पव्वा से शाम की शुरुआत होती थी फिर अद्धा, बोतल ख़त्म करने के बाद रॉकेट बन जाते थे!

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यशवंत सिंह-

इतना नियम से जीवन कभी नहीं जिया। रात नौ बजे भोजन। दस बजे मच्छरदानी के अंदर। बारह बजे तक नींद में। सुबह सात से आठ के बीच जाग जाना।

ये नया रूटीन पसंद आ रहा है। कभी कभी लगता है बूढ़ों वाली ज़िंदगी जीने लगा हूँ। एक एक गुजरते दिन के एक एक पल का जब एहसास हो तो समझिए होश पूर्वक सब चल रहा है।

ये सब दिक़्क़त तब से शुरू हुई है जबसे दारू छोड़ा हूँ। ससुरी ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी है। जैसे मरने के इंतज़ार में जिए जा रहे हों।

पहले तो पव्वा से शाम की शुरुआत होती थी फिर अद्धा, बोतल ख़त्म करने के बाद रॉकेट बन जाते थे। समय सुपरसोनिक गति से भागता था और हम ब्रह्माण्ड के कई चक्कर लगा कर क़ानून व्यवस्था नियंत्रण में रखते हुए सुबह के वक्त धरती पर लौटते थे और फिर दोपहर बाद तक आराम फ़रमाते थे।

अब लग रहा जैसे रिटायर कर दिया गया हूँ। ये जीना भी कोई जीना है लल्लू। ए गणपत चल दारू ला … 🙂

सुप्रभात भाइयों


Sawai singh – सब्र रखिए सर, इस जीवन शैली से भी डोपामाइन निकलेगा, अभी मात्रा कम है इसलिए पुरानी शैली की याद सता रही है.

Rita das- गार्डनिंग कीजिए… ये अच्छा नशा है… एक बोतल के पैसे से सुंदर सुंदर प्लांट्स लाइये और निहारिये… उसका बढ़ना… हंसना .. झूमना देखकर खुद प्रफुल्लित होइए.

Yashwant singh- Rita Das हाँ अब यही सब फूल पत्ती करना बचा है

Ajeet vikram singh- कुछ और हुनर /शौक़ पालिये जिसमे उससे भी ज़्यादा मौज़ हो एक बात को पकड़कर रोना भी कोई ज़िंदगी है?

Yashwant singh- ज़िंदगी को साक्षी भाव से जीते रहना अपने आप में बड़ा हुनर है, इसी का अभ्यास कर रहा हूँ … बाक़ी मदिरा का आह्वान तो लकड़बग्घों की आत्मा की शांति के लिए बीच बीच में करता रहता हूँ.

Girijesh Vashishtha- आप जब वातावरण को अनुभव करने लगें, मिट्टी की खुशबू, हवा की सुगंध तारों की छांव उस दिन असली जिंदगी जीनी शुरू की समझिए.

Ravish shukla- जिंदगी के साथ कुछ न कुछ प्रयोग करते रहते हैं।

Yashwant singh- ज़िंदगी ख़ुद ही ससुरी एक प्रयोग है… इसी के साथ खेला करते रहा जाए रवीश भाई

Dilip singh Rajpurohit- कितने दिन हो गए छोड़े हुए?

Yashwant singh- छह महीने … एक जनवरी से … बीच बीच में एक दो बार कहीं फँस जाने पर थर्टी एमएल से आगे नहीं बढ़ा।

Dilip singh Rajpurohit- गजब । अब हाथ भी मत लगाना सर,6 महीने बहुत होते है,इतने निकाल दिए मतलब जीवन भी निकाला जा सकता है ।

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One comment on “पव्वा से शाम की शुरुआत होती थी फिर अद्धा, बोतल ख़त्म करने के बाद रॉकेट बन जाते थे!”

  • सत्येंद्र says:

    शराब खुदा की नेमत है । उनकी बात छोड़िये जिन्हें अब तक अनुभव ही नही कि कमबख्त शराब पी क्यों जाती है ? छोड़ने की बात मत करिए नही तो ये दुनिया है ..आज कहेगी शराब छोड़ दो कल कहेगी किताब छोड़ दो फिर कहेगी घर छोड़ दो और फिर एक दिन कहेगी दुनिया छोड़ दो…

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