1- अर्नब ने पत्रकारिता को नई लैंगुएज ही नहीं बल्कि नई बॉडी लैंग्वेज प्रदान की है। जिसमें गालीक्रिया के साथ तालीक्रिया भी शामिल रहती है। इन्होंने साबित किया है कि ताली बजाने पर किसी समुदाय विशेष का कॉपीराइट नही है।
2- पत्रकारिता में ईमानदारी क्या होती है यह अर्नब ने सिखाया है। उनके ‘टारगेट फिक्सेशन थ्योरम’ के हिसाब से आपका लक्ष्य क्लियर होना चाहिये। निशाना अगर कोंग्रेस पे लगाना है तो सिर्फ उसी पर लगाना है चाहे वह सत्ता में रहे, न रहे.
3- अर्नब ने इस सिद्धांत को खारिज कर दिया है कि पत्रकार को सत्ता के विपक्ष के रूप में कार्य करना चाहिए। अर्नब थेरी कहती है कि पत्रकार को हमेशा विपक्ष के विपक्ष में खड़ा होना चाहिए
4- अर्नब थेयरी सिखाती है कि देश की हर समस्या का हिन्दू मुस्लिम एंगल ज़रूर होता है। जैसे कि आपकी शादी में आंधी से टेंट गिर गया तो एक बार ज़रूर गौर करिये की टेंट हाउस मुसलमान का तो नही था।
5- अर्नब थेरी कहती है कातिल अगर कत्ल करके आराम से सो रहा है तो कातिल को खूब कोसो, उस पर बीसियों डिबेट कर डालो। लेकिन सरकार पर एक भी बार न बोलो की उसको आराम जे सोने क्यों दे रही है. भई, अगर कातिल गिरफ्तार हो गया तो मुद्दा गया समझो..
6- अर्नब सिखाते हैं कि अगर किसी खबर को सांप्रदायिक जामा पहनाना है तो इसमें मौलवी, धर्मगुरु या इस्लामिक स्कॉलर ही काम आते हैं। इसके लिए आपको 5000 रुपये प्रति डिबेट के हिसाब से ‘रेंटल मौलाना’/ रेंटल स्कॉलर आदि हायर करने पड़ते जिनको बड़े आराम से मक्कार, गद्दार, देशद्रोही आदि आदि सम्बोधनों से नवाजा जा सकता है। इसमें विन विन का सिद्धांत काम करता है। यानी दोनों का फायदा.. इस सिद्धांत के अनुसार आज के मक्कार और गद्दार को कल पुनः गालियों से नवाजने के लिए आमंत्रित किया जाता है..
7- अर्नब ने पत्रकारिता में ‘वॉल्यूम डाउन नियम’ के प्रतिपादक है जो निम्न है- “जब कोई डिबेटर तर्कों के माध्यम से एंकर पर भारी पड़ने लगे तो पहले उसे पूर्ण या आंशिक गालियों द्वारा हड़काना चाहिए फिर भी वह हार न माने तो उसके माइक का वाल्यूम इतना डाउन किया जाय कि उसके होठों के मूवमेंट से शब्दों का पता न चले”
8- सीजी मुलर के अनुसार “सामायिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। पत्रकार जनता और सरकार के बीच कनेक्शन बनाता है”
अर्नब गोस्वामी के अनुसार “साम्प्रदायिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है . पत्रकार जनता को किनारे कर सरकार से सीधा कनेक्शन भिड़ाता है”
9-मुद्दा सरोकार का है तो कोशिश करें कि डिबेट न ही करें, करें तो ज्यादा से ज्यादा एक दिन। लेकिन मुद्दा फालतू का वैमनस्य बढाने वाला है तो उसे लम्बा खीचें। मुद्दा वही हो बस डिबेट के टाइटिल बदलते रहिये..इसे टायटिल आर्ट कहते हैं। जैसे कि वही पुराना उदाहरण ले लें-शादी में आंधी की वजह से टेंट उखड़ गया..टेंट हाउस वाले का नाम हाफ़िज़ मियां था।
अब इस मुद्दे पर 7 दिन तक इन टाइटिल्स के साथ डिबेट हो सकती है.
–आज देखिये मौलाना का टेन्ट जिहाद.
-बारात में कबाब और बिरयानी भी बांटी थी मौलाना ने
-आज दिखाएंगे टेन्ट हाउस के आड़ में चल रही मौलाना की चाट फैक्ट्री
-आज थूकेगा भारत हाफ़िज़ की सोच पर
-हजारों की सलाद हुई बर्बाद, फिर भी हाफ़िज़ आबाद. .
-आज थरथर काँपेगा मौलाना
-आज देखिये मियां हाफ़िज़ का आतंकी हाफिज़ सईद से कनेक्शन
10- पर्सनल अटैक थ्योरम- यह उकसाऊ पत्रकारिता का प्रमुख सिद्धांत है, इसकी मारक क्षमता माँ बहन की गालियों जितनी ही होती है,जब तर्कशीलता दम तोड़ दे तो इस थ्योरम का इस्तेमाल कर देना चाहिए। जैसे कि मौलाना कह दे कि टेंट उखड़ने की असल वजह तो आंधी थी। तो एंकर को कहना चाहिए -इटली में बैठे अपने अब्बा से बताओ जो सालों से टेंट के आड़ में वेश्यालय चला रहे हैं’
11- विपक्ष पर इतना हमला बोलो की वह हमलावर हो जाये..इससे आपकी वाई श्रेणी की सुरक्षा जस्टिफाई होती रहेगी और इसके भरोसे आप चैनल पर दम लगाकर बोल सकते हैं- देश के हक में आवाज़ उठाता रहूंगा चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए..
व्यंग्यकार पंकज प्रसून लखनऊ के रहने वाले हैं और सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय रहकर खास अंदाज में अपनी बात रखते हैं.
Abhinaw Prakash
April 26, 2020 at 3:46 pm
Bhadas4media hamesa left walo ke gulaam kyo bana rahta hai.. punya prasunn bajpeyi ki to video v leak aa gayi thi ki wo kaise match fixing karte hai aur aap log unhe paragon of honesty se sammanit kar rahe hai..bhai unbiased journalism is very good but one sided journalism is very bad..agar arnab, sudhir chaudhary, rohit sardana modi bhakt hai to baki log v koi na koi bhakt hai..jaise ravish kumar chinese, vami bhakt, punyaprasunn bajpeyi AAP bhakt, bhadas4media vami bhakt, navin kumar gain vami bhakt, rajdeep satdesai and aashutish, rahul kanwal,soniya bhakt…lekin mujhe jaha tak lagta hai.. desh ke liye bolne ka matlab modi ke support me bolna nahi hota..isiliye aap log sahi ko sahi aur galat ko galat kahne ki himmat rakhiye..
Ullap
May 1, 2020 at 3:00 am
Pankaj prasoon is other person then punya prasoon bajpeyi ….you moron
गिरिजेश्वर
May 3, 2020 at 7:01 pm
बढ़िया ! शानदार !