Satyendra PS : करीब एक पखवाड़े से एक अखबार की मार्केटिंग टीम का फोन आ रहा था। सर आपका पैकेज खत्म हो गया है। रिन्यूवल का चेक लेने आ जाऊं? पिछले कई साल से भाई आकर चेक ले जाता था। इस साल गरीबी के चलते मैंने पैकेज लेने से इनकार कर दिया। 15 दिन तक फोन आते रहे। मैंने बोल दिया कि तुम्हारा अखबार कचरा है, हम पैकेज नहीं बढवाएँगे।
आखिर में मार्केटिंग वाले ने कहा कि सर, आपके यहाँ 7-8 अखबार आते हैं, मेरा सिर्फ एक ही लगवा लीजिए। मैंने कहा कि बिल्कुल नहीं लगवाऊंगा। फिर उसने कहा, सर कल सुबह आपसे मुलाकात हो सकती है क्या? मैंने बुला लिया।
आज भाई पहुंचा। उसने कहा, सर आप सही कह रहे हैं कि अखबार कचरा है। ये अखबार के साथ आपके लिए 500 रुपये का शैम्पू किट मुफ्त है। 899 का 15 महीने का अखबार है। उसके अलावा मोटा अखबार होता है, 400 रुपये कचरा बेचने पर मिल जाएगा। आखिरकार उसने अपने ग्रुप के 2 अखबार के लिए 1398 रुपये का चेक मुझसे कटवा ही लिया! अगर सीधे पैकेज लेते तो 500 का शैम्पू शायद न मिलता.
बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र पी सिंह की एफबी वॉल से.