सहरसा : वर्षों से दैनिक जागरण में सहरसा से रिपोर्टिंग करते रहे पत्रकार संजय साह का कसूर इतना था कि वह गलत तरिके से धन उगाही कर अपने सीनियरों की तीमारदारी नहीं कर पाते थे। उन्हें सैक्स रैकेट चलाने के आरोप में जेल भेज दिया गया।
लगभग 35 वर्षों से इनके पिता सहरसा शहर के गंगजला चौक पर रह रहे हैं। कभी इनका या इनके परिवार का किसी गलत व्यक्ति से संपर्क नहीं रहा। शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायियों में इनका नाम आता था लेकिन बेटे की समाज सेवा की चाह ने इस परिवार को बदनामी के भंवर में झोंक दिया है। लगभग 4 वर्षों से दैनिक जागरण में बतौर संवाददाता कार्यरत संजय को इसकी भनक तक नहीं लगी थी कि पत्रकारिता की आड़ में गलत तरीके से पैसा भी कमाया जाता है। जबकि ऐसा करने के लिए बार-बार संजय को बाध्य किया जाता था।
समाज के सभी वर्गों के लोगों के साथ अपनापन, पारस्परिक मधुर संबंध तथा सामाजिक गतिविधियों व अध्यात्म में बढ़चढ़कर भाग लेने वाले इस परिवार को सदर थानाध्यक्ष संजय कुमार सिंह और मीडिया के लोगों ने मिलकर ऐसा शर्मनांक इल्जाम लगाया, जिसके बारें में सोचने मात्रा से लोग कांपने लगते हैं। 19 अप्रैल 2015 रविवार इस परिवार के लिए काला दिन बनकर आया। दिन के तीन बजे संजय रिपोर्टिंग कर अपने आवास पर आराम कर रहे थे। उसी समय गैस्ट हाउस में एसडीपीओ प्रेमसागर के साथ सदर थानाध्यक्ष संजय कुमार सिंह मय पुलिस कर्मियों के अंदर घुस आये। ठीक उसी समय गैस्ट हाउस के मैनेजर चिरंजीव रिसेप्शन पर ही बैठकर खाना खा रहे थे। पुलिस ने आते ही संजय कौन है! संजय कौन है! नाम लेकर गैस्ट हाउस का रजिस्टर अपने कब्जे में लेकर पूछताछ शुरु कर दी।
संजय के सीनियरों के दबाव में पुलिस सभी नियमों को ताख पर रखकर बिना किसी सर्च वारंट के, बिना किसी गिरफ्तारी वारंट के संजय, गैस्टहाउस के मैनेजर तथा गैस्टहाउस में ठहरे महिला-पुरुषों को गिरफ्तार कर थाने ले गई। बिना कारण 60 घंटे तक थाने के लॉकप में बंद रखा। संजय से थाने पर पांच लाख देने की मांग की गयी। बोला गया, अगर पांच लाख नहीं दोगे तो सेक्स रैकेट चलाने का आरोप लगा देंगे। संजय ने पैसा देने से मना कर दिया। तब उस पर सेक्स रैकेट चलाने का आरोप लगाकर 60 घंटे बाद रात के 7 बजे सीजीएम के ठिकाने पर हाजिर किया गया और महिलाओं को अल्पवास गृह तथा पुरुषों को जेल भेज दिया गया।
मीडिया के लोगों ने पुलिस के साथ ही गैस्ट हाउस पर धवा बोला था। मीडिया कर्मियों ने गिरफ्तार किसी भी आदमी से कोई पूछताछ नहीं की। जिस तरह पुलिस ने आरोप लगाया, वही अखबार में छाप दिया। जिस महिला को गैस्ट हाउस में पकड़ उसका न मेडिकल जांच हुई नहीं, सीजीएम कोर्ट में उसकी गवाही की गयी, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस और कथित पत्रकारों ने चंद रुपये के लिए दामन पर दाग लगा दिया। क्या ऐसे कथित पत्रकारों से यह पूछा नहीं जाना चाहिए कि आपने उस पत्रकार पर आरोप मढ़ दिया, जो कई वर्षों से पत्रकारिता कर रहा था, वह कैसे सेक्स रैकेट चलाने लगा। इसके लिए दैनिक जागरण के स्थानीय और मुख्यालय में बैठे कुछ कथित पत्रकारों से स्पष्टीकरण नहीं लेना चाहिए।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित
Anirudh
July 4, 2015 at 12:38 pm
संजय सिंह, जो नगर थानाध्यक्ष हैं, इससे पहले वह रोसड़ा (समस्तीपुर) का थानाध्यक्ष होतa था। रोड पर उगाही करना, पैसे तसीलना, प्रaथमिकि दर्ज करने वक्त मनमानी तरीके से पैसा मांगना इनकी पुरानी आदत है। आदत तो यह है कि वरीय पदाधिकारियों का बात तक नही मानता। ऐसे ही एक मनमानी के चलते रोसड़ा में एक स्वर्ण व्यवसायी से 13 लाख की लूट हो गई। जिसमें हामरी खबर और बनाये गये प्रेसर पर इन्हें रात्री के नौ बजे लाइन हाजिर किया गया था। पत्रकार अपनी प्रतिष्ठा खुद इन चंद नौकरशाहों के जिम्मे बेच चुके हैं। शर्म आती है, इस तरह की आपबीती पढकर। सहरसा के पत्रकारों मे है हिम्मत तो क्यों नही पूछता पुलिस कप्तान से कि आखिर क्यों नहीं गिरफ्तार किया जा रहा है पल्लव झा हत्याकांड के अभियुक्तों को। यदि कुछ देर के लिए यह मान भी लिया जाय कि पत्रकारों के गेस्ट हाउस में अवैध धंधा चल हीं रहा था तो पहले उसकी गिरफ्तारी हीं हो जायेगी? पहले पुष्टि तो करो। लॉक-अप में बंद कर कौन सा पुष्टि कर रहे थे यह पुलिस वाले? यदि तुरंत गिरफ्तारी करना पुलिस का काम है तो पल्लव झा हत्याकांड में नामजद अभियुक्तों को क्यों नही गिरफ्तार किया? क्यों रातों रात सांसद का नाम आ जाने से प्राथमिकि हीं चेंज कर दिया गया था। यही है हमारी कानून व्यवस्था और सरकार का न्याय के साथ विकास की यात्रा।