तस्वीरों में जो प्रतियां फूंकी जा रही हैं ये देश के एक बड़े अखबार की हैं। उस अखबार की, जो नैतिकता के मापदंडों पर खुद को सबसे खरा और श्रेष्ठ होने की बात करता है, लेकिन प्रतियां फूंकने की वजह अखबार में बढ़ती रिश्वतखोरी और उगाही की प्रवृत्ति है।
इसी से आजिज लोगों ने खुर्जा में अखबार की प्रतियों को आग लगा दी, लेकिन शायद ही अखबार के मालिकान पर इसका कोई असर पड़े क्योंकि यह सब उनकी जानकारी में होता है। दूसरी ओर खुद को देश का नंबर वन कहने वाले इस अखबार के पास नित नए संस्करण शुरू करने के लिए और दूसरे अखबारों को खरीदने के लिए तो पैसा है लेकिन अपने कर्मचारियों को जायज वेतन देने के लिए कुछ नहीं है। मजदूरों के बराबर वेतन पर अपने कर्मचारियों से काम कराने वाले अखबार के मालिक मजीठिया के अनुसार वेतन देने से बचने के लिए रोज नए बहाने ढूंढ रहे हैं।
आमतौर पर भाजपा के मुखपत्र माने जाने वाले इस अखबार ने पत्रकारीय मापदंडों को भी पूरी तरह ताक पर रख दिया है। अखबार के निष्पक्षता के दावों का छोटा सा उदाहरण ये है कि जिस दिन लोकसभा में विपक्षी पार्टी के नेता राहुल गांधी सरकार पर कोई कटाक्ष करते हैं, उसी दिन अखबार के वरिष्ठ पत्रकार ‘त्वरित टिप्पणी’ लेकर हाजिर हो जाते हैं। टिप्पणी भी ऐसी कि केन्द्र सरकार का प्रवक्ता भी उनके सामने पानी भरे। बकायदा तर्कों के साथ ये राहुल की बात को काटते भी हैं और सरकार का पक्ष भी रखते हैं। हो सकता है वो सही हों, लेकिन बात फिर वही कि एक ही पार्टी के लिए यह रवैया क्यों। सवाल सिर्फ इतना सा है कि क्या यही है पत्रकारिता। वो पत्रकारिता का जिसकी कसम खाकर तुम बड़े बड़े दावे करते हो।
हरेंद्र मोरल के एफबी वॉल से
o p srivastava
May 1, 2015 at 11:23 pm
very good shri harendar moral ji Apne bilkul satya kaha hai, Dainik Jagran ish samay b j p ka ka sabase bada chamachha ban gaya hai.