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सियासत

हमारे दौर के महान दार्शनिक गणेश गायतोंडे ने सही ही कहा है कि ये खेल बहुत बड़ा है!

Prakash K Ray

पहले पहले हवस इक-आध दुकाँ खोलती है
फिर तो बाज़ार के बाज़ार से लग जाते हैं

-अहमद फ़राज़


ख़बर है कि जीएसटी नेटवर्क में गड़बड़ी को ठीक नहीं कर पाने की वजह से इंफ़ोसिस और नंदन निलेकणि को सरकार ने नोटिस भेजा है. मामला पिछले महीने का है. निलेकणि समकालीन भारत के एक असाधारण कलाकार का नाम है. इस सदी में इस व्यक्ति से बड़ा खिलाड़ी कोई नहीं है. ऐसे में निलेकणि के जलवे के सामने कौन चोंच खोलने की हिम्मत करे!

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आधार के बारे में एक बात याद रहनी चाहिए कि इसमें मोदी सरकार या भाजपा की भूमिका बहुत कम रही है. जब नंदन नीलेकणि को मनमोहन सिंह की खिचड़ी सरकार ने आधार का कर्ता-धर्ता बनाया था, तो उनके कैबिनेट रैंक का आदेश पीएमओ के एक अदने से अधिकारी ने जारी किया था. मतलब एक आइएएस ने एक प्राइवेट कंपनी के सीईओ को कैबिनेट रैंक दे दिया. वह प्रपत्र सार्वजनिक है. और सुनिए, नीलेकणि के आधार सरगना बनाने का प्रपत्र व्यक्ति नीलेकणि को नहीं, इंफ़ोसिस के सीईओ नीलेकणि को संबोधित था.

आनंद और लीजिए, जीएसटी का सॉफ़्टवेयर इंफ़ोसिस ने बनाया है और जब यह बन रहा था, तो नीलेकणि वहाँ के लिए सीईओ खोजने के लिए वहीं थे. इस सॉफ़्ट्वेयर के बारे में सरकारी अधिकारियों और इंफ़ोसिस के बीच लगातार बयानबाज़ी होती रही है. डॉट्स ज्वाइन करें, और यह भी सोचें कि आधार पर कांग्रेस चुप क्यों रहती है.

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दो साल पहले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि यूपीय का आधार स्वैच्छिक था. यह पूरा सच नहीं था. कई जगह उसे अनिवार्य बनाया जाने लगा था. प्राधिकरण का बनाना ही एक बड़ा राजनीतिक घोटला था. नंदन निलेकणि को काँग्रेस की उमीदवारी भी मिली और वे 2014 के सबसे धनी उम्मीदवार थे. अभी तक कांग्रेस ने यह साफ़ नहीं किया है कि निलेकणि पार्टी में हैं या नहीं. अगर नहीं हैं, तो उन्होंने छोड़ा कब! सालों पहले सुनने में आया था कि मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने आधार बनवा लिया था, पर जब उन्हें जानकारी मिली कि कांग्रेस नेतृत्व ने ऐसा नहीं किया है, वे आधार विरोधी हो गए.

आपको याद होगा, 2014 में भाजपा ने आधार हटाने का वादा किया था. पर, सरकार बनते ही मोदी और नीलेकणि की एक बैठक हुई और पता नहीं, नीलेकणि ने क्या समझाया कि मोदी सरकार मनमोहन सरकार से भी दुगुनी गति से आधार को आगे बढ़ाने लगी. यह भी कहा जाना चाहिए कि कांग्रेस के भीतर एक नेता ने शुरू से ही इस प्रोजेक्ट को संदेह से देखा था और इसे बाधित करने की कोशिश की थी व आवंटन में भी कटौती की थी. पर, चिदंबरम कांग्रेस प्रमुख और डॉ सिंह को समझा न सके.

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सितंबर, 2017 में रिलायंस के मुकेश अंबानी ने इंडिया मोबाइल कांग्रेस में कहा था कि डेटा नया तेल है और इसे बाहर से आयात करने की ज़रूरत नहीं है. उसके अगले साल दावोस में प्रधानमंत्री मोदी ने इसे दुहराते हुए दुनिया को न्यौता दिया था कि आइए, हमारे यहाँ डेटा है. डॉ मनमोहन सिंह के बनाये नंदन निलेकणि के आधार प्राधिकरण के घोषणापत्र में डेटा को पानी कहा गया है. यह डेटा नया तेल हो, पानी हो, न हो, पर आमलोगों का तेल करने के लिए कई स्तरों पर बुरी और पूरी तरह से इस्तेमाल हो रहा है. अब हम नागरिक या मतदाता या उपभोक्ता नहीं, अल्गोरिद्म के नंबर हैं.

नियो-कॉन के मेगा एजेंट थॉमस फ़्रीडमैन की घनिष्ठता नंदन निलेकणि से भी ख़ूब है. उनकी किताब ‘The World Is Flat’ का शीर्षक निलेकणि के कथन पर ही आधारित है. निलेकणि ने कभी कहा था कि इस किताब ने उनके लिए बड़े अमेरिकी कारोबारियों के दरवाज़े खोल दिये. ख़ैर, जोड़ियाँ तो आसमान में बनती हैं. वक़्त मिले, तो बेलेन फ़र्नाडिज़ की शानदार किताब ‘The Imperial Messenger: Thomas Friedman at Work’ ज़रूर पढ़ें. इस ख़तरनाक आदमी पर एडवर्ड सईद, अब्दुला अल-अरियन और हामिद दबाशी के लेख भी महत्वपूर्ण हैं.

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हमारे दौर के महान दार्शनिक गणेश गायतोंडे ने सही ही कहा है कि ये खेल बहुत बड़ा है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के रे की एफबी वॉल से.

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