अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
यूपी में का बा.. देर भी और अंधेर भी !!! उधर जौनपुर में यूपी में योगी आदित्यनाथ एक रैली में भ्रष्टाचारियों की सात पुश्तों से वसूली का दावा कर रहे हैं तो इधर उनकी नाक के ठीक नीचे राजधानी लखनऊ में ही मैं खुद भ्रष्टाचार को उस चरम पर पहुंचते देख रहा हूं, जहां मेरी समझ से इससे पहले वह किसी सरकार में नहीं पहुंचा।
लखनऊ में ही यह हाल है कि बिजली विभाग में नादरगंज पॉवर हाउस में तैनात एक अवर अभियंता के भ्रष्टाचार के खिलाफ मैंने जनसुनवाई ऐप के माध्यम से तीन अलग अलग मामलों में बेहद गंभीर शिकायतें दर्ज कराई हैं और तीनों शिकायतों को बिजली विभाग के उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से अधीक्षण अभियंता के यहां अन्मार्क कैटेगरी में डालकर लंबित कर दिया गया है।
फिर मैंने एक नई शिकायत संख्या 40015722071820 दर्ज कराकर शासन को यह बताया कि किस तरह मामले को बड़े पैमाने पर की गई सांठगांठ से पहले अधिशासी अभियंता के यहां भेजा जाता है। फिर वहां से झूठी आख्या लगाकर निस्तारण कर दिया जाता है और जब मैं उस झूठी आख्या के खिलाफ बाकायदा सबूत पेश करके आपत्ति जताता हूं तो उसे वहां से अधीक्षण अभियंता के यहां भेजकर अनमार्क करके अनिश्चित काल के लिए लटका दिया जाता है।
मजे की बात देखिए कि इस शिकायत को भी अधिशासी अभियंता के यहां भेज दिया गया है ताकि यह भी इसी तरह लटकाई जा सके। अब सवाल यह है कि अधीक्षण अभियंता के यहां लटकी शिकायतों का जवाब किससे मांगा जाए?
जाहिर है, उनसे ऊपर बैठे अधिकारी और नेता इस समय यूपी में हर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने आंख- कान- नाक बंद करके बैठे हैं इसलिए नीचे के अधिकारी कर्मचारी बेखौफ होकर योगी सरकार में जनता के साथ मनमाना व्यवहार और खुलेआम भ्रष्टाचार कर रहे हैं।
तीनों शिकायतों में से मेरी एक शिकायत यह है कि किस तरह अवर अभियंता ने हमारे खर्च पर लगे ट्रांसफार्मर को भी महज एक साल के भीतर बिना मुझसे पूछे/ बताए चोरी- छिपे उतार लिया। यानी यह एक तरह की ट्रांसफार्मर चोरी हुई, जो कि एक गंभीर अपराध है।
इस पर मुझे अभी तक विभाग ने ट्रांसफार्मर वापस करना तो दूर यह तक नहीं बताया है कि आखिर किस नियम से उसे यह आजादी मिल जाती है कि किसी के पैसे से लगा ट्रांसफार्मर वह महज एक साल के भीतर ही उतार कर अपने पास रख ले और वह भी बिना कोई लिखित या मौखिक अनुमति/ जानकारी के?
