अघोषित कर्फ्यू जैसा माहौल, इंटरनेट सेवाओं के ठप हो जाने से मीडियाकर्मी परेशान… ‘कश्मीर टाइम्स’ की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने जम्मू-कश्मीर में मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल की है। याचिका में मोबाइल, इंटरनेट सहित लैंडलाइन जैसी तमाम संचार व्यवस्था को तत्काल बहाल करने की मांग की गयी है।
याचिका में अपील की गयी है कि कश्मीर और जम्मू के कुछ ज़िलों में पत्रकारों के आने-जाने पर बंदिशें हटाई जाई जाएं, ताकि वो अपना काम ठीक ढंग से कर सकें। याचिका में कहा गया है कि पत्रकारों के प्रेस कार्ड को महत्वहीन बना दिया गया है। रिपोर्टरों पर आवाजाही के प्रतिबंध से क्षेत्र में रिपोर्टिंग को पूरी तरीके से अक्षम बना दिया गया है।
शनिवार को दाखिल याचिका में कहा गया है कि अुनुच्छेद 370 में परिवर्तनों को लेकर जम्मू-कश्मीर में 4 अगस्त से ही 144 धारा लगा दी गई है। इसके साथ ही मोबाइल कनेक्शन, इंटरनेट सेवा, लैंडलाइन फोन जैसी तमाम संचार की सुविधाएं बंद कर दी गई हैं।
अघोषित कर्फ्यू जैसे माहौल के साथ इंटरनेट सेवाओं के ठप हो जाने से मीडियाकर्मियों को काफी परेशानियां उठानी पड़ रही है। इस प्रकार के प्रतिबंध से पत्रकारों और घाटी के निवासियों को उन मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, जो हमारे संविधान ने अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 19 (1) (जी) और 21 के प्रावधानों के तहत दिया है।
याचिका में कहा गया है कि इस प्रकार की कार्रवाई करने से पहले भारत सरकार द्वारा किसी प्रकार का कोई औपचारिक आदेश नहीं निर्गत किया गया। इस मनमाने फैसले से याचिकाकर्ता अब तक अज्ञात है। संचार व्यवस्था बंद करने के साथ मीडियाकर्मियों की आवाजाही पर सख्त प्रतिबंध से एक आभासी ब्लैकआउट का निर्माण हुआ है। इससे मीडिया और प्रकाशन काफ़ी प्रभावित हुआ है।
याचिका में कहा गया है कि सूचनाओं का ब्लैकआउट सीधे तौर पर लोगों के अधिकारों का प्रत्यक्ष और गंभीर उल्लंघन है, जो उनके जीवन और भविष्य पर प्रभाव डालता है। इंटरनेट और दूरभाष सेवाओं के बंद होने का मतलब यह भी है कि मीडिया किन्हीं भी घटनाओं को रिपोर्ट नहीं कर सकता है। इस स्थिति में कश्मीर के निवासियों के बारे में कोई राय नहीं दी जा सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.
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