Krishna Kant-
लेख लिखने पर किसी पत्रकार के खिलाफ अरेस्ट वारंट कैसे जारी हो सकता है? अगर अदालतें ही ऐसे आदेश देंगी तो नेताओं और राजनीति से पीडि़त नागरिक कहां गुहार लगाएंगे?
गुजरात की एक अदालत ने वरिष्ठ पत्रकार प्रंजॉय गुहा ठाकुरता के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. ये वारंट अडाणी ग्रुप की ओर से दायर मानहानि के मुकदमे के तहत किया गया है.
प्रंजॉय गुहा ठाकुरता प्रतिष्ठित पत्रिका इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के संपादक थे. इस दौरान 2017 में ठाकुरता ने स्टोरी लिखी थी कि सरकार अडानी ग्रुप को अनुचित फायदे पहुंचा रही है. खबर का सार ये था कि अडाणी ग्रुप को मोदी सरकार ने 500 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया. मोदी सरकार के एक फैसले से गुपचुप तरीके से स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन से जुड़े नियम बदल दिए गए और इस बदलाव से अडाणी ग्रुप को 500 करोड़ रुपए का फायदा पहुंचा. इसी खबर को लेकर ग्रुप ने ठाकुरता और सहलेखकों और पत्रिका पर मुकदमा कर दिया था.
ठाकुरता का यही लेख बाद में द वायर ने छापा था, जिसके लिए अडाणी ग्रुप ने वायर पर भी मुकदमा ठोंका था.
इस मुकदमे के बाद पत्रिका पर अडाणी ग्रुप का इतना दबाव पड़ा कि ठाकुरता को अपना पद छोड़ना पड़ा. बाद में पत्रिका और इसके मालिकों पर से केस वापस हो गया. अब ये केस सिर्फ पत्रकार ठाकुरता के खिलाफ है.
गौतम अडाणी पिछले छह सालों से मोदी के प्रधानसेवक बनने के बाद खासे चर्चा में रहते हैं. वजह है प्रधानसेवक से उनकी नजदीकी और उनका बढ़ता बिजनेस. इन्हीं के विमानों पर सवार होकर मोदी ने 2014 में अपना प्रचार किया था. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले ही साल में अडाणी की संपत्ति में अकूत बढ़ोत्तरी होनी शुरू हो गई.
आज जब देश की अर्थव्यवस्था माइनस में है, अडाणी और अंबानी संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि की खबरों के तो आप भी गवाह हैं.
अडाणी सिर्फ बिजनेसमैन नहीं हैं. वे न्यू इंडिया के नए भगवान हैं जिनकी आलोचना नहीं की जा सकती. उनके गैरकानूनी कामों के खिलाफ जो भी लेख लिखता है, वे उसे मुकदमें में फंसा देते हैं. नेता भी भगवान बने घूम रहे हैं तो कॉरपोरेट क्यों पीछे रहे? सरकार उसकी जेब में है तो जाहिर है कि वह ज्यादा कॉन्फिडेंस में है.
हाल ही में एक वरिष्ठ पत्रकार ने निजी तौर पर मुझे बताया था कि वे एक अंग्रेजी अखबार के खबर लिख रहे थे. खबर में अडाणी ग्रुप पर सवाल थे. इन सवालों का जवाब मांगने के लिए ग्रुप के अधिकारियों से संपर्क किया गया तो जवाब देने की जगह पत्रकार को धमकियां दी गईं और आखिरकार वह खबर नहीं छपी.
लॉकडाउन के दौरान गुजरात के एक पत्रकार ने खबर लिख दी कि मुख्यमंत्री से आलाकमान नाराज है. सीएम बदला जा सकता है. इस खबर के लिए पत्रकार पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया. ऐसे कारनामों पर यूपी टॉप पर है, लेकिन पीछे कोई नहीं है. कॉरपोरेट से लेकर सरकारों तक, सबको ये लगता है कि वे अपनी ताकत से पत्रकारों का मुंह बंद कर देंगे और वे इसका ‘सफल प्रयास’ भी कर रहे हैं क्योंकि व्यवस्था उनकी जेब में है.
यही आपका मौजूदा ‘नया लोकतंत्र’ है जहां लेख लिखने पर उसका खंडन नहीं होता. सवालों का जवाब नहीं दिया जाता. सीधा मुकदमा और गिरफ्तारी होती है. हैरानी की बात है कि अदालत गिरफ्तारी वारंट जारी कर देती है. लेकिन वॉट्सएप चैट में मंत्री बनाने, मंत्री बदलवाने और पीएमओ से लाभ लेकर बिजनेस चमकाने का खुलासा होने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती.
भारत की जनता शायद इन्हीं अच्छे दिनों का सपना देख रही थी जहां लेख लिखने पर गिरफ्तारी हो जाए?
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