी जांच की जाए। चैनल के मुताबिक, कपिल देव ने कैमरे पर तो बात नहीं की लेकिन ऑफ द रिकॉर्ड कहा कि मैं यादव सिंह को नहीं जानता। यादव सिंह से ना मैंने कंपनी खरीदी और ना यादव सिंह को बेची। पैसे देने के अलावा कंपनी के ऊपर बैंक की देनदारी भी मैंने चुकाई। मैं कंपनी से इस्तीफा दे चुका हूं और अपने और अपनी पत्नी के हिस्से के शेयर भी बेच चुका हूं।

करोड़ों की संपत्ति के मामले में फंसे नोएडा अथॉरिटी के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह बुधवार को पूछताछ के बाद सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। अभी आगे भी उनसे पूछताछ जारी रहेगी। इससे पहले उनसे जुड़े असिस्टेंट प्रोजेक्ट इंजीनियर रमेंद्र को भी सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। अभी तक इस बहुचर्चित केस में यह दूसरी गिरफ्तारी हुई है। इससे पहले गिरफ्तार हुआ रमेंद्र सिंह को यादव सिंह के साथ भ्रष्टाचार में संलिप्त बताया जा रहा था। जानकारी के मुताबिक, वह सीधे यादव सिंह को रिपोर्ट किया करता था और वह एक डायरी तैयार किया करता था। जिसमें सभी कालेधन का ब्यौरा जैसे ठेकेदारों और बिल्डरों से मिलने वाली रिश्वत और उनके बंटवारे के ब्यौरा दर्ज किया जाता था।

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यादव सिंह के घर पर इनकम टैक्स विभाग ने छापा मारा था। छापेमारी में 2 किलो सोना, 100 करोड़ के हीरे, 10 करोड़ कैश के अलावा कई दस्तावेज मिले थे। जिसके बाद से यादव सिंह से पूछताछ शुरू हुई और अब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। गुरूवार को यादव सिंह को गाजियाबाद की स्पेशल सीबीआई अदालत में पेश किया गया।

अब तक 12 लाख रुपए सालाना की सैलरी पाने वाले यादव सिंह और उनका परिवार 323 करोड़ की चल-अचल संपत्ति का मालिक बन बैठा, लेकिन यूपी के हुक्मरान उन्हें प्रमोशन और क्लीनचिट देते रहे। मीडिया की सुर्खियों में यादव सिंह के 1000 करोड़ रुपए के राजा बन जाने की खबरें भी छपती रहीं, लेकिन सच पर्दे में छिपा रहा। नोएडा और यादव सिंह करीब करीब एक साथ पले और बढ़े। नोएडा यूपी का सबसे महंगा शहर बन गया और यादव सिंह पर लग गया यूपी का सबसे भ्रष्ट अधिकारी होने का दाग।

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58 साल के यादव सिंह की कहानी अब से 41 साल पहले शुरू हुई। तब नोएडा में  कंक्रीट की बिल्डिंगों की जगह हरे भरे मैदान नजर आया करते थे। सड़कें कम थीं और जो थीं वो अधूरी, पानी की निकासी के इंतजाम भी होने बाकी थे। ये बात 1976 की है, जब सरकार ने नोएडा अथॉरिटी का गठन किया था और एक नया शहर बसाने के लिए बेशुमार बेरोजगारों की भर्ती की मुहिम शुरू की। दूसरी तरफ आगरा के जाटव परिवार के पांच बेटों में एक 19 साल का युवक आने वाले कल की फिक्र में पढ़ाई कर रहा था। नोएडा में डिप्लोमाधारी इंजीनियरों की भी मांग थी और ऐसे में उसने भी डिप्लोमा का रास्ता चुना। नोएडा अथॉरिटी में नौकरी के लिए फॉर्म भर दिया। वह युवक था यादव सिंह। यादव सिंह ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और इसी डिप्लोमा ने उन्हें 1980 में नोएडा अथॉरिटी में नॉन गजेटेड जूनियर इंजीनियर की पहली नौकरी दिला दी।

1995 तक यादव सिंह को दो प्रमोशन मिल चुके थे यानी वो पहले जूनियर इंजीनियर से असिस्टेंट इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर से प्रोजेक्ट इंजीनियर बन चुके थे। यादव सिंह के बारे में कहा जाता है कि भले ही वो छोटे पदों पर काम कर रहे थे लेकिन उन्होंने राजनीतिक नेटवर्क बनाना शुरू कर दिया था। उसने मायावती के नोएडा के पैतृक घर में बिजली, पानी और पुताई का काम करवा कर मायावती से सम्पर्क बना लिया था।

