प्रिय भड़ास,
यह सिर्फ शिकायती पत्र नहीं है। न ही किसी एक व्यक्ति की ओर से है। यह अमर उजाला के पीड़ित और शोषित कर्मचारियों की ओर से है। इस पत्र के जरिए नव नियुक्त संपादक महोदय की तानाशाही को उजागर किया जा रहा है। AUW यानि अमर उजाला वेबसाइट में इन दिनों कर्मचारियों का जमकर शोषण हो रहा है। इस पत्र के जरिए श्रम विभाग से गुहार है कि वह कर्मचारियों के साथ हो रहे अन्याय की पड़ताल करे।
आने वाले दिनों अमर उजाला की वेबसाइट नई ‘ऊंचाइयों’ को छूने वाली है, ठीक वैसे ही जैसे की हिंदुस्तान की छू रही है। इसका कारण भी वही होंगे जो हिंदुस्तान से अब अमर उजाला पहुंच गए हैं। यूं तो जनाब खुद को बड़ा लो प्रोफाइल एडिटर बताते हैं, पर अब पता लग रहा है कि वाकई कितनी ‘निम्न श्रेणी और निम्न सोच’ के आदमी हैं। हालांकि उम्मीद करते हैं कि वे अमर उजाला की रोशनी बनाए रखेंगे, हालांकि ये मुश्किल नजर आ रहा है। जिस तरह का माहौल वे बना रहे हैं और जिस तरह से कंटेंट टीम का शोषण कर रहे हैं, निश्चित ही अमर उजाला को भविष्य में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। शोषण और निकृष्टता का वातावरण तैयार करने की कुछ बानगी देखिए…
– सबसे पहले 5 दिन से 6 दिन का काम कर दिया गया वो भी सिर्फ कंटेंट टीम के लिए। हैरानी तब होती है जब HR और मैनेजमेंट इस बारे में सूचित नहीं करते, महाशय करते हैं तो इसे किसका निर्णय समझा जाए। जबकि महाशय जी ठीकरा फोड़ते हैं मैनेजमेंट के सिर पर।
– एक और बात समझ नहीं आई, अगर एचआर पॉलिसी में ही बदलाव किया है तो फिर ये कैसी पॉलिसी है जो कंटेंट के लिए 6 दिन औऱ बाकी सबके (प्रोडक्ट, मैनेजमेंट, मार्केटिंग, आईटी) के लिए 5 दिन की है।
– एचआर पोलिसी में साफ-साफ 5 दिन काम करवाने का प्रावधान है, उसी हिसाब से सबकी सैलरी और छुट्टियां तय हुई हैं। पर अब 6 दिन के हिसाब से न तो किसी की सैलरी बढ़ाई गई जा रही है और ना ही सालभर में मिलने वाले छुट्टियों जैसे अन्य लाभ। सबूत के तौर पर HR Policy का ये स्नैपशॉट देखिए….
