मुझे पत्रकारिता का पेशा इसीलिए पसंद है। अपना काम करते रहने के लिए किसी लाला की दुकान की जरूरत नहीं पड़ती। हालांकि, लालाओं ने स्थिति इतनी विकट कर दी है कि किसी चैनल या अखबार में नौकरी करने के लिए गालियां सुननी पड़ती है जबकि नौकरी छोड़ना इतना आसान नहीं होता है। पर नौकरी छोड़कर कहां कोई इतना कवरेज या समर्थन पाता है। घर-परिवार चलाने के लिए पत्रकारिता के सिद्धांतों से समझौता करके नौकरी करते रहने से अच्छा है पत्रकारिता छोड़कर पैसे ही कमाए जाएं और पैसे कमाने का बंदोबस्त हो या हो जाए तो विशुद्ध (जैसा मन करे) पत्रकारिता की जाए।
मशहूर नर्तकी मृणालिणी साराभाई के निधन पर प्रधानमंत्री द्वारा शोक नहीं व्यक्त किए जाने पर उनकी बेटी, मशहूर नृत्यांगना – मल्लिका साराभाई ने फेसबुक पर लिखा था कि प्रधानमंत्री को इस पर शर्म आनी चाहिए। इस पर भाजपा नेता और मध्यप्रदेश के विधायक कैलाश विजयवर्गीय मामले को पूरी तरह मोड़ दिया और ऐसा उन्होंने जानबूझकर भारतीय संस्कृति, मान्यता और रिवाजों की आड़ में किया जो तकनीकी तौर पर तो सही था पर पहली ही नजर में गलत और झूठ लग रहा था। उन्होंने फैला दिया कि मृणालिनी के निधन के दिन ही पीएमओ की ओर से उनके बेटे कार्तिकेय साराभाई के पास संवेदना प्रकट करते हुए एक पत्र भेजा गया था। बताया गया कि यह पत्र निधन वाले दिन ही लिखा गया था (जबकि मल्लिका ने अगले दिन प्रधानमंत्री को कोसा था)। कैलाश विजयवर्गीय ने इसकी जानकारी ट्वीटर पर भी दी बताते हैं।
तब ज्यादातर अखबारों और चैनलों ने विजयवर्गीय के बयान को जस का तस उनके हवाले से या उनका नाम दिए बगैर या भाजपा नेता के हवाले प्रसारित कर दिया। सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस ने मृणालिणी साराभाई के बेटे से संपर्क करके सच जानने की कोशिश की थी और लिखा था कि सैकड़ों शोक संदेश आए हैं जिन्हें उन्होंने तब तक देखा नहीं था। ज्यादातर मीडिया संस्थानों ने इसकी जरूरत नहीं समझी। अब जब इंडियन एक्सप्रेस ने ज़ी न्यूज से विश्व दीपक के इस्तीफे की खबर छापी है तो लगता है कि पत्रकारिता सीखने वाले नए पुराने लोगों के लिए अंधेरे में एक किरण तो है ही।
पढ़िए इंडियन एक्सप्रेस की खबर
Zee News producer quits: Video we shot had no Pakistan Zindabad slogan
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.