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तब यादव सिंह नोएडा अथॉरिटी में ईएंडएम यानी इलेक्ट्रिसिटी और वॉटर विभाग में तैनात था। 1995 में मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं और नोएडा अथॉरिटी में यादव सिंह का दबदबा बढ़ने लगा। ये वही दौर था जब उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाई दिया। दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया कॉलेज में यादव सिंह ने बीई की डिग्री के लिए शाम की क्लास करना शुरू कर दिया और तीन साल में बीई की डिग्री ले ली। साल 2003 में मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और साल 2012-13 में पीएचडी भी कर ली थी। 1995 के बाद यादव सिंह को सीनियर प्रोजेक्ट इंजीनियर का पद मिला और फिर मायावती के साल 2002 में दोबारा सत्ता में आने के बाद उन्हें चीफ प्रोजेक्ट इंजीनियर बना दिया गया। इस पद पर रहते हुए अब उनके पास ज्यादा अधिकार आ गए थे।

मायावती की 2003 में सत्ता से विदाई हुई तो मुलायम सिंह सत्ता में आ गए, लेकिन यादव सिंह की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने समाजवादी पार्टी से भी रिश्ते बना लिए और लखनऊ की सत्ता के गलियारों में उनकी पहुंच बनी रही। आरोप ये भी लगा कि नोएडा से लेकर आगरा तक अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में यादव सिंह का दखल बढ़ गया था। यादव सिंह को राजनीतिक रिश्तों का फायदा भी मिला। यादव सिंह ने आगरा के अमृत विहार में एक बड़ा बंगला बनाया। यही नहीं ताजमहल से महज पांच किलोमीटर दूर एक और बंगला भी यादव सिंह की संपत्ति में जुड़ गया। नोएडा में भी वो सेक्टर 27 की कोठी छोड़कर सेक्टर 51 के पॉश बंगले में रहने लगे। ऐसी ढेरों सपत्तियां यादव सिंह के खाते में दर्ज हो रही थीं लेकिन किसी को खबर तक नहीं थी। एक तरफ यादव सिंह अकूत धन-दौलत जमा कर रहे थे वहीं वो अपनी पत्नी कुसुमलता को बीएसपी से चुनाव भी लड़वाना चाहते थे।

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फिरोजाबाद की रहने वाली अपनी पत्नी कुसुमलता को टिकट दिलवाने के लिए जाटव समुदाय के लिए काम करना भी शुरू किया गया। साल 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार दोबारा सत्ता में आई तो भ्रष्टाचार के आरोप में पहली बार यादव सिंह घिरे। उन्हें 13 जून 2012 को नोएडा के चीफ इंजीनियर के पद से सस्पेंड कर दिया गया। वहीं अखिलेश सरकार पर मामले की जांच सीबीआई से करवाने का दबाव पड़ा। अखिलेश सरकार ने सीबीआई जांच से इंकार कर दिया। सीबीसीआईडी की जांच 6 महीने तक चलती रही लेकिन रिपोर्ट नहीं आई करीब 50 दिनों के भीतर यानी 1 नवंबर 2013 को ही अखिलेश सरकार ने यादव सिंह को बहाल कर दिया।

यादव सिंह को ना सिर्फ बहाल किया गया बल्कि इस बार उन्हें नोएडा के साथ साथ ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे की जिम्मेदारी देने के लिए एक नया पद भी बनाया गया। ये पद इंजीनियर इन चीफ का था। लेकिन साल 2014 के नवंबर महीने में इनकम टैक्स विभाग ने सेक्टर 51 की कोठी समेत दिल्ली आगरा और नोएडा में 18 जगहों पर छापेमारी की। इसमें यादव सिंह के घर से 12 लाख रुपए की नगदी मिली। घर के बाहर खड़ी ऑडी गाड़ी से 10 करोड़ रुपए नगद मिले। करीब 2 करोड़ की कीमत के हीरे जड़े गहने भी मिले। कुल मिलाकर 35 फर्जी कंपनियों का खुलासा हुआ। नोएडा, आगरा, पीलीभीत, मथुरा और आगरा में प्लॉट और मकान के कागज मिले। एक दर्जन से ज्यादा लॉकरों की जानकारी भी मिली।

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जांच के दौरान जिन 35 कंपनियों की जानकारी मिली उनमें से 30 से ज्यादा कंपनियां सिर्फ कोलकाता के पते पर थीं। इनमें पत्नी कुसुमलता, यादव सिंह की दो बेटियों और बेटे सनी यादव के नाम पर भी फर्जी लेन-देन का खुलासा हुआ। अबतक करीब 323 करोड़ की संपत्ति का खुलासा हो चुका है। अब नोएडा के राजा कहलाने वाले यादव सिंह सीबीआई के चंगुल में फंस चुके है। यादव सिंह की काली कमाई को खपाने का काम करने वाली दो दर्जन से अधिक कंपनियों की पड़ताल में साक्ष्य जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। बेनामी कंपनियों में अधिकांश कोलकाता हेडक्वार्टर वाली कंपनियों की एक सूची भी ईडी के हाथ लगी है। अब इन कंपनियों का आधारभूत ढांचा सर्च किया जाना है। इन कंपनियों के कामकाज के साथ ही इनके यूपी में बनाए गए बेनामी ठिकानों का पता चलने के बाद साक्ष्य जुटाए जाने हैं।

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