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अकेले इंडियन एक्सप्रेस ने आज श्वेत पत्र के साथ ब्लैक पेपर की चर्चा नहीं की है

हेडलाइन मैनेजमेंट के लिए श्वेत पत्र, खबरों पर उसका असर और मीडिया में मिला महत्व

संजय कुमार सिंह

आज के ज्यादातर अखबारों ने भाजपा के श्वेत पत्र को लीड बनाया है। इंडियन एक्सप्रेस अकेला अखबार है जिसने भाजपा की खबर को तो लीड बनाया है लेकिन कांग्रेस के ब्लैक पेपर या श्याम पत्र की चर्चा साथ में नहीं की है। मेरे बाकी सभी अखबारों ने पहले पन्ने पर अगर श्वेत पत्र को लीड बनाया है तो उसके साथ ही श्याम पत्र की खबर छोटी या बड़ी जरूर दी है। पत्रकारिता का नियम भी यही है कि एक जैसी खबरें एक साथ हों, आरोप हो तो उसका जवाब भी साथ हो। दोनों लिहाज से मुख्य खबर के साथ उसका जवाब या उसपर प्रतिक्रिया या सत्तारूढ़ दल के श्वेत पत्र के साथ विपक्ष के श्याम पत्र को होना चाहिये था। नवोदय टाइम्स ने दोनों खबरों को ऊपर-नीचे लगभग बराबर लगाया है तो द हिन्दू में ब्लैक पेपर की खबर सबसे छोटी है। हालांकि, यहां बताया गया है कि पूरी खबर अंदर के पन्ने पर है।

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द टेलीग्राफ और अमर उजाला में श्वेत और श्याम पत्र दोनों ही पहले पन्ने पर नहीं है। कोलकाता से छपने वाले द टेलीग्राफ में बंगाल के बजट की खबर लीड है जबकि दिल्ली से भी छपने वाले अमर उजाला के दिल्ली संस्करण में हल्द्वानी की खबर लीड है। इस खबर के अनुसार हल्द्वानी में अतिक्रमण ढहाने गई पुलिस पर पथराव हुआ, थाना फूंक दिया गया, छह लोगों की मौत हो गई और कर्फ्यू लगा दिया गया है। खबर के अनुसार अवैध मदरसे और धर्मस्थल को ढहाने गई पुलिस प्रशासन और नगर निगम की टीम पथराव के बीच किसी तरह जान बचाकर निकली। रुद्रपुर से पहुंची पीएसी ने मोर्चा संभाला। अखबार ने बताया है कि अमर उजाला की टीम भी घायल है। आप जानते हैं कि युद्ध में भी पत्रकारों को बख्श दिया जाता है। पर अब उपद्रवियों ने ना सिर्फ रिपोर्टर और फोटोग्राफर को घायल किया है कैमरा भी तोड़ दिया। कई अन्य मीडियाकर्मी घायल है।

सबसे पहले यूसीसी वाले राज्य में हिंसा

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डबल इंजन वाले उत्तराखंड का हल्द्वानी शहर दिल्ली से सड़क मार्ग से 287 किलोमीटर या साढ़े छह घंटे की दूरी पर है और यह समान नागरिक विधेयक पास करने वाला देश का पहला राज्य है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूसीसी का मसौदा तैयार कर इसे राज्य विधानसभा ने पास करवाया। यूसीसी भाजपा के मूलभूत एजेंडे के अनुरूप है। इसका लक्ष्य सभी नागरिकों के लिए, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, विवाह, तलाक, विरासत आदि जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों को मानकीकृत करना है। मुझे लगता है कि दिल्ली के अखबारों के लिए यह बड़ी खबर थी जिसे महत्व नहीं मिला। हालांकि, हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे पहले पन्ने पर तीन कॉलम में रखा है। शीर्षक है, यूसीसी बिल के एक दिन बाद हल्द्वानी में मदरसे के खिलाफ कार्रवाई पर हंगामा, दंगा।  दरअसल, कल ही दिल्ली मेट्रो के गोकुलपुरी स्टेशन की दीवार गिरने से एक व्यक्ति की मौत हो गई और आज यह दिल्ली में कई अखबारों में पहले पन्ने पर है। इसलिए हल्द्वानी में कर्फ्यू की खबर दब गई।

किसानों का आंदोलन – वापस या खत्म?

