अनुभव सिन्हा-
आज कल लिख रहा हूँ। भूमिगत हूँ। जब थक जाता हूँ तो आपसे बात करने आ जाता हूँ। लेखकों और ऐक्टर्स से बात चीत की श्रृंखला में कुछ और बातें।
१. हर निर्देशक हर समय किसी लेखक की तलाश में हो ये ज़रूरी नहीं। तो पहला सवाल ये होना चाहिए कि क्या आपको इस समय किसी लेखक की आवश्यकता है? इस सवाल का जवाब मिलने की आशा ज़्यादा है। ज़्यादातर संदेश ऐसे आते हैं। कुछ typical संदेश और उनसे पहुँचने वाली बात बयान करता हूँ। इस सबसे पहले एक बात ध्यान रखिए। आपका इकलौता संदेश नहीं आया उस सोमवार। अट्ठारह और थे जिनके नंबर saved नहीं थे। सारे लेखक नहीं थे। पर कुछ थे। सारे संदेश पढ़े भी नहीं जाते।
अ) ‘मेरे पास एक कमाल की कहानी है। सिर्फ़ बीस मिनट का समय दीजिए’ आप ने ये मान लिया कि निर्देशक को कहानी की ज़रूरत है। आपने ये भी मान लिया कि वो विश्वास करे कि कहानी कमाल है। आपने ये क़तई consider नहीं किया कि आपसे पहले वो कम से कम कुछ ऐसे लेखकों से मिला होगा जिनकी कहानी का अनुभव ऐसा था कि ये बीस minute कैसे पूरे हों। ज़्यादातर वो बीस मिनट नहीं होते। जब लेखक आता है तो आप इंसान का हाल चाल पूछते हैं। चाय पानी पूछते हैं। कहाँ से है क्या किया है इत्यादि इत्यादि। कई बार उस के बैठते ही समझ आ जाता है कि ये मुलाक़ात ग़लत तय हो गई। पर फिर भी आधा पौन घंटा लग ही जाता है। तो इस संदेश का जवाब देना मुश्किल ही होता है। कम से कम मेरे लिये।
ब) whatsapp में एक pdf स्क्रिप्ट आती है। ‘Hi Sir, I am xxx**@@ this is script register with SWA number ****** please read and respond’ इसमें बहुत सारी समस्यायें हैं। आप अपनी स्क्रिप्ट का सम्मान नहीं करते। Whatsapp एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म है। इस पर स्क्रिप्ट का क्या काम? मुझे व्यक्तिगत रूप से समस्या है इस बात से। मेरे दफ़्तर में whatsapp में स्क्रिप्ट शेयर करना मना है। क़तई वर्जित। कई लोगों के लिए ok भी होगा। पर आपको कैसे पता मेरे लिये ok है। दूसरी समस्या। आपको अंग्रेज़ी लिखनी नहीं आती। कोई बात नहीं। अंग्रेज़ी जानना सबसे ज़रूरी नहीं है। पर आप लेखक हैं। आपके संदेश में त्रुटि हो ही नहीं सकती। I repeat हो. ही. नहीं. सकती. जो भी भाषा प्रयोग करें। कम से कम मुझे संदेश भेजते समय आप जानते हैं कि मुझे कौन कौन से भाषाएँ आती हैं। आपको पता होगा कि आपकी अंग्रेज़ी अच्छी नहीं है और मेरी ठीक ठाक है। संदेश में भी तो कला होनी पड़ेगी। उदाहरण देता हूँ। २००५ में मेरी फ़िल्म रिलीज़ हुई थी दस। अच्छी चली थी। बड़ा मन था शाह रुख़ के साथ काम करने का। मेरी वही स्थिति थी। शाह रुख़ से मेरा कोई परिचय नहीं था। बरसों पहले १९९३ में एक फ़िल्म की दस दिन की शूटिंग के लिए मैं सहायक था। उसमें शाह रुख़ थे। कोई चांस ही नहीं था मैं याद हूँ। मेसेज भेजा और आधे घंटे की मीटिंग मिली। उतना ही माँगा था मैंने। ये बात अलग है कि उसके बाद मैंने फ़िल्म ठीक ठाक सी बना दी। बहुत अच्छी नहीं बनायी। दूसरा उदाहरण। Bob Dylan का एक गाना चाहिए था Article १५ के लिए। सबने मदद देने से मना कर दिया। सबने कहा असंभव है। इतने पैसे माँगेंगे कि संभव ही नहीं। तीन चार महीने की जद्दों जहद के बाद उनके एक सहायक का मेल आईडी मिला। तीन दिन लगा के मेल ड्राफ्ट किया। अंततः मैंने वो गाना बहुत सामान्य पैसों में लिया उनसे। आप William Goldman होंगे। पर जब तक मैं पढ़ूँगा नहीं पता कैसे चलेगा। भाई मैं मेरी अपनी लड़ाई लड़ रहा हूँ और आप अपनी। मुझे अपनी लड़ाई में शामिल करना आसान नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि नये लोगों के साथ काम नहीं करता। पहली फ़िल्म से ले के आजतक ऐक्टर्स, लेखक, छायाकार, एडिटर, संगीतकार, गीतकार पता नहीं कितने हैं। तैतीस साल हुए काम करते करते। अब याद भी नहीं रहता। पता कर लीजिए।