– 6 दिन काम का फरमान सुनाते वक्त कहा गया कि ‘उत्पादकता’ घटी है, ‘बुद्ध पुरुष’ ने यह नहीं पूछा कि किस सेक्शन में कितने काम कर रहे हैं। फीचर में तो एक-एक आदमी के हवाले पूरा का पूरा सेक्शन है। तो छुट्टी वाले दिन भी लोग घर से जुटे रहते, कर्मठता का सिला ये मिला कि अब न घर से काम कर सकते हैं और ज्यादा दिन ऑफिस भी आना है। जबकि तनख्वाह तो बढ़ेगी ही नहीं। न्यूज टीम का हाल तो उससे भी बुरा है। यहां अब चमचों की भर्ती के लिए पुराने कर्मठ लोगों को ‘चाटुकार’ के जरिए परेशान किया जाने लगा है।
– चाटुकारों की मौज… जब से नए महाशय ने कार्यभार संभाला है ऑफिस वालों को एक नया चाटुकार देखने को मिला है… चाटुकार आजकल जी-हुजूरी में ही लगे रहते हैं। सब कंटेंट वाले जब एक स्वर में 6 दिन के लिए बात करने वाले थे तो इन्हीं चाटुकार महोदय ने आकर सबको मीठी गोली दी और अपनी चाल चल कर दोनों ओर से भले बने रहे।
– एचआर में AUW को नया आदमी दिया गया है, पर ये HR का कम और महाशय का ‘झंडू’ ज्यादा नजर आता है।
– वर्क फ्रॉम होम खत्म…. डिजिटल में काम करने वाले इस बात से वाकिफ हैं कि वर्क फ्रॉम होम की अहमियत और जरूरत क्या है… पर लगता है जनाब अभी तक प्रिंट की आदतें ही नहीं छोड़ पा रहे। तभी तो जरुरतमंदों के लिए भी इसे खत्म कर दिया गया।
– छुट्टियां अधिकार है पर ले के तो दिखाओ…. एक बैठक में कहा गया छुट्टियां कर्मचारी का अधिकार है जरुर लें, पर कोई दे तो।
– एक साथी कर्मचारी पिछले दिनों दुर्घटना का शिकार हुए उन्हें छुट्टियां मिलने में जो मुश्किल आ रही है सो तो अलग है उन्हें घर से भी काम नहीं करने का विकल्प नहीं दिया जा रहा। इससे ज्यादा शोषण और अमानवीय व्यवहार और क्या होगा।
– चाय तक पर रोक लगी है… एक वक्त था जब चार लोग साथ चाय पी सकते थे पर अब तो अकेले चाय पीने के लिए भी सोचना पड़ता है। जबकि चाटुकार खुद पर 5 मिनट में ऑफिस के बार दिखते है। तर्क है कि इससे समय बर्बाद होता है, पर हम पूछते हैं कि हे बुद्ध पुरुष जरा बताओ चार लोग जाएं या एक 10-15 मिनट में लौट आएंगे। जबकि एक-एक जाएगा तो 6 आदमी औसत में 60 मिनट बिता आए। पता नहीं किस बुद्धिमान ने महाशय को यह सलाह दी या उनकी खुद की बुद्धिमानी है।
– कर्मचारियों पर बेवजह की तांकाझांकी…. अधिकारियों का काम मैनेज करना होता है न कि जासूसी करना, पर जनाब को काम तो करना नहीं जासूसी जरूर करनी है। ऑफिस के कोनों से यूं झांकते रहते हैं मानो सारे कामचोर बैठे हों। इससे आप की ही इज्जत कम होती है महाशय जी।
– इसी माहौल को देखते हुए इस्तीफों का दौर शुरू हो गया है और नहीं मैनेजमेंट को चेतावनी है कि अगर माहौल नहीं बदला तो जल्द ही हड़ताल भी हो सकती है।
नए महाशय का कहना है कि यहां बडे़ नाम वाले संपादक आए और गए पर ‘कुछ नहीं’ कर गए। शायद उनका इशारा कर्मचारियों के शोषण की ओर था जिसकी कलई अब धीरे-धीरे खुल रही है। इस पत्र के जरिए हम सब मैनेजमेंट और मालिकों से कहना चाहते हैं कि इस महाशय के निर्णयों से अमर उजाला की साफ सुथरी और कर्मचारी हितैषी छवि को निश्चित ही अपूरणीय नुकसान हो रहा है और आगे भी होगा।
मैनेजमेंट और मालिकों को चाहिए कि वे पुनर्विचार करें कि कही ‘बंदर के हाथ में बंदूक’ तो नहीं दे दी गई है। अभी तो हिटलरशाही का वातावरण तैयार हो रहा है, धीरे-धीरे वो वक्त आएगा जब कर्मचारी के गुस्से का फल गिरती विजिटर संख्या के रूप में दिखेगा। महाशय से भी यही प्रार्थना है कि ‘जड़ता’ को छोड़ दें औऱ डिजिटल बनें। हो सकता है आप अनुशासन के नाम पर डर पैदा कर रहे हों और संभवतः यही आपके लिए आत्मघाती साबित हो। रही बात नजरों की तो वो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि गिरे हैं कि नहीं।
सादर
अमर उजाला कंटेंट के सभी डिजिटल मजदूरों की ओर से