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मिर्जापुर में पत्रकार का उत्पीड़न, दबंगई से जमीन कब्जाने का प्रयास

: जब मामला अदालत में तो राजस्व विभाग कैसे कर सकता है सही-गलत का फैसला : मिर्जापुर के थाना जिगना में एक पत्रकार के उत्पीड़न का मामला सामने आ रहा है. बता दें कि यहां के मनिकठा गांव में पेशे से पत्रकार अनुज शुक्ला की पैत्रिक कृषि जमीन (गाटा संख्या- 612) को समाजवादी पार्टी के नेताओं की शह पर दबंगों द्वारा अवैध निर्माण कर कब्जाने की कोशिश की जा रही है. जबकि इस जमीन के विवादित बिंदु को लेकर मिर्जापुर की जू.डी. कोर्ट में किसी तरह के निर्माण के खिलाफ स्टे ऑर्डर (मुक़दमा संख्या- 463/ 2013) पारित है.

<p>: <span style="font-size: 14pt;">जब मामला अदालत में तो राजस्व विभाग कैसे कर सकता है सही-गलत का फैसला</span> : मिर्जापुर के थाना जिगना में एक पत्रकार के उत्पीड़न का मामला सामने आ रहा है. बता दें कि यहां के मनिकठा गांव में पेशे से पत्रकार अनुज शुक्ला की पैत्रिक कृषि जमीन (गाटा संख्या- 612) को समाजवादी पार्टी के नेताओं की शह पर दबंगों द्वारा अवैध निर्माण कर कब्जाने की कोशिश की जा रही है. जबकि इस जमीन के विवादित बिंदु को लेकर मिर्जापुर की जू.डी. कोर्ट में किसी तरह के निर्माण के खिलाफ स्टे ऑर्डर (मुक़दमा संख्या- 463/ 2013) पारित है.</p>

: जब मामला अदालत में तो राजस्व विभाग कैसे कर सकता है सही-गलत का फैसला : मिर्जापुर के थाना जिगना में एक पत्रकार के उत्पीड़न का मामला सामने आ रहा है. बता दें कि यहां के मनिकठा गांव में पेशे से पत्रकार अनुज शुक्ला की पैत्रिक कृषि जमीन (गाटा संख्या- 612) को समाजवादी पार्टी के नेताओं की शह पर दबंगों द्वारा अवैध निर्माण कर कब्जाने की कोशिश की जा रही है. जबकि इस जमीन के विवादित बिंदु को लेकर मिर्जापुर की जू.डी. कोर्ट में किसी तरह के निर्माण के खिलाफ स्टे ऑर्डर (मुक़दमा संख्या- 463/ 2013) पारित है.

बावजूद पिछले 6 जून से विपक्षियों द्वारा राजनीतिक दबाव बनाकर सरहंगई के जरिए कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है. 26 जून को भी 40-50 की संख्या में जुटे लोगों ने विवादित जमीन पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया. इस बारे में पत्रकार के परिजनों ने जिगना थाने में गुहार लगाई. परिजनों का कहना है कि वहां, उन्हें राजस्व विभाग के आदेश का हवाला दिया गया कि निर्माण कार्य वैध है. लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि इस संबंध में क्या किसी तरह का लिखित आदेश प्राप्त हुआ है, उनका जवाब था कि तहसीलदार का आदेश सर्वोपरि है. ऐसे में सवाल उठता है कि दीवानी कोर्ट बंद होने की स्थिति में न्यायालय का आदेश सर्वोपरि है या कि राजस्व विभाग का. इस मामले में अगर राजस्व विभाग की भूमिका संदिग्ध नहीं है तो न्यायालय में मामला होने पर वह क्यों अपनी सक्रियता दिखा रही है.

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बताते चलें कि इस बारे में अनुज शुक्ला और उनके परिजनों की ओर से जिलाधिकारी, एसडीएम सदर और पुलिस अधीक्षक के यहां शिकायत भी की गई है. 13 जून को मुख्यमंत्री कार्यालय को भी पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए पत्रकार के जान-माल के सुरक्षा की गुहार लगाई गई. लेकिन किसी तरह की सुनवाई नहीं हो पाई है. पीड़ितों ने आरोप लगाया है कि प्रशासनिक अमला न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हुए दबाव में काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि पिछले 20 दिनों के भीतर विपक्षियों ने कई मर्तबा घर पर धमक कर गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी दी. प्रशासन के असहयोग की वजह से विपक्षियों का मनोबल बढ़ा हुआ है.

लखनऊ में प्रदर्शन की चेतावनी
उधर, इस मामले को लेकर जर्नलिस्ट युनियन फॉर सिविल सोसायटी के शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि अदालती आदेश का सम्मान किया जाए और पत्रकार के परिजनों की जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. पत्रकार के परिजनों का उत्पीड़न इसी तरह जारी रहा तो संगठन लखनऊ में आंदोलन करेगा. उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच के लिए जेयूसीएस एक कमेटी गठित करने का विचार कर रही है.

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सोशल मीडिया में आलोचना
कुछ वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर वरिष्ठ पत्रकारों ने प्रशासन के भूमिका और दबंगई की आलोचना की है. लोगों ने कहा कि पत्रकार के जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.

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