मिठाई है तो मीठी ही होगी न। लेकिन दैनिक जागरण के कर्मचारियों को अनुभव हुआ है कि मिठाई कड़वी भी होती है। दैनिक जागरण की परंपरा रही है कि त्योहारों पर और विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर कर्मचारियों को मिठाई का एक डिब्बा दिया जाता रहा है। कभी-कभी यह भी हुआ है कि कोई दो डिब्बा मिठाई झटक लेता था तो किसी को मिठाई मिलती ही नहीं थी। ठीक उसी तरह, जैसे किसी चहेते को डबल इंक्रीमेंट मिल जाता है तो कोई इंक्रीमेंट से वंचित रह जाता है।
लोगों ने इसकी शिकायत की तो प्रबंधन ने नियम बनाया कि मिठाई का डिब्बा देने के बाद एक कागज पर उसकी रिसीविंग ली जाए। तब से मिठाई बांटते समय यह अनिवार्य कर दिया गया कि पहले दस्तखत कराओ, फिर दो मिठाई का डिब्बा। बीच में एक बार ऐसा भी हुआ कि मिठाई की गुणवत्ता खराब होने के कारण कर्मचारी मिठाई का डिब्बा ले तो लिया, लेकिन उसे कार्यालय के पास ही फेंक कर चले गए। इस प्रकार मिठाई वितरण का कार्य कमीशनखोरों के कारण अवरुद्ध हो गया। बाद में, मिठाई की क्वालिटी ठीक की गई और रिसीविंग का दौर चलता रहा।
जब कजीठिया मामले की अधिसूचना जारी हुई तो प्रबंधन ने इस मिठाई वितरण के कार्य को कर्मचारियों के खिलाफ हथियार बना लिया। कर्मचारी प्रबंधन की उदारता समझ नहीं पाए। किसी किसी को दो डिब्बा मिठाई देकर उससे दूसरे के नाम पर भी हस्ताक्षर करा लिए गए। जब लिस्ट पूरी हो गई तो उसे सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया गया। हस्ताक्षर के कागजों के साथ एक ड्रॉफ्ट इस आशय का लगा दिया गया कि हम अपने वेतन से संतुष्ट हैं और हमें मजीठिया वेतनमान नहीं चाहिए। अब कर्मचारियों का मजीठिया वेतनमान फंस गया है। एरियर के लाखों रुपये भी कर्मचारियों को नहीं दिए जा रहे हैं। इस प्रकार मिठाई का एक डिब्बा अब कर्मचारियों को लाखों रुपये में पड़ रहा है। बनिया हो तो ऐसा वर्ना न हो। सौ रुपये का मिठाई का डिब्बा लाखों रुपये में बेचने की कला कोई दैनिक जागरण प्रबंधन से सीखे।
श्रीकांत सिंह के एफबी वॉल से
Mohit Gautam
May 8, 2015 at 6:57 am
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