एक और शिकायत है, जिसमें वही अवर अभियंता, जो चोरी से ट्रांसफार्मर उतार ले गया है, मुझे मेरे एक अन्य जगह लगे बिजली के अस्थाई कनेक्शन का फाइनल बिल महीनों से नहीं दे रहा था।
अभी पिछले महीने जिस दिन उसकी शिकायत जनसुनवाई में की, उस दिन उसने वहां बाकायदा लिखित में झूठी आख्या दे दी कि मीटर भी उतार लिया गया है और बिल भी दिया जा चुका है।
जैसा कि योगी राज में हो ही रहा है, वही हुआ और ऊपर बैठे अधिकारियों ने उसकी झूठी आख्या पर मेरी शिकायत का निस्तारण कर दिया।
फिर मैंने एक और शिकायत दर्ज कराई कि मीटर लगा हुआ है और चलते हुए मीटर का वीडियो बतौर सबूत मेरे पास है, जिसमें मीटर रीडिंग और डेट/ समय सब स्पष्ट देखा जा सकता है।
शिकायत ऑनलाइन होते ही उसी रात चोरी छिपे आकर अवर अभियंता ने मीटर उतरवाया। बैक डेट में एक महीने पीछे का बिल बनवाया लेकिन रीडिंग लगभग वही यानी वर्तमान की रखी, जो मेरे विडियो में दिख भी रही है।
यही नहीं, भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा देखिए कि उसने अपने झूठ को सच साबित करने के लिए बिल देरी से बनने के लिए मीटर एक महीना पहले ही उतारकर सरकारी लैब में भेजे जाने की लिखित आख्या दे दी।
लैब ने उसको यह झूठी रिपोर्ट कैसे दे दी, यह एक अलग ही और बड़े स्तर का भ्रष्टाचार है। जबकि मैं बार बार कह रहा हूं कि मेरे पास सबूत के तौर पर वीडियो है मगर योगी सरकार कहां भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कुछ सुनने वाली? इसलिए यह मामला भी अधीक्षण अभियंता के यहां अनमार्क करके लटका दिया गया।
अब तीसरा मामला भी सुन लीजिए। योगी सरकार का एक पोर्टल है, जिसका नाम झटपट है। इसमें भी चार महीने पहले मैंने मीटर के लिए आवेदन किया। वह भी दुर्भाग्य से उसी अवर अभियंता के कार्य क्षेत्र में है इसलिए उसने बहुत लटकाने और मेरे पर्सू करने पर लंबा चौड़ा खर्च का एस्टीमेट भेज दिया।
वह पैसा मैंने जमा कर दिया लेकिन गलती फिर वही की कि अवर अभियंता को घूस नहीं दी। नतीजा इसमें भी वही हुआ।
चार महीने बीतने के बावजूद अब स्टोर में सामान न होने और कब तक आएगा, इसकी जानकारी न होने का बहाना बनाकर इसे भी झटपट पोर्टल का मजाक बनाने के लिए छोड़ दिया गया है।
अब कौन भला योगी सरकार से यह पूछेगा कि जब राजधानी में आपके पास एक कनेक्शन देने के लिए सामान नहीं है , वह भी तब जब आप उस सामान का पैसा भी उपभोक्ता से पूरा महीनों पहले ही ले चुके हो तो राजधानी से दूर ऐसे लोगों को बिजली कैसे देंगे, जिनके पास सामान का पैसा नहीं है?
ऐसे प्रदेश में जहां एक भ्रष्ट अवर अभियंता राजधानी में ही रहकर मुख्यमंत्री और सारे उच्चाधिकारियों से खौफ न खाता हो , वहां कैसे विकास होगा या बाहर से व्यापार के नाम पर पूंजी निवेश होगा, यह तो योगी जी ही बेहतर जानते – समझते होंगे। हमारे जैसे आम लोगों के लिए तो इस वक्त यहां न तो कोई सरकार है और न ही कोई सिस्टम।
सात पुश्तों से वसूली कर पाना तो बहुत बड़ी बात है अगर योगी जी ऐसे बेलगाम अधिकारियों से जवाब तलब करने का कोई ईमानदार और ताकतवर तंत्र ही बना दें तो उनकी सरकार में बेलगाम हो चुके भ्रष्टाचार से त्रस्त यूपी की जनता को इसी से कुछ फौरी राहत मिल जाएगी। अगर वह ऐसा भी नहीं कर सके तो फिर अंधेर नगरी चौपट राजा की नई पहचान बनते जा रहे यूपी की छवि सुधारना उनके लिए तकरीबन असंभव ही हो जाएगा.
अश्विनी श्रीवास्तव पहले मीडिया में दिल्ली के बड़े संस्थानों में संपादकीय विभाग के उच्च पदों पर आसीन रहे। बाद में लखनऊ में बतौर रियल इस्टेट उद्यमी कई सफल प्रोजेक्ट किए। इन दिनों वे अपने व्यवसायिक काम के सिलसिले में सरकारी लालफ़ीताशाही और रिश्वतख़ोरी से जूझ रहे हैं.