
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
योगी सरकार का दूसरा कार्यकाल चल रहा है और राज्य की हालत यह है कि बिना घूस दिए यहां एक भी सरकारी काम नहीं कराया जा सकता. पिछले कई महीनों से मैं कई बेहद छोटे छोटे कामों के लिए कुछ विभागों में गया. वहां कागजी कार्यवाही सारी पूरी कर दीं और जरूरी फीस आदि भी जमा कर दी लेकिन मजाल है कि किसी भी विभाग ने काम को एक इंच भी बढ़ जाने दिया हो.
व्यवस्था कहने को ऑनलाइन है.
मुख्यमंत्री की हेल्प लाइन और तमाम अन्य विभागों की हेल्प लाइन व अन्य ऑनलाइन पोर्टल आदि भी हैं, जिनके लिए दावा है कि इनसे जनता की समस्या सरकार सुलझाती है. लेकिन इनके काम करने का तरीका ही ऐसा है कि किसी की समस्या इससे सुलझ ही नहीं सकती… हां सरकारी भाषा में ये शिकायतें इन्हीं सिस्टम में ‘निस्तारित’ हो जाती हैं, भले ही शिकायतकर्ता के लिए समस्या जस की तस ही रहे.
दरअसल, जनता जिसकी कम्पलेंट करती है, उसकी जांच उसी के विभाग का कोई सीनियर करता है और चूंकि पूरा विभाग ही एक दूसरे को घूस के खेल में बचा रहा होता है तो शिकायत में कुछ टालमटोल या कई बार तो पूरा झूठा ही जवाब आ जाता है.
मेरे हर सरकारी काम में यही हुआ .
पिछले कई महीनों से कहां- कहां किस किस विभाग ने सताया, उसके लिए क्या क्या काम गिनाएं बड़ी लम्बी लिस्ट है.
अभी आजकल तो बिजली विभाग की ‘झटपट कनेक्शन योजना’ में झटपट कनेक्शन मिलने की आस लगा कर महीनों से परेशान हूं. जबकि बिजली विभाग का इंजिनियर घूस न मिलने पर मुझसे ऐसी व्यक्तिगत खुन्नस पाल चुका है कि मुख्यमंत्री की जनसुनवाई सुविधा में शिकायत में भी सफेद झूठ अपने जवाब में बोले जा रहा है और शासन उसकी ही बात आंख मूंद कर मान रहा है.
मेरी कोई सुनवाई ही नहीं हो रही है. मुझे पता है कि यूपी में इस समय पूरा तंत्र ही ऐसे भयंकर भ्रष्टाचार का शिकार है कि उसका कोई कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता.
उस नए कनेक्शन के अलावा भी उसने मेरे दो मामले खुलेआम तमाम शिकायतों के बावजूद अटका रखे हैं. मुझे तो लगता है कि झटपट योजना को अनंत काल या कछुआ योजना कहा जाए और इन्हीं कारणों से अगर उत्तर प्रदेश को पुरानी कहावत के आधार पर अंधेर नगरी कहा जाए तो कहीं से अतिशयोक्ति नहीं होगी.
कहीं सोर्स सिफारिश लगाकर या घूस देकर मैं अपने इन कामों को देर सबेर अगर करा भी लूंगा तो भी यही सोच सोच कर कुढ़ता रहूंगा कि आखिर यूपी से कब भ्रष्टाचार दूर होगा?
इसी योगी सरकार के पहले कार्यकाल की बात है, जब मैं एक विभाग से NOC लेने के लिए सारे कागज देने व ऑनलाइन प्रक्रिया से फीस आदि जमा करने के बावजूद महीनों तक NOC नहीं ले पाया तो उस इंजिनियर के पास खुद गया , जिसने मेरी फाइल रोक रखी थी.
वह देश के बेहद सम्मानित इंजीनियरिंग संस्थान से पढ़ा था , जो मुझे बाद में पता चला. उसकी बात से वह महा घूसखोर और उजड्ड ही लगा. अपने केबिन में बिना किसी भय के उसने मुझसे सीधे मोटी रकम मांगी और तभी NOC देने को कहा.
मैंने उससे वहां से जाते समय कहा कि भाई तुम्हारी शिक्षा बेकार चली गई. इतने नामी संस्थान से पढ़कर नौकरी पाने के बाद यहां तुम किसी सड़क छाप मवाली की तरह वसूली कर रहे हो? मेरी बात सुनकर भी वह गुस्सा नहीं हुआ बल्कि बड़ी ढिठाई से हंसता हुआ बोला कि आप चाहे पत्रकार हो या कुछ भी, सरकार में बहुत ऊपर तक पहुंच है मेरी . बिना घूस के तो यहां आपका काम होगा नहीं. फिर चाहे आप जितना मर्जी जोर लगा लो.
वाकई वह जब तक सीट पर रहा, मेरा काम हुआ ही नहीं. महीनों बाद उसके उस सीट से जाने के बाद बहुत ऊपर से सोर्स लगाया तो कहीं जाकर मुझे NOC मिल पाई. इन्हीं कारणों से यूपी में बड़ी कम्पनियां निवेश के लिए नहीं आती हैं और न ही यहां का कोई पढ़ा लिखा मेधावी इंसान यहां रुककर नौकरी- व्यापार करना चाहता है.
यहां तो उसी का गुजारा है, जो खुद भ्रष्ट हो, गुंडा, दबंग, नेता, वकील या दलाल पत्रकार हो. इसीलिए यहां बहुतायत में नेता, वकील, पत्रकार आदि ही पाए जाते हैं.