निमिषा सिंह–
स्मृति शेष : दुनिया को अलविदा कह गए फोटो पत्रकार राजीव कांत
बिहार के चर्चित फोटो जर्नलिस्ट राजीवकांत जी का आकस्मिक निधन निसंदेह फोटो पत्रकारिता के लिए अपूर्णीय क्षति है। फोटो पत्रकारिता में राजीव कांत अपने समय के एक चर्चित नाम रहे हैं। अपने निर्भीक पत्रकारिता के लिए मशहूर राजीवकांत की तबियत पिछले कुछ दिनो से नाजुक थी। निमोनिया से पीड़ित थे वह। पटना के पारस अस्पताल में 6 जून की सुबह उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। अपने पीछे पत्नी, पुत्री, पुत्र, पुत्रवधु और एक नन्ही पोती के साथ एक भरा पूरा परिवार छोड़ गए।
इसी वर्ष दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित तिलकामांझी राष्ट्रीय सम्मान समारोह में मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई। चुंबक की भांति अपनी ओर आकर्षित करने वाला व्यक्तित्व। मिलनसार, हसमुख,अत्यंत संवेदनशील राजीव जी के संवाद करने का ढंग काफी प्रभावी था। बातचीत के क्रम में ही उन्होंने बताया ” मुझे हमेशा ऐसा लगा कि एक फोटोग्राफर से पहले मैं एक पत्रकार हूं। जिस भी संस्थान में रहा हमेशा दोहरी जिम्मेदारी रही मुझपर”
फोन कॉल के जरिए ही सही कुछ ही महीनों का साथ रहा मेरा उनके साथ। मेरे हर लेख को बारीकी से पढ़ते और अपनी राय जरूर देते। खुद से जुड़े हर व्यक्ति के लिए समय होता था उनके पास। प्रशिक्षुक पत्रकारों को सहयोग करते और उनका हौसला बढ़ाते थे।सादगी और व्यवहार कुशल होने के कारण पत्रकारों के बीच काफी लोकप्रिय रहे। ऐसे थे हम सब के चहेते राजीवकांत सर।
स्वाधीनता सेनानी के परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजीवकान्त जी ने सन 74 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन से फोटोग्राफी कैरियर की शुरुआत की।
जय प्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन के दौर में चर्चित पत्रिका दिनमान, धर्मयुग, ब्लिट्ज सहित महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में उनके जीवंत छायाचित्र प्रकाशित हुए। बाद में चर्चित पत्रकार अरूण रंजन के साथ रविवार के लिए बिहार से बतौर छायाकार कार्य करने लगे। अंग्रेजी के महत्वपूर्ण चर्चित समाचार पत्र ‘स्टेट्समैन’ में चर्चित पत्रकार अम्बिका नन्द सहाय के साथ बिहार से महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर किया उन्होंने। प्रेस बिल के खिलाफ आंदोलन में सरकार के फरमान के वाबजूद राजीव जी ने लाठीचार्ज की फोटो को अपने कैमरे में कैद किया। साथी पत्रकारों की मदद से ये तस्वीरें सभी अखबार में छपी।
लंबे अर्से तक राजीव दैनिक आज से भी जुड़़े रहे। 80 के दशक में आज अखबार में उनके साथी वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे ने राजीव जी निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि ” उनका जाना मेरे लिए व्यक्तिगत हानि है। पटना के गर्दनीबाग इलाके में हम साथ ही रहा करते थे। स्टोरी कवर करने भी हम साथ जाते थे। राजीव क्षण भर में निर्णय ले लेते थे कि कोन सा समाचार फोटो की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकता है। उच्च गुणवत्ता वाली छवियों को कैप्चर करने में महारत हासिल थी उन्हे।
अपने नैतिक सिद्धांतो के साथ कभी समझौता नहीं करने वाले और सच्चाई, ईमानदारी, निष्पक्षता और विषयों की गोपनीयता का विशेष ध्यान रखने वाले राजीव जी ने चुनौतीपूर्ण वातावरण में भी काम किया और सर्वोत्तम संभव छवियों को कैप्चर किया। दंगे,नरसंहार,प्राकृतिक आपदाएं जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी सुरक्षा के साथ अपने कैमरे में कैद छवियों को भी बचाया।
आज अखबार के बाद वो पीटीआई, दी हिन्दु, फ्रंट लाईन, स्पोर्ट्स स्टार से जुड़े। उनके काफी करीबी और और उनके साथी रहे वरीष्ट पत्रकार कुमार कृष्णन ने अपनी शोक संवेदनाएं प्रकट करते हुए कहा कि “वह एक निर्भीक और समर्पित फोटो पत्रकार थे। उनका निधन फोटो पत्रकारिता के लिए एक बहुत बड़ा झटका है”
80 के दशक में महात्मा गांधी पर की गयी उनकी स्टोरी काफी चर्चित रही। वेलछी काण्ड, देलेलचक-भगौरा, भूमि संघर्ष, लहसुना से विक्रम हथियार प्रदर्शन, भागलपुर दंगा ,भागलपुर आंखफोड़ काण्ड , बारा काण्ड के दौरान उनके द्वारा ली गई तस्बीरें भी काफी चर्चित हुई। रविवार के सम्पादक एस पी सिंह भी इनकी तस्वीरों के कायल थे।
दिल्ली में बातचीत के क्रम में ही राजीव जी ने मुझे बताया था कि कोविड के दौरान उनके पुत्र रोहित और पुत्री सरस्वती की मदद से उन्होंने अपनी खींचे सारे फोटो के निगेटिव स्कैन करवाई है। ऐतिहासिक छवियों का संकलन है उनकी लाइब्रेरी में। फिर चाहे वो जे पी के छात्र आंदोलन की तस्वीरें हो या प्रेस बिल के खिलाफ आंदोलन।
बिहार एवं देश के सभी बड़े नेता की फोटोग्राफ्स, जेपी, विनोबा भावे, इंदिरा गाँधी, चरण सिंह, चन्द्रशेखर जी, वी पी सिंह, देवी लाल, कर्पूरी ठाकुर,राजीव गाँधी, अटल बिहारी वाजपेई, लाल कृष्ण अडवाणी जैसी हस्तियों का कवरेज उन्होंने किया। जल्द ही उनके फोटोग्राफ्स की पुस्तक आनेवाली थी जिसको लेकर वो काफी उत्साहित थे। यह पुस्तक प्रकाशित होती इससे पहले ही राजीव जी इस दुनिया से रुखसत हो गए।
इसी वर्ष मार्च में दिल्ली में राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश जी ने उन्हें तिलकामांझी राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित भी किया था। निसंदेह नैतिकता की प्रबल भावना एवं प्रभावी ढंग से संवाद के साथ विभिन्न दबाबो में भी काम करने में हमेशा सक्षम रहे राजीवकांत के निधन की खबर से पत्रकारिता जगत में शोक की लहर है। जैसे ही पटना में उनके निधन की खबर फैली पत्रकारों ,फोटोग्राफर और राजनेताओं की ओर से शोक संवेदनाएं आने लगी। अपनी साहसिक फोटो पत्रकारिता के लिए राजीवकांत हमेशा याद किए जायेंगे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
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