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आवाजाही

ब्लागर और लेखक अनूप शुक्ल को आयुध निर्माणी, शाहजहांपुर के महाप्रबंधक का कार्यभार

सबसे उपर- अनूप शुक्ल. नीचे बाएं- दोस्तों को किताब भेंट करते अनूप शुक्ल. नीचे दाएं- नई जिम्मेदारी के लिए अनूप शुक्ल को ओपीएफ, कानपुर से विदा करते हुए महाप्रबन्धक श्री डी. के. बांगोत्रा जी, संयुक्त महाप्रबन्धक सुनील चतुर्वेदी जी, कार्य प्रबंधक आयशा , कार्यप्रबन्धक आशुतोष त्रिपाठी और अन्य साथी।

हम जहां हैं , वहीं से आगे बढ़ेंगे….

मैंने मांगी दुआएं दुआएं मिली
अब दुआओं पे उनका असर चाहिए।

जबसे कानपुर से शाहजहांपुर आकर यहां आयुध निर्माणी, शाहजहाँपुर के महाप्रबन्धक का कार्यभार संभाला है, नन्दन जी की यह कविता लगातार याद आ रही है। अनगिनत लोगों की शुभकामनाओं और प्यार के कारण यह जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिला। मुझसे जुड़े लोगों की दुआएं मेरे साथ हैं। उनका असर भी जरूर होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

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शाहजहांपुर में तैनाती मेरे लिए घर वापसी जैसी है। अपने लोगों के बीच लौटना है। पहले भी यहां रह चुका हूँ। यहां की अनगिनत खुशनुमा यादें है। उम्मीद है कि और भी तमाम अच्छी यादें जुड़ेंगी।

इसके पहले कानपुर रहा साढ़े तीन साल। वहां से तमाम अच्छी यादों के साथ विदा हुआ। बहुत कुछ सीखा। साथियों का अद्भुत सहयोग , आदर, स्नेह मिला। उसके प्रति आभार व्यक्त करके किसी को नाराज करना ठीक नहीं होगा। उनके स्नेह, आदर का पात्र बने रह सकने लायक काम कर सकूं यही प्रयास रहेगा।

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कानपुर से विदा होते समय तमाम मित्रों को उपहार में मैंने किताबें दीं (अपनी कोई नहीं)। जिसको जो पसंद हो , ले ले वाली अंदाज में। इस इस्कीम के साथ कि जो अपने किसी दोस्त से एक्सचेंज करके दो किताबें पढ़कर उसके बारे में बताएगा उसको एक किताब और मिलेगी। अभी तक किसी ने किताब पढ़े जाने की सूचना नहीं दी है।

कुछ लोगों ने अपनापे भरी गुंडागर्दी दिखाते हुए दो-तीन किताबें जबरियन हासिल की। बाकयदा हमसे दस्तखत कराकर। यह अपनापा अपन के जीवन की नियमित संजीवनी है।

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एक साथी ने दो किताबें लेते हुए पूरी मासूमियत से सवाल किया -‘आपको ये किताबें कहीं से मिलीं थी क्या जो इस तरह सबको बांट रहे हैं।’ सवाल सुनकर हमारे खर्च हुए हज्ज़ारो रुपये मुंह छिपाकर हंसने लगे। मुझको अपने तमाम डॉक्टर दोस्त याद आये जो मेडिकल रिप्रेसेंटेव से नमूने के तौर पर मुफ्त में मिली दवाइयां परिचितों को बांटते हैं।

वैसे किताबें भी दवाइयां ही हैं। तमाम अलाय-बलाय से बचाती हैं किताबें।

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शाहजहाँपुर बलिदानी शहर है। गर्रा और खन्नौत नदियों की बाहों के घेरे में बसा शहर क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खां और रोशनसिंह की जन्मभूमि है। वीर रस के कवि स्व. राजबहादुर विकल कहते थे :

पांव के बल मत चलो अपमान होगा,
सर शहीदों के यहां बोए हुए हैं।

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निर्माणी के साथियों की आत्मीयता से अविभूत हूँ। तमाम लोगों ने अलग-अलग तरह यादे संजोई हैं। कल एक बुजुर्ग टेलर ने हमारे पुराने साथी मरहूम अब्दुल नवी की याद दिलाते हुए बताया -‘हमको याद है कि अब्दुल साहब की मय्यत में आप गए थे तो सबसे आखिर में वापस लौटे थे।’

अब्दुल नवी साहब मेरे अब तक के जीवन में मिले सबसे बेहतरीन इंसानों ने सबसे अव्वल लोगों में थे। जितना मुझे उनकी असमय मौत का अफसोस है उतना किसी और की मौत का नही हुआ। उनको जब भी याद करता हूँ रोना आता है। अभी भी आंसू आ गए उनको याद करते हुए।

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वापस लौटने पर अरविंद मिश्र के न होने का भी बेइंतहा अफसोस है। पूरे शहर के साहित्यिक-सांस्कृतिक हलचल की धुरी थे अरविंद मिश्र। उनके न रहने से शहर की साहित्यिक रौनक कम हो गयी। सबसे मिलकर रहना। आगे बढ़कर जिम्मेदारी से काम करना। बिंदास , बेलौस अंदाज में कविता, व्यंग्य औऱ संचालन। बहुत याद आएंगे , हर आयोजन में।

और तमाम लोग हैं यहां अभी भी। सबसे फिर से मिलना होगा। नई यादें जुड़ेंगी।

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चुनौतियां बहुत हैं। कठिनाइयों भरी जिम्मेदारी। पूरा भरोसा है कि जो जिम्मेदारी मिली है उसे अपनी मेहनत और सबके सहयोग से निभा सकूंगा। अपने दोस्त राजेश की कविता के संकल्प के साथ:

हम जहां हैं,
वहीं से, आगे बढ़ेंगे।
है अगर यदि भीड़ में भी हम खड़े तो,
है यकीं कि, हम नहीं,
पीछे हटेंगे।
देश के बंजर समय के बांझपन में,
या कि अपनी लालसाओं के
अंधेरे सघन वन में,
पंथ, खुद अपना चुनेंगे।
या अगर है हम
परिस्थितियां की तलहटी में,
तो
वहीं से,
बादलों के रूप में, ऊपर उठेंगे।

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जाने-माने ब्लागर और लेखक अनूप शुक्ल की एफबी वॉल से.

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1 Comment

1 Comment

  1. पुनीत शुक्ला

    December 7, 2019 at 6:32 am

    अमेरिका यात्रा फलीभूत हुई है।
    ऐसा प्रतीत होता है।

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