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अमर उजाला में आज दिल्ली एनसीआर की एक और बड़ी खबर है जो दिल्ली के दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। शीर्षक है, किसानों के दिल्ली कूच से नोएडा सीमा पर महाजाम। उपशीर्षक है, पुलिस से झड़प-हंगामा, पांच घंटे बाद खुले रास्ते। द हिन्दू में इस खबर का शीर्षक है, मांगों पर विचार के आश्वासन के बाद किसानों ने आंदोलन वापस लिया। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने से पहले के अध पन्ने पर लीड है। यहां इसका शीर्षक है, किसानों के आंदोलन से पूर्वी दिल्ली, एनसीआर का हिस्सा जाम हुआ तो सरकार ने उनसे संपर्क किया। आप तीनों शीर्षक और खबर का अंतर समझ सकते हैं। और उम्मीद कर सकते हैं कि किसान दिल्ली की सीमा से वापस चले गये होंगे। पर सच कैसे पता चलेगा या यह सच है कि नहीं मैं नहीं जानता है।

केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन

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आज के अखबारों में एक औऱ बड़ी खबर केरल सरकार द्वारा केंद्र के खिलाफ आयोजित प्रदर्शन है। इसका नेतृत्व केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने किया। इंडियन एक्सप्रेस में यह लीड के नीचे तीन कॉलम में छपी है। इसका शीर्षक है, (केंद्र के खिलाफ विरोध में) विपक्ष शामिल हुआ तो केरल के मुख्यमंत्री ने कहा, राज्यों का संघ राज्यों के ऊपर केंद्र होता जा रहा है। द हिन्दू ने इसे चार कॉलम में छापा है जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स में यह सिंगल कॉलम में है। चुनाव के पहले इस तरह के विरोध प्रदर्शन और आरोप का अपना महत्व है। केंद्र सरकार इससे बचने के लिए या अपनी मशहूर हेडलाइन मैनेजमेंट योजना के तहत श्वेत पत्र लेकर आई है और जवाब में अगर कांग्रेस ने ब्लैक पेपर पेश किया है तो खबर के रूप में दोनों बराबर नहीं है। विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस ने भले भाजपा के श्वेत पत्र के जवाब में ब्लैक पेपर पेश किया है पर यह इस सरकार के कार्यकाल पर है जो जनता से फिर वोट मांगने वाली है।

बेमतलब श्वेत पत्र और अनूठा ब्लैक पेपर

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सत्तारूढ़ दल वोट मांगने के लिए अपने काम या उपलब्धियों के बदले कांग्रेस सरकार के 10 साल पुराने कार्यकाल की स्थिति का वर्णन कर रहा है जो जनता जानती है और जिसके बदले वह चुनाव हार चुकी है। इसके लिए आरटीआई भी है। अब 10 साल के अपने कार्यकाल और खासकर नोटबंदी तथा जीएसटी जैसे बड़े निर्णय पर श्वेत पत्र लाया जाता तो एक मतलब होता। वैसे भी, बहुत सारे मामलों में आरटीआई से भी जवाब नहीं मिला था। इसकी बजाय 10 साल पहले के कार्यकाल पर लाया गया श्वेत पत्र पिछले 10 साल के कार्यकाल के श्याम पत्र से ज्यादा महत्वपूर्ण और नया नहीं हो सकता है पर अखबारों ने श्वेत पत्र को ही ज्यादा महत्व दिया है। इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स ने म्यामार सीमा पर मुक्त आवाजाही को बंद करने के केंद्र सरकार के निर्णय़ को भी पहले पन्ने पर छापा है। जो अमित शाह पहले भी कह चुके हैं और छपता रहा है।

