Mohd Asgar : जनभावना को देखकर फैसले होने लगे तो देखिए क्या नतीजा होगा…
ये शिक्षक उमा खुराना है। साल 2007 में लाइव इंडिया चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन किया था इन पर। आरोप लगाया कि ये महिला शिक्षक जैसे पेशे में होकर छात्राओं से जिस्मफरोशी करवाती है। चैनल ने लगातार खबरें कीं।
नतीजा ये हुआ कि दिल्ली के तुर्कमान गेट पर भीड़ ने इस टीचर को घेर लिया। कपड़े फाड़ दिए। मार-मारकर बुरा हाल कर दिया। मतलब चैनल ने ऐसा भड़काया कि भीड़ लिंचिंग करने को तैयार हो गई। जैसे आज हो जा रही है। जैसे आज एनकाउंटर को सही ठहरा रही है।
खबरों के जरिए ऐसा जहर इस टीचर के खिलाफ फैलाया गया कि देश के लोगों की निगाह में ये शिक्षक ऐसी गुनाहगार थी जिसका फैसला लोग अपने तरीके से कर लेना चाहते थे। आज भी आरोपी का करना चाहते हैं। जिंदा जलाना चाहते हैं। पीट पीटकर मार देना चाहते हैं। सिर्फ आरोप लगने पर ही, जबकि पता भी नहीं असली दोषी वही हैं या नहीं। तो इस टीचर के साथ रिपोर्टर ने ऐसा जुल्म किया था कि शोहरत हासिल करने के लिए फर्जी स्टिंग ऑपरेशन कर डाला। उस वक्त चैनल के प्रमुख वही सुधीर चौधरी थे, जो आज एक चैनल में डीएनए करते हैं।
पुलिस की गलती ये थी कि बिना जांचे के एफआईआर दर्ज कर ली थी। अरेस्ट किया गया, मगर जब क्राइम ब्रांच ने जांच की तो पता चला कि वो तो किसी कारोबारी ने अपने बिजनेस के लिए टीचर को फंसवाया था। रिपोर्टर से फर्जी स्टिंग कराया था। रिपोर्टर ने इसलिए कर दिया शोहरत मिलेगी। पुलिस एनकाउंटर इसलिए कर देती है कि तरक्की मिलेगी। और आज तो मिठाई भी मिल रही है। पीठ भी थपथपाई जा रही है। फूल बरसाए जा रहे हैं।
मगर सोचिए अगर इस टीचर का एनकाउंटर कर दिया जाता तो कैसे एक बेगुनाह मार दी जाती…।
मगर सोचिए क्या मिला उस टीचर महिला को। खबरों में रुसवाई हुई। जो चैनल ने जनभावना तैयार की, उसकी वजह से कपड़े फटे। पिटाई मिली। जान किसी तरह बच गई। मगर फर्जी स्टिंग चलाने वाले चैनल के प्रमुख तरक्की करते गए।
एक महिला का सम्मान तार तार करने वाले पर आज लोग फख्र करते हैं। उसकी पत्रकारिता पर अंधा विश्वास करते हैं। जबकि समय समय पर पत्राकिरता को रुसवा करते रहे हैं। कभी नोट में चिप बताकर तो कभी जेएनयू स्टूडेंट्स को टुकड़े टुकड़े गैंग बताकर। उस वक्त बोल दिया कि पत्रकार ने धोखे में रखा, झूठ बोला। मान लीजिए एनकाउंटर में मारे गए लोग (सिर्फ इसी केस में नहीं अन्य एनकाउंटर में भी) निर्दोष मिले तो क्या जश्न मनाने वाले भी ये कहकर आजाद हो जाएंगे कि हमें पुलिस ने धोखे में रखा।
पत्रकार मोहम्मद असगर की एफबी वॉल से.