अनुराग अनंत-
अनिल कुमार यादव कथाकारों के कथाकार हैं। ठीक वैसे जैसे कवियों के कवि होते हैं। मैं उन्हें गद्य के संस्थान की तरह देखता पढ़ता हूँ। यह मेरा निजी मानना है आप इससे भिन्न सोच-देख सकते हैं। उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं अपनी दृष्टि, अपनी समझ कह रहा हूँ।
अनिल यादव जिन्हें प्रेम और सम्मान से अनिल भइया कहता हूँ, उनकी भाषा एकदम अलग है। पर इस तरह अलग नहीं कि अनचिन्हार लगे। एलियन हो जाये। वह इतनी अलग है कि अपनी माटी की बोली लगती है। अपनी ज़मीन से पहली बारिश से उठती हुई भाप सी। अनिल भइया की भाषा में जो अलग सा शिल्प है वह शिल्प उन्होंने भाषा में अपने आपको रमा कर अर्जित नहीं किया बल्कि ज़िंदगी में ख़ुद को जोतकर प्राप्त किया है। यह भाषा का शिल्प नहीं है यह उनके जीवन का शिल्प है जो भाषा में परावर्तित होता है।
उनके पात्र, उनकी कथा वह जादूई संसार रचते हैं जहाँ हमारा यथार्थ रहता है। वह दर्पण गढ़ते हैं जो हमारे सत्य के सामने खड़ा हो जाता है। वह समय बुनते हैं जिसमें हम स्थित हैं।
अनिल भइया का नया उपन्यास आया है Bynge Hindi पर, नाम है स्टेशन। पढ़ आइए। भीतर से समृद्ध होंगे। अभी पहला अध्याय ही आया है और वही पढ़ा है सो अभी उस पर कुछ कहने की स्थिति तो नहीं है पर जैसे जैसे कथा आगे बढ़ेगी बात उस पर भी करेंगे। पर इस यात्रा के सहभागी बनिए। यह एक आनंद, एक सुख, एक अनुभीति की यात्रा का साझीदार होना है।
बधाई भइया और शुभकामनाएं
Anurag Vats और पूरी टीम धन्यवाद इतनी कहानियों और उपन्यासों को ऐसे संयोजित, समायोजित करने के लिए।
चंदन पांडेय-
बहुत दिनों बाद आज एक मौका छोटे से इंतजार का मिला। साढ़े सात बजे घड़ी देखा कि आठ बजने में अभी वक्त है। फिर आठ पांच पर ध्यान गया कि आठ बजकर बीत चुका है।
तुरंत अनिल कुमार यादव के उपन्यास ‘स्टेशन’ के बिंज वाले पेज पर पहुँचा। नया एपिसोड आ चुका था।
एपिसोड बेहतरीन बन पड़े हैं। देखते हैं आगे क्या होता है जैसी इच्छा कुलबुला रही है। लेखक को बधाई।