राहुल गांधी के आरोप के मायने

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हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम की एक खबर राहुल गांधी से संबंधित है। सबसे पहले मैं हिन्दी में शीर्षक बता दू। हिन्दुस्तान टाइम्स में शीर्षक है, “राहुल ने कहा मोदी असल में ओबीसी नहीं हैं, भाजपा ने तीखा पलटवार किया”। टाइम्स ऑफ इंडिया में शीर्षक है, “प्रधानमंत्री की जाति पर राहुल की टिप्पणी को लेकर विवाद”। मुझे लगता है कि यह मामला जितना गंभीर है उस ढंग से नहीं छापा गया है और भाजपा अपने तथाकथित पलट वार और वह भी ‘तीखे’ से इस मामले को दबाना चाहती है। बोले तो राहुल की कोशिशों पर बुलडोजर चलाती नजर आ रही है। यह मामला प्रधानमंत्री के दावों और कांग्रेस पर उनके आरोपों के मद्देनजर महत्वपूर्ण है और ऐसा नहीं है कि लोग जानना नहीं चाहेंगे। फिर भी कई अखबारों ने इसे प्रमुखता नहीं दी है और जिसने पहले पन्ने पर छापा है वह भी टालू अंदाज में है।

सबसे बड़े ओबसी

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मुद्दा यह है कि प्रधानमंत्री ने हाल में संसद में कहा था कि वे सबसे बड़े ओबसी हैं। उनके सही शब्द थे, मैं हैरान हूं इनको सबसे बड़ा ओबीसी नजर नहीं आता। इससे पहले भी वे खुद को ओबीसी कह चुके हैं। लेकिन जब जाति की बात हुई तो उन्होंने कहा, देश में चार जातियां हैं, ‘गरीब, युवा, महिला और किसान…’। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा था कि मैं इनके विकास के लिए काम कर रहा हूं। संसद में जब उन्होंने खुद को सबसे बड़ा ओबीसी कहा तो राहुल गांधी ने ट्वीट किया था, प्रधानमंत्री इस बीच अक्सर कह रहे थे देश में सिर्फ दो जातियां हैं – अमीर और गरीब, मगर आज संसद में उन्होंने खुद को ‘सबसे बड़ा ओबीसी’ बताया। किसी को छोटा और किसी को बड़ा समझने की इस मानसिकता को बदलना जरूरी है। ओबीसी हों, दलित हों या आदिवासी, बिना गिनती के उन्हें आर्थिक और सामाजिक न्याय नहीं दिलाया जा सकता। मोदी जी इधर-उधर की इतनी बातें करते हैं, तो गिनती से क्यों डरते हैं?

यहां यह उल्लेखनीय है कि देश में जनगणना हर 10 साल में होती है। अंतिम जनगणना 2021 में होनी थी जो कोविड के कारण नहीं हो पाई और अभी तक नहीं हुई है। इस बीच  बिहार में जातिगत जनगणना का फ़ैसला जून में हुआ था। काम पूरा करके उसकी रिपोर्ट भी आ गई है। नीतिश कुमार की सरकार ने करवाई थी और अब वे खुद भाजपा में हैं। राहुल गांधी का कहना है कि पिछड़ी जातियों को सुविधा देने के लिए उनकी संख्या मालूम होनी चाहिये और जातिवार जनगणना करवाई जानी चाहिये। ऐसे में प्रधानमंत्री  खुद को सबसे बड़ा ओबीसी कहें और कभी चार जाति बताये तथा कभी दो और खुद को ससे बड़ा कहें – सब असामान्य है। ऐसे में राहुल गांधी का यह खुलासा कि नरेन्द्र मोदी जन्म से ओबीसी नहीं है और मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही समय पहले उनकी जाती को ओबीसी माना गया था, महत्वपूर्ण है।

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इसी क्रम में राहुल गांधी ने अपनी न्याय यात्रा के दौरान उड़ीशा की एक जनसभा में कहा, “पीएम मोदी को ओबीसी गुजरात की भाजपा सरकार ने बनाया है।” मुझे लगता है कि बहुत सारे लोगों को पहले से पता होने के बावजूद संसद में प्रधानमंत्री का दावा (तथा शैली) और उसपर राहुल गांधी का यह खुलासा खासा महत्वपूर्ण है। वह इसलिए भी कि कोई व्यक्ति अपने, पद या प्रभाव का इस्तेमाल अपने निजी लाभ के लिए करे – यही भ्रष्टाचार है और निजी लाभ सिर्फ पैसे लेना नहीं है। इस लिहाज से राहुल गांधी का यह दावा महत्वपूर्ण है। “सच सुनो! नरेंद्र मोदी जन्म से ओबीसी नहीं हैं, उन्हें ओबीसी गुजरात की भाजपा सरकार ने बनाया है। वह कभी पिछड़ों के हक़ और हिस्सेदारी के साथ न्याय नहीं कर सकते। नरेंद्र मोदी जातिगत गिनती नहीं करने वाले. जातिगत गिनती कांग्रेस ही कर के दिखाएगी।”

कांग्रेस आरक्षण विरोधी है

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कहने की जरूरत नहीं है कि यह संसद में नरेन्द्र मोदी ने जवाहर लाल नेहरू या देश के पहले प्रधानमंत्री के बारे में आरक्षण पर उनके विचार के संबंध में जो कुछ कहा था उसपर प्रतिक्रिया भी हो सकता है। कल अमर उजाला की लीड का शीर्षक था, कांग्रेस नेहरू के समय से ही आरक्षण विरोधी है …। आज की खबरों के अनुसार भाजपा ने राहुल गांधी के खुलासे की आलोचना की है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी जाति को गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद ओबीसी के रूप में अधिसूचित कराया, सफेद झूठ है। भाजपा ने कहा और अखबार ने पहले पन्ने पर छापा है, प्रधानमंत्री की जाति सरकार द्वारा 27 अक्तूबर 1999 को ओबीसी अधिसूचित की गई थी और यह उनके मुख्यमंत्री बनने के पूरे दो साल पहले हो गया था। अखबार ने लिखा है, राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी की जाति बताई औऱ कहा कि इसे 2000 में ओबीसी का दर्जा मिला था। अखबार ने राहुल गांधी की आलोचना (या विवाद) का जो कारण बताया है वह 27 अक्तूबर 1999 और 2000 का अंतर है।

विशेषज्ञों ने चेतावनी

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हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि हाल के समय में मोदी पर निजी हमलों का चुनाव में विपक्ष पर उल्टा असर हुआ है। मैं नहीं जानता कि यह खबर कैसे है या इस खबर का भाग क्यों है और अगर असर हुआ भी है तो विशेषज्ञ कौन हैं, उनकी क्या जरूरत है और तथ्य तो तथ्य हैं उसे बताने या याद दिलाने का मकसद जो भी हो, मुख्यमंत्री बनने से पहले क्या कोई इतना प्रभावशाली नहीं होगा कि अपनी जाति को अपने राज्य में अपनी (या अपनी जाति के लोगों की) इच्छा के अनुसार ओबीसी घोषित करवा ले और उसका लाभ ले। यह कानूनन गलत तो है ही, नैतिक रूप से भी गलत है। भले पहले से सार्वजनिक है। राहुल गांधी ने कहा तो विवाद क्यों और विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है तो उसका समर्थन क्यों और क्या वोट नहीं मिलते हैं तो सच नहीं बोला जाये? अखबार क्या सीख देना चाहता है?

जीएसटी चोरी

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मैंने ऊपर लिखा है कि सरकार को अपने कार्यकाल पर श्वेत पत्र लाना चाहिये था या नहीं लाती। विपक्ष श्याम पत्र या ब्लैक पत्र लाता या नहीं लाता यह तथ्य है कि बिना तैयारी, जल्दबाजी में, धूम-धाम से जीएसटी लागू किया गया था तो कहा गया था कि इससे टैक्स चोरी कम होगी। आज टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर है कि बोगस फर्मों के जरिये सबसे ज्यादा जीएसटी की चोरी दिल्ली में हुई है। राजधानी में 483 फर्में पकड़ी गई हैं और संदेह है कि इन्होंने 3,028 करोड़ की जीएसटी चोरी की। तथ्य यह भी है कि देश का सबसे गरीब व्यक्ति भी कुछ खरीदता है तो जीएसटी चुकाता है और इस तरह जीएसटी की वसूली बढ़ रही है तो सरकार उसका प्रचार कर रही है। इस चोरी के बाद अगर वसूली बढ़ी है तो चोरी रोकने के साथ-साथ टैक्स कम करने और कुछ वस्तुओं (जैसे दवाइयों) को टैक्स मुक्त किया जाना चाहिये। पर वह सब मुद्दा ही नहीं है।

बीते हुए दिनों की अखबारी समीक्षाएँ पढ़ने के लिए इसे क्लिक करें–https://www.bhadas4media.com/tag/aaj-ka-akhbar-by-sanjay-kumar-singh/

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