गोरखपुर से एक दुखद खबर आ रही है। अमर उजाला के डिप्टी न्यूज एडिटर अजय शंकर तिवारी (उम्र 45 वर्ष) का पैनेशिया में कोरोना संक्रमण से निधन हो गया।
युवा पत्रकार अभिषेक त्रिपाठी का लिखा पढ़ें-
साल 2006 था, हफ्ते भर चले इंटरव्यू के बाद अमर उजाला वाराणसी में मैं चुना गया था। खबरों पर काम का अनुभव तो था लेकिन टाइपिंग स्पीड कम थी। रोज दो बजे दफ्तर पहुंच कर टाइपिंग सुधारने की जद्दोजहद रहती थी। बाकी सबका ऑफिस आने का समय 4 बजे का था, मगर एक वरिष्ठ थे जो ठीक साढ़े तीन बजे आ जाते, बड़े हॉल के सबसे कोने में लगा अपना कंप्यूटर खोलते, लाइट जलाते और मुझे घूरते रहते थे।
उन्हें कभी गंदे, बिना प्रेस कपड़ों में नहीं देखा। पैरों में लेदर के जूते होते या सैंडिल, उसमें भी मिट्टी का एक कण न होता। सजीला व्यक्तिव था उनका, मूंछें सेट, बड़ी खतें, छोटे मिलिट्री कट बाल। कई दिन घूरते रहने के बाद एक दिन मेरे पास आए, पूछा कि नए आये हो? क्या कर रहे हो? मैंने बताया कि सर डेस्क पर सेलेक्शन हुआ है, टाइपिंग स्पीड थोड़ी धीमी है तो अखबार से देख के प्रैक्टिस कर रहा हूं। साथ ले गए और अपने ड्रावर से निकाल के पेपर स्टैंड दिया, बोले अखबार इसमें लगा के टाइप करो, आंखों से सामने रहेगा तो थोड़ी रफ्तार बनेगी…
वो अजय सर थे, अजय शंकर तिवारी… शार्ट में अजय एस टी। ब्लॉक्स के जमाने की पत्रकारिता की थी लेकिन कंप्यूटर के ज्ञान में नए लड़कों को चुनौती देते थे, बल्कि हमेशा पटक भी देते थे। क्रिकेट के शानदार खिलाड़ी और मन से हमेशा जवान, झुंझलाते थे, डांटते थे लेकिन काम पूरा हो जाने के बाद दौड़ा के पकड़ते थे, चाय पिलाते थे और पुचकारते थे।
संयोग देखिए कि 12 दिन बाद जब मेरी तैनाती की बारी आई तो अजय सर ने मुझे अपने साथ ले लिया।
सोनभद्र डेस्क इंचार्ज थे वो, पहली डाक पे मैं अनुभवहीन बालक मने मन घबरा रहा था। मेरा मनोभाव उन्होंने समझ लिया और बोले कि ‘तुम खबरें पढ़ देना, पन्ने मैं सिखा दूंगा’। अजय सर उजाला में उस दौर के सभी नए लोगों के मेंटोर थे, सिखाने में उनका कोई सानी नहीं था। खैर, उनके व्यक्तित्व को मैंने धीरे धीरे जाना।
अगले एक महीने तक अजय सर ने हर दिन तीन पेज लगाए, मुझे डांटते जाते थे लेकिन कभी हाथ नहीं छोड़ा उन्होंने मेरा। हर दिन की डांट ने समय के साथ दुलार का रूप ले लिया, अब मैं गुस्सा करता था उनपे। मुस्कुराकर कहते कि ‘अब आप बड़े हो गए हैं…’।
अजय सर के जैसे परफेक्शनिस्ट कम ही दिखते हैं अखबारी दुनिया में। पेजेज पे काम करते समय हर चीज का समय तय होता था, एकाध मिनट भी देर हुई तो डांट पक्की। खबरों की एडिटिंग में एक भी शब्द इधर उधर नहीं। न्यूज़ रूम की घड़ी उन्होंने ही फ़ास्ट करा रखी थी, हम अपनी घड़ी से समय से पहुंचते लेकिन उनके हिसाब से लेट होते थे और रगड़े जाते थे।
खेल के मैदान में उनकी कप्तानी में उजाला लगातार चैंपियन रहा। वहां भी ऐसे ही रहते थे वो, देर से आने वाले को मैदान से बाहर कर देते। रिपोर्टिंग के दौरान मेरी खबरें देखते तो हर रात काम के बाद चर्चा होती थी, किसी खबर में कोई गलती पकड़ी उन्होंने तो फोन पे ही शामत बुला देते थे। बोलते थे कि अपने पास बुलाऊँ क्या फिर से सिखाने को…!!!
अमर उजाला छूटने के बाद बातें कम हुईं उनसे लेकिन हमेशा उनकी की हुई तारीफें घूमफिरकर मेरे पास पहुंचती थीं। रास्ते में कहीं मिले तो मैं वही छोटा बच्चा बन जाता था और वो अभिभावक। वो कहते कि ‘अब आप बड़े हो गए हैं, लेकिन मैं आपसे हमेशा बड़ा रहूंगा…’। हंसी-ठिठोली के साथ पैर छूने पर सिर पर हाथ फेरा करते थे वो हमेशा।
अमर उजाला में लगभग 6 साल के कार्यकाल में मैंने उनके साथ सोनभद्र और फिर सिटी डेस्क पे काम किया। काम के दौरान मुझे चाहें कितना भी फटकारा हो उन्होंने या मैंने चाहें कितना भी सुनाया हो उनको, रात 10 बजे सब खत्म हो जाता। रात 10 बजे के आसपास टिफिन खोलते और मुझे बुलाकर साथ बिठाते, कहते कि दो रोटी आपके लिए भी लाया हूं मैं। मैं ज्यादा गुस्से में खाने से मना करूं तो वो बोलते कि ‘ठीक है, फिर मैं भी भूखा रह जाता हूं!!’ खाने के दौरान मुझे मनाने के लिए अक्सर कहते थे, ‘मैं नहीं रहूंगा तो मुझे याद करेंगे आप त्रिपाठी जी…’।
आज सुबह वो मनहूस खबर मिली कि दिल बैठ गया। हमारे फाइटर अजय सर का कोरोना से निधन हो गया।
सर आपके ऐसे जाने की उम्मीद तो नहीं की थी…आपको ऐसे नहीं जाना था सर!