विश्वविद्यालयों में आरएसएस के विद्यार्थी विंग एबीवीपी की, सरकारी-पुलिसिया संरक्षण में चलने वाली गुंडागर्दी अपने चरम पर है. 3 फरवरी को जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में जेएनयू की प्रो. निवेदिता मेनन के व्याख्यान पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने हंगामा किया था और राष्ट्रद्रोह की शिकायत भी दर्ज कराई थी. विश्वविद्यालय ने एबीवीपी के फतवे को सरकारी हुक्म का दर्जा देते हुए 17 फरवरी को उस व्याख्यान की आयोजक, अंग्रेज़ी विभाग की प्रो. राजश्री राणावत को सस्पेंड कर दिया. अब दिनांक 20.02.2017 को दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में ‘कल्चर्स ऑफ़ प्रोटेस्ट’ पर आयोजित दो-दिवसीय सेमीनार में वक्ता के रूप में आमंत्रित जनेवि के उमर ख़ालिद और शहला रशीद को बोलने से रोकने के लिए एबीवीपी ने तोड़-फोड़ और हंगामा किया और अपने मकसद में कामयाब रही.
पुलिस ने यह कहकर अपने हाथ खड़े कर दिए कि सेमिनार कराने से पहले उनसे इजाज़त नहीं ली गयी थी, इसलिए वे सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते. आज फिर जब दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने कल की घटना के खिलाफ अपना विरोध जताने के लिए प्रदर्शन की तैयारी की तो एबीवीपी ने खुलकर गुंडागर्दी की. विद्यार्थियों-शिक्षकों को प्रदर्शन की इजाज़त न देते हुए पुलिस ने उन्हें रामजस कॉलेज में ही घेर कर रोक लिया था. वहीं पहुँच कर एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने घिरे हुए प्रदर्शनकारियों पर हमला बोल दिया जिसमें कई लोगों को गंभीर चोटें आयीं. अंग्रेज़ी विभाग के प्रो. प्रशांत चक्रवर्ती को इतना मारा गया कि वे बुरी तरह घायल हैं और अस्पताल में भरती हैं.
घटना को कवर कर रही ‘द क्विंट’ की महिला पत्रकार तरुनी कुमार और ‘न्यूज़क्लिक’ की अपूर्वा को भी चोटें आयीं और उनका कैमरा तोड़ दिया गया. गुंडों ने ख़ासतौर से शिक्षकों को चुन-चुनकर निशाना बनाया. सुवृत्ता खत्री, मौशुमी बोस, आभा देव हबीब, सैकत घोष और अनेक अन्य शिक्षकों के साथ मारपीट की गयी. यह सबकुछ दिल्ली पुलिस की उपस्थिति में हुआ और पुलिस मूक दर्शक बनी रही. पुलिस वहाँ शायद इस उद्देश्य से खड़ी थी कि अगर एबीवीपी की गुंडागर्दी को करारा जवाब मिलने लगा तो वह अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्षधरों पर कार्रवाई करेगी और इस गुंडागर्दी की कामयाबी सुनिश्चित करेगी. शिक्षकों-विद्यार्थियों का जुलूस बाहर निकलने पर भी एबीवीपी का पथराव लगातार जारी रहा और पुलिस ने महज़ दिखावे के लिए उसके कार्यकताओं में से दो-चार को रोका-पकड़ा, लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की.
केंद्र की सत्ता पर अपनी पार्टी के काबिज़ होने के बाद से आरएसएस और उसके विद्यार्थी विंग ने देश के विश्वविद्यालयों को रणक्षेत्र में बदल दिया है और हर नयी घटना के साथ प्रतिगामी विचारों के प्रचार में बाधा बननेवाली, शिक्षकों-विद्यार्थियों की एकता उन्हें बिलकुल नागवार गुज़र रही है. दिल्ली विश्वविद्यालय में उनकी पूरी रणनीति उनकी इसी बौखलाहट को दिखाती है. आलोचनात्मक विचारों के अंकुरण की संभावना को ही नष्ट कर देने पर आमाद आरएसएस को विश्वविद्यालय सबसे बड़े ख़तरे के रूप में नज़र आते हैं तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं. अलबत्ता, उसका यह मुग़ालता ज़रूर आश्चर्यजनक है कि ऐसी दहशतगर्दी और गुंडागर्दी से उस अंकुरण को रोका जा सकता है. शायद यह इतिहास से परिचित न होने का लाभ है. उन्हें इतिहास के पन्ने पलट कर अपनी यह गलतफहमी दूर कर लेनी चाहिए.
जनवादी लेखक संघ और डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (दिल्ली विवि) विश्वविद्यालयों की आलोचनात्मक संस्कृति के प्रति आरएसएस/भाजपा की इस घृणा और उसके हिंसक हमले की कड़