एक बात और समझनी पड़ेगी स्क्रिप्ट पढ़ना एक बड़ा काम है, वो सिर्फ़ समय को मोहताज नहीं है। मनःस्थिति की भी आवश्यकता है। कभी ही मन होता है कि आज नया पढ़ते हैं कुछ। कई बार यूँ भी हुआ है और होता रहेगा कि पैसे खर्च कर के एक स्क्रिप्ट लिखवाई है और छह आठ महीने के बाद लिख के आयी तो दो महीने मुझे ही लग गये उस को पढ़ने में। ज़ाहिर है कहानी पसंद थी, लेखक पसंद था तभी तो पैसे खर्च किए। लिखने से पहले लेखक के साथ समय व्यतीत किया होगा। बहुत सी बातें की होंगी। ज़्यादा चांस ये है कि पसंद आयेगी। या उम्मीद के आस पास तो होगी ही। फिर भी समय लग जाता है। ज़िंदगी में रायते भी तो बड़े होते हैं।
और भी लिखूँगा कभी। ये सब कुछ नहीं है। काफ़ी कुछ है। अपना गुण गान ऊपर (शाह रुख़ और बॉब डिलन के मुतल्लिक़) किया सिर्फ़ ये बयान करने के लिए कि मेरी अपनी कहानी है। पूरी सच है। तो लब्बोलबाब ये कि आप लेखक हैं तो संक्षेप में एक ऐसा संदेश लिखना आपकी ज़िम्मेदारी है जो मैं इग्नोर ही ना कर सकूँ। फिर भी ignore हो जाये शायद। पर उन दो पंक्तियों में बात होनी चाहिए। स्क्रिप्ट जब तक माँगी ना जाये कभी ना भेजें। आपकी स्क्रिप्ट है किसी के दरवाज़े पे लावारिस नहीं फेंकी जाएगी पाँच रुपये के अख़बार की तरह। और अगर फेंक दी आपने तो फिर ये अधिकार नहीं है आपका कि सामने वाला पढ़े और आपको उत्तर दे। पढ़ ले तो अच्छा नहीं पढ़े तो कोई बात नहीं। मैं तो कभी बिना माँगी स्क्रिप्ट नहीं भेजूँ। कई बार हिट हुआ हूँ कई बार फ्लॉप। पर ऐसा कभी नहीं किया।
ऐक्टर्स के बारे में एक अच्छा आईडिया पकना शुरू हुआ है। लिखित लिखते किसी दिन लगा कि फसल पक गई है तो काट के बिछा दूँगा यहाँ।
एक बात और। लिखना और एक्टिंग करना दो ही ऐसे काम हैं जो कोई भी सोच सकता है कि मैं कर सकता हूँ। editing, cinematography, direction, इत्यादि टेक्निकल मामले हैं। तो उनमें छँटाई की कम आवश्यकता होती है। लेखक और एक्टर भगवान क़सम ऐसे ऐसे टकराते हैं कि लिल्लाह।
लेखकों के लिए। कुछ अंदर की बातें। सब जायज़ हैं मैं ये नहीं कह रहा। जो लोग ये सब मुझसे बेहतर जानते हैं ज़ाहिर है मैं उनसे बात नहीं कर रहा। जो लोग सिर्फ़ एक अवसर के मोहताज हैं वरना उनके पन्नों में मोती बिखरे हैं मैं उनसे भी बात नहीं कर रहा। मैं वो बातें कर रहा हूँ जो मैं ख़ुद follow करता रहा हूँ और करता रहूँगा।
१. अगर एक निर्देशक आपसे घंटे भर के आस पास आप के साथ क्रिएटिव वार्ता कर चुका है पर दुबारा नहीं मिल रहा या जवाब नहीं दे रहा तो उसे जाने दें। कम से कम एक साल के लिए।
२. निर्देशक ऐसा करते हैं कि अपने मित्र निर्देशकोंन को अपनी स्क्रिप्ट पढ़ाते हैं। एडिट के कई version दिखाते हैं। सबके अपने अलग अलग group हैं। क्या लेखक ऐसा कर रहे हैं? उदयीमान लेखकों की बात कर रहा हूँ। स्क्रिप्ट पूरी हो गई मतलब आप के पास एक स्क्रिप्ट है ये सही नहीं है। पूरी हो गई और कम से कम दस ऐसे लोग जिनकी राय का आप सम्मान करते हैं उन्होंने पढ़ ली। उनमें से आठ को बहुत अच्छी लगी तब आप के पास एक स्क्रिप्ट है। ये दस लोग आपके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं। इन्हें संजो के रखें।
