Animesh Mukharjee : बतख से ऑक्सीजन का बनना… बिप्लब देब के बयान के बाद उसका वैज्ञानिक आधार सामने आ गया है. मीडिया में बतख से ऑक्सीजन बनने की खबर चलने लगी है. ये बात बिलकुल सही है कि बतख किसी तालाब का ऑक्सीजन लेवल ‘बनाए रखने’ में मददगार होती है. लेकिन बनाए रखना और बढ़ाना दोनों बिलकुल अलग बाते हैं।
किसी भी तलाब में अगर पानी ठहरा रहे तो उसमें कमल, सिंघाड़ा जैसे पौधे या काई जमने लगती है। ऐसे में ये सब सतह को ऊपर से ढक लेते हैं और पानी के नीचे रहने वाले जानवरों और पौधों को धूप नहीं मिलती. धूप नहीं मिलती तो पानी के अंदर के पौधों में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता और पानी में बिना ऑक्सीजन का अपचयन शुरू हो जाता है. इससे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। बतखें तैरती रहें तो पूरा तालाब नहीं ढकता है और नीचे के पौधों को ऑक्सीजन मिलती रहती है।
यह सामान्य ईको सिस्टम है। इसमें अगर आप बतख बढ़ा देंगे तो स्थिति सुधरेगी नहीं। जैसे एक समय पर हिरणों की दुर्लभ प्रजाति को बचाने के लिए अफ्रीका में एक जगह से शेरों को हटा दिया गया। मगर जितने हिरण बढ़े उतने ही चारे की कमी से मर गए।
गलती विप्लब देब की नहीं है। दक्षिणपंथ के झुकाव वाले लोगों को हर प्राकृतिक चीज़ विज्ञान लगती है। अगर किसी सामाजिक प्रथा के पीछे की बात होगी तो लोग उसके पीछे के समाजशास्त्र को साइंटिफिक रीजन बता देंगे।
सभी धर्मों के नियम, भारत की वैदिक सभ्यता की वैज्ञानिक खोजों को कम से कम 1500 साल हो चुके हैं। विज्ञान बहुत आगे निकल गया है। आप वैदिक गणित से 10 अंकों की संख्या का 15 अंकों की संख्या से 2 मिनट में गुणा करना बताएंगे, एडवांस मैथ में संख्याएं होती ही नहीं हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या-क्या कर सकता है आप सोच भी नहीं सकते।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि विश्व विज्ञान में भारत की देन को काफी नज़रअंदाज़ किया गया है, लेकिन दो बातें जान और समझ लीजिए। आपकी 3000 साल से ज्यादा पुरानी उपलब्धियां अब म्यूज़ियम का हिस्सा हैं, लैब का नहीं। दूसरी बात विज्ञान की खोई हुई कड़ियों को जोड़ना है तो उसे विज्ञान पढ़ने वालों पर छोड़ दीजिए, उन्हें तो आप गिरफ्तार कर रहे हैं. इतिहास भूगोल और विज्ञान पढ़ाने का ठेका खुद नेताओं को दे रखा है।
लेखक अनिमेश मुखर्जी जन्तु विज्ञान में स्नातक है और राष्ट्रीय विज्ञान प्रतिभा खोज परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुके हैं.
One comment on “दक्षिणपंथ के झुकाव वाले लोगों को हर प्राकृतिक चीज़ विज्ञान लगती है!”
भड़ास पर एक खास विचारधारा के भड़ासियों का कब्जा हो गया है. इन्हें लगता है कि सारा ज्ञान-विज्ञान इन्हीं की बपौती है और ये जो भी ऊल-जुलूल बकेंगे, वो सब विज्ञान के ही दायरे में आएगा. दूसरी विचारधारा (हिंदू) के लोग निरे अनपढ़ और गंवार हैं और उन्हें सिर्फ और सिर्फ वामपंथियों का भाषण सुनना चाहिए. ये खुद को अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थक प्रचारित करते हैं, लेकिन कोई दूसरा बोले या अपनी राय रखे तो इन्हें आपत्ति होने लगती है.
भड़ास दरअसल ऐसे लेखकों-पत्रकारों-विचारकों-कार्यकर्ताओं आदि का फेसबुक एग्रीगेटर बन गया है, जो एक खास वर्ग की विचारधारा को अन्य लोगों पर थोपना चाहते हैं और ऐसा करते वक्त वे कई बार अशिष्ट और असभ्य भाषा का इस्तेमाल करने से भी नहीं बचते. जुम्मा-जुम्मा ग्रैजुएट हुए कुछ लोग साइंस का ‘एस’ पढ़ते ही दुनिया को ज्ञान देने निकल पड़ते हैं.
यह देखकर दुख होता है कि इस प्लैटफार्म पर ऐसे लोगों को जगह देकर आप एक तरह से उन्हीं लोगों के हाथ मजबूत कर रहे हैं, जिनके खिलाफ आपने ऐलाने जंग कर रखा है.
आतंकी कहे या नक्सली….या फिर दोनों….समझ में नहीं आ रहा है….लेकिन सच है कि जिसे अपने मां बाप और खानदान का पता नहीं होता है उसे लावारिस कहते है…एेसे बुद्धिजीवियों को मैं चाय से गरम केतली ही कहुंगा….जो खुद को दूसरे से ज्यादा समझदार और बुद्धिजीवि समझते हैं…लेकिन हकीकत में खुद के बारे में ही पता नहीं होता….लेकिन दूसरे को पढ़ाने सिखाने का जुनून सवार होता है