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आज पढ़िये महुआ मोइत्रा की ‘खबर’ और पीछे की कहानी

सभी अखबारों में सीएए कानून की खबर लीड है तो क्यों? जब फैसला नहीं हुआ, तारीख पड़ी है तो इतनी बड़ी खबर कैसे?

संजय कुमार सिंह

आज इंडियन एक्सप्रेस को छोड़कर सभी अखबारों में सीएए पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश लीड है। इंडियन एक्सप्रेस ने रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार की घोषणा और संबंधित खबर को लीड बनाया है पर यहां भी सीएए की खबर सेकेंड लीड है। सीएए पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी होता अंतिम होता तो खबर लीड बन सकती थी पर जब अगली तारीख पड़ी है तो इसे मजबूरी में लीड बनाया जा सकता था। दूसरी बड़ी खबर हो तो उसे लीड बनाकर, कम महत्व भी दिया जा सकता था। लेकिन सीएए को ऐन चुनाव से पहले लागू करने की घोषणा की गई और मकसद इसका राजनीतिक लाभ लेना है। इसलिए अखबारों के लिए भी यह महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर, आम जनता की समझ है कि सीएए गलत होता तो सुप्रीम कोर्ट रोक देता और नहीं रोका तो सही है। यह ऐसे ही है कि मनीष सिसोदिया पर मामला कमजोर होता तो जमानत मिल जाती। नहीं मिली मतलब कुछ न कुछ तो है। पर सच यह है कि धाराएं ऐसी लगाई गई हैं जिससे जमानत न मिले। पर वह अलग मुद्दा है। 

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दिलचस्प यह है कि राजनीतिक फायदे वाली ऐसी किसी खबर को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया जाये और दूसरी खबर सिंगल कॉलम में या नीचे छोटे शीर्षक से दो-तीन कॉलम में भी छापी जाये तो पाठक समझता है कि अखबार ने इसे छोड़कर इसे ज्यादा महत्व दिया गया है। इसलिए, मुझे लग रहा है कि ऐसे मौकों पर लीड बनने लायक खबरों को पहले पन्ने पर रखा ही नहीं जाता है। दूसरे अखबारों की खबरों से आपको लगेगा यह हमारे अखबार में पहले पन्ने पर या लीड क्यों नहीं है। अखबार जब यह सब कर रहे हैं तो ऐसी खबरें नहीं छाप रहे हैं जिससे सरकार या भाजपा को नुकसान हो। सीएए का मामला और बंगाल से उसका संबंध आप जानते हैं। बंगाल में पांव जमाने की भाजपा की कोशिशें और पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बांड खरीदा जाना और इसे प्राप्त करने वालों में तृणमूल कांग्रेस का भी होना राजनतिक मामले ही हैं और जनता को सब कुछ स्पष्ट व निष्पक्ष ढंग से बताया जाना जरूरी है ताकि वे चुनाव के लिए सही या अपने हित में निर्णय़ ले सकें।

अखबारों का यही काम है और इसे कितनी निष्पक्षता व निष्ठा से कर रहे हैं यह जानना समझना भी दिलचस्प है। इस क्रम में आज हम पहले सीएए वाली खबरों का शीर्षक देख लें फिर बताउंगा कि क्यों यह खबर महत्पूर्ण है और सरकार जो कर रही है वह खबर ही नहीं है जबकि जनहित में खबर वही थी। सुप्रीम कोर्ट में जो हुआ वह तो लाइव रिपोर्ट होता है यानी सीधा प्रसारण होता है। इसे दबाया छिपाया तो नहीं ही जा सकता है।

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इंडियन एक्सप्रेस

सीएए नियमों पर कोई स्टे नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से अपीलों का जवाब देने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने केंद्र से दो अप्रैल तक जवाब देने के लिए कहा, अगली सुनवाई नौ अप्रैल को।

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टाइम्स ऑफ इंडिया

सीएए की प्रक्रिया पर कोई स्टे नहीं, पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का दृष्टिकोण मांगा, केंद्र को तीन सप्ताह का समय मिला, सुनाई नौ अप्रैल को।

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द हिन्दू

सीएए पर स्टे मांगने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 9 अप्रैल को सुनवाई करेगा

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सरकार ने यह कहने से इनकार किया कि मामला लंबित होने तक वह अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर मुस्लिम प्रवासियों को तेजी से नागरिकता देने से बचेगी।    

हिन्दुस्तान टाइम्स

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सुप्रीम कोर्ट ने सीएए को स्टे नहीं किया, 237 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। हाईलाइट की गई बातों में दोनों पक्षों के तर्क हैं और इनमें पहला है (जो ऊपर किसी शीर्षक में नहीं है), याचिकाकर्ताओं ने कहा कि नागरिकता दिया जाना पलटने वाली प्रक्रिया नहीं है और सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह सरकार से यह अंडरटेकिंग देने के लिए कहे कि याचिकाओं पर सुनवाई से पहले किसी को नागरिकता नहीं दी जायेगी। केंद्र इसके लिए तैयार नहीं हुआ और बेंच ने रोकने से मना कर दिया।

द टेलीग्राफ

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सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद नियमों को स्टे करने से इनकार किया (फ्लैग) सरकार सीएए पर राजी नहीं है : कोर्ट।    

अमर उजाला

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सीएए के तहत नागरिकता देने पर रोक लगाने से शीर्ष कोर्ट का इन्कार, एक अलग खबर है, नागरिकता को फैसले के अधीन रखने का अनुरोध भी अमान्य। 

नवोदय टाइम्स

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सीएए पर फिलहाल रोक नहीं

अब द टेलीग्राफ के शीर्षक को देखिये। इससे लगता है कि अदालत ने सीएए के तहत नागरिकता देने से सरकार को रोकने की मांग करने वाली याचिका पर यह फैसला दिया है और इस मामले में दो तरह की याचिकाएं हैं। एक सीसीए कानून को रद्द करने की और उसपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक अमल रोकने की। मुझे लगता है आज खबर यह थी कि सरकार ने इस कानून पर सुनवाई होने तक उसे लागू नहीं करने की मांग भी नहीं सुनी और सुप्रीम कोर्ट ने इसके बावजूद स्टे नहीं लगाया है। पर नौ अप्रैल की तारीख तय कर दी है जो पहले चरण के मतदान से पहले है और तब अगर फैसला पलट गया तो चुनाव के सभी चरणों में भाजपा को नुकसान हो सकता है। संभव है भाजपा को वोट पाने के लिए यह जोखिम लेना जरूरी लगा हो या जो हालात हैं उसमें उसकी मजबूरी हो। पत्रकारिता तब होती जब इसे स्पष्ट किया जाता। पर अब सर्वेक्षण चलते रहते हैं और उसके परिणाम क्या होते हैं, सबको पता हैं।

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अमर उजाला के शीर्षक से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा को मन की बात करने की पूरी आजादी दी है और वह सरकार के काम में दखल नहीं दे रही है। सरकार अपने कानून के तहत जिसे चाहे नागरिक बनाये वह उसे बाद में रद्द भी नहीं करेगी। इससे यह भी लग रहा है कि कानून क्या ही गलत होगा और अगर होता तो सुप्रीम कोर्ट यह क्यों नहीं करता और वह क्यों नहीं करता। लेकिन जैसा मैने कहा, भाजपा ने जोखिम लिया है और कानून ही (संविधान के अनुसार) गैर कानूनी हुआ तो सरकार बुरी तरह फंसेगी। वैसे ही जैसे इलेक्टोरल बांड के तहत फंसी है। आप जानते हैं कि यह पुराना मामला है और ऐन चुनाव के समय आया है  और इसके लिए कुछ लोग मुख्य न्यायाधीश की तारीफ कर रहे हैं और इसे सरकार विरोधी होने के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। कुल मिलाकर इस सरकार ने अपनी राजनीति से चुनाव को दिलचस्प बना दिया है और सबसे लंबा चुनाव फटाफट क्रिकेट से वापस पांच दिन वाले टेस्ट मैच का माहौल बनाने में लगा है। कोई जीते-कोई हारे, इसका असर देर तक रहेगा।

दस साल में नहीं हुई जांच

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एक तरफ तो सरकार नए कानून के तहत नागरिकता देने पार आमादा है और अदालत में कहा गया है कि कानून किसी की नागरिकता नहीं लेता है। पर इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार असम में जमीनी स्थिति यह है कि अभी तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं है और नागरिक के लिए इंतजार करने तथा क्या होता है देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अखबार ने अजीत दास की कहानी बताई है जिसकी समस्या 2014 में तब शुरू हुई जब उसे सूचना मिली की उसकी नागरिका की जांच चल रही है। अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए वह तीन महीने जेल में रह चुका है और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने उसे 2021 में विदेशी घोषित कर दिया है। इसके खिलाफ दास की अपील गुवाहाटी हाईकोर्ट में है। वह थक चुका है और अगर उसके जीवन काल में यह फैसला नहीं हुआ तो उसका यह भारत उसके बच्चों पर चला जायेगा।

आधार निष्क्रिय, यूआईडीएआई अनजान

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तृणमूल कांग्रेस के सांसद और प्रवक्ता साकेत गोखले ने एक्स (ट्वीटर) पर लिखा है कि पश्चिम बंगाल और कथित रूप से कई अन्य राज्यों में लोगों के आधार कार्ड निष्क्रिय कर दिये गये हैं। ताज्जुब की बात यह है कि आधार बनाने वाली संस्था यूआईडीएआई तो कहती है कि उसे इसकी जानकारी नहीं है पर पश्चिम बंगाल के एक भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री (जिनका अधार से कोई संबंध नहीं है) ने कहा कि तकनीकी खराबी के कारण आधार कार्ड निष्क्रिय हुए हैं। उन्होंने निजी व्हाट्सऐप्प नंबर और गैर आधिकारिक ईमेल ऐड्रेस दिया है और निष्क्रिय आधार वाले लोगों से कहा है कि विवरण के साथ उनसे संपर्क करें। उधर, यूआईडीएआई  ने कहा है कि उसके पास निष्क्रिय आधार का राज्यवार, कारण वार डाटा नहीं है। अगर ऐसा है तो आप समझ सकते हैं कि सरकार की नजर में आधार की गंभीरता क्या है। अगर कोई कार्ड जारी हुआ और उसे निष्क्रिय करने का कारण भी रखने-बताने की जरूरत नहीं है तो जारी किया जाना या निष्क्रिय किया जाना कितना गंभीर है।

हिन्दुत्व का अपमान

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टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा है कि कांग्रेस, डीएमके हिन्दुत्व का अपमान करते हैं और दूसरे धर्म  के मामले में मौन रहते हैं। आप जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं और उन्हें सभी धर्म के लोगों और धर्मों का समान ख्याल रखना चाहिये। पर वे अक्सर हिन्दुत्व का ही प्रतिनिधित्व करते हैं और अब तो दूसरों पर आरोप लगा रहे हैं कि वे दूसरे धर्मों पर चुप रहते हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि हिन्दुत्व का अपमान करते हैं। आप जानते हैं कि हिन्दुत्व के खिलाफ तो हिन्दू भी नहीं बोल सकते हैं दूसरे धर्म के लोग क्या बोलेंगे और दूसरे धर्म के बारे में बोलने का कोई मतलब नहीं है, खासकर चुनाव के समय। पर प्रधानमंत्री इन नैतिकताओं में नहीं फंसते, चुनाव आयोग आंखें मूंदे रहता है। अखबार शिकायत भी नहीं छापते। 

आइए, अब पहले पन्ने की आज की कुछ खबर देख लें जिसे पढ़कर आप सोचेंगे कि इसकी जगह ये क्यों नहीं है या आपके अखबार ने ठीक किया इसे छापा, उसे छोड़ दिया। पहले पन्ने की कुछ दिलचस्प खबरें। इनमें कुछ एक ही अखबार में पहले पन्ने पर हैं कुछ एक से ज्यादा में भी।   

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1. शिबू सोरेन की बहू भाजपा में शामिल: झामुमो, परिवार के सदस्यों द्वारा अलग-थलग कर दिये जाने का आरोप।

2. पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव के नाम समन जारी किया

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3. प्रदूषित हवा के मामले में भारत दुनिया भर में तीसरा, बिहार का बेगूसराय और दिल्ली सबसे प्रदूषित

4. दिल्ली फिर से दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनी

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5. यूपी गेट से बैरीकेट हटाये गये

6. ईसीआई ने बंगाल के दूसरे डीजीपी को हटाया, तीसरे को चुना

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7. कोलकाता में निर्माणाधीन बिल्डिंग गिरने से मरने वाले 10 हुए

8. पहले चरण के लिए अधिसूचना आज, 19 अप्रैल को मतदान

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9. सीबीआई को महुआ मोइत्रा के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश

10. पूर्व राजदूत तरनजीत संधू, भाजपा में     

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महुआ मोइत्रा का मामला  

मुझे लगता है कि पहले पन्ने की चुनी गई इन खबरों में हरेक की कोई न कोई कहानी है। कई हेडलाइन मैनेजमेंट के भाग हैं। इनके जरिये यह बताने की कोशिश की जा रही है कि भाजपा राज में सब बल्ले-बल्ले है। सरकार और सरकार समर्थकों के खिलाफ जो खबरें हैं वह ज्यादातर अखबारों में नहीं हैं। उदाहरण के लिए महुआ मोइत्रा का मामला लेता हूं। मुझे लगता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के मद्देनजर महुआ मोइत्रा के खिलाफ मामला बनता ही नहीं था। यह फैसला अब पलटा है। पर वह अलग मुद्दा है। महुआ मोइत्रा के खिलाफ जो आपराधिक मामला है उसमें अभी तक पर्याप्त सबूत नहीं है या ठोस आधार नहीं है। फिर भी उनकी सदस्यता रद्द की जा चुकी है और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि, … संविधान का अनुच्छेद 122 एक ऐसी रूपरेखा की परिकल्पना करता है, जिसमें संसद को पहली बार में न्यायिक हस्तक्षेप के बिना अपने आंतरिक कार्यों और शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति है। संसद अपनी आंतरिक कार्यवाही के संबंध में संप्रभु है। एक प्रारंभिक धारणा ये भी है कि इस मामले में ऐसी शक्तियों का नियमित और समुचित रूप से प्रयोग किया गया है। कानून या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया गया है।

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अगर ऐसा है और संसद ने महुआ मोइत्रा की सदस्यता रद्द कर दी तो सजा हो गई। क्या एक ही अपराध के लिए दो बार या दो सजा होगी। आप कह सकते हैं कि रिश्वत लेना अपराध है और उसकी सजा तो अदालत देगी तो फिर मेरा सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट को सजा देने (या सदस्यता रद्द करने) की क्या जरूरत थी। जो भी हो, मामला आसान नहीं है पर एक निर्वाचित प्रतिनिधि को उसके काम से वंचित तो कर ही दिया गया और जब तमाम आरोपी यह काम करते रहे हैं तो महुआ मोइत्रा को क्यों रोका गया? शायद यह उसी शक्ति के कारण है जिसकी बात राहुल गांधी ने की और प्रधानमंत्री नारी शक्ति की बात करने लगे। हालांकि उनके शासन में महुआ मोइत्रा नाम की नारी ही नहीं सांसद के साथ जो हुआ वह सबने देखा है।

आज खबर है कि उनके खिलाफ सीबीआई को आदेश लोकपाल ने दिया है और यह भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की शिकायत पर है। तथ्य यह भी है कि न सिर्फ निशिकांत दुबे, कई सदस्यों के खिलाफ शिकायत पर कार्रवाई नहीं हुई है। जहां तक लोकपाल की बात है, 27 मई 2022 को न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष के रिटायर होने के बाद से यह पद खाली था। 29 जुलाई  2022 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर न्यायमूर्ति एएम खानविलकर को हाल में लोकपाल बनाया गया है। न्यायमूर्ति खानविलकर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का भी हिस्सा थे जिसने 2002 दंगा मामले में विशेष जांच दल की क्लीन चिट को बरकरार रखा था। 2020 में, न्यायमूर्ति खानविलकर ने विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020 को बरकरार रखने का निर्णय लिया। संशोधित अधिनियम ने विदेशी धन के उपयोग पर कड़े प्रतिबंध लगाकर गैर सरकारी संगठनों और अन्य संगठनों के कामकाज पर भारी प्रभाव डाला। रिटायरमेंट से दो दिन पहले, न्यायमूर्ति खानविलकर ने पीएमएलए, 2002 की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक जांच शक्तियां प्रदान करते हुए, आरोपियों के लिए “निर्दोषता की धारणा” को दूर करते हुए फैसला सुनाया था।

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