३. ऐसे लोगों को बहुत carefully चुनिए। कुछ ऐसे जो ज़्यादा संजीदगी से सिनेमा देखते हैं वो। कुछ जो बेहद commercial हैं वो। अलग अलग उम्र के लोग। महिलायें ज़रूर। नयी नस्ल ज़रूर। जब कोई स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद राय देता है तो सबसे ज़्यादा क़ीमती चीज़ है आलोचना। सुन के अच्छी नहीं लगती। लगता है सामने वाला बेवक़ूफ़ है। ये सबसे ज़रूरी समय होता है। एक शब्द है ‘धैर्य’। धैर्य से सुनें। सिर्फ़ ये ना सुनें कि वो क्या कह रहा है। ये सुनें कि वो क्या कहना चाह रहा है। ज़्यादातर लोग समस्या को articulate (इसका सही हिन्दी शब्द समझ नहीं आ रहा) नहीं कर पाते। ये हमारा काम है कि वो क्या कहना चाह रहे हैं। जब वो सब कह चुके हों तो बोलिये अगर कोई तारीफ़ हो तो अब करें। फिर एक और ड्राफ्ट लिखिए। यही दर्शक भी हैं आपके। दुश्मन तो क़तई नहीं हैं। इन्होंने डेढ़ दो घंटा आपकी स्क्रिप्ट पढ़ने में खर्च किया है। ग़ौर से सुनिए। मेरे कई मित्र मेरे छह छह सात सात ड्राफ्ट पढ़ते हैं। और ये सब नामी गिरामी व्यस्त लोग हैं। मुझ से ज़्यादा व्यस्त। धक्का देना होता है। याद दिलाना होता है। इंतज़ार करना होता है। चिरौरी करनी होती है। करिए।
४. Net पे सारी फ़िल्मों के screenplay उपलब्ध हैं। एक site है Scriptorama.com ऐसी और भी होंगी बहुत सी। आप जानते ही होंगे। पढ़िए। देखिए क्या क्या बेहतर किया उन लोगों ने। पश्चिम कथानक में हमसे दसियों साल आगे हैं।
५. YouTube लेखकों और निर्देशकों के साक्षात्कारों से भरा पड़ा है। Aron Sorkin को सुनिए। Paul Schrader को सुनिए। Paul Schrader फ़ेसबुक पे सक्रिय हैं। फॉलो कीजिए। सिनेमा के इतिहास की जाने कितनी महत्वपूर्ण फ़िल्में लिखी हैं। चुटकुला भी पोस्ट करेंगे तो ज्ञान ही बढ़ेगा।
६. पटकथा (Screenplay) के बारे में पढ़िए। ज़्यादातर पुस्तकें अंग्रेज़ी में हैं। कोशिश करिए। पढ़िए। सलीम साहब ने किसी साक्षात्कार में एक कमाल बात कही थी “अगर आप सीन के अंदर उतर के सीन को देख नहीं पाते, उस कमरे की आवाज़ें नहीं सुन पाते किरदार को एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते देख नहीं पाते तो आप पटकथा लिख ही नहीं सकते”
७. जीवन में गणित बहुत महत्वपूर्ण है। एक गणित मेरा है। माना एक स्क्रिप्ट का एक ड्राफ्ट लिखे के आपने पंद्रह निर्देशकों के पास भेजा और फिर आप इंतज़ार करते रहे। कि शायद कोई पढ़ ले और उसे पसंद आ जाए। महीनों निकल जाते हैं। सालों भी। एक दूसरा तरीक़ा है। पहला दूसरा ड्राफ्ट नहीं भेजा। ऊपर का पॉइंट ३ का प्रोसेस किया। ६ ड्राफ्ट लिखे या उतने कि १० में से आठ लोग कहने लगीं कि हो गया काम। तब भेजा। और तब दोस्त अगर पढ़ लिया ना तो अस्से फ़ीसदी चांस है कि पसंद आएगा ही आएगा। समय उतना ही लगेगा।
८. एक और बात बताता हूँ। ये करोड़ों रुपये की बात है। ये industry अच्छे लेखकों के लिए तरस रही है। रोज़। पिछहत्तर अच्छे पटकथा लेखक आयेंगे तो भी कम ही रहेंगे। मैं स्वयं को अच्छा लेखक नहीं मानता। ठीक ठाक हूँ। मैं ख़ुद उन पिछत्तर का इंतज़ार कर रहा हूँ। उनके सहारे बेहतर फ़िल्में बना सकूँगा।
आज की बात यहाँ समाप्त होती है। लिखता रहूँगा।
सौजन्य – फ़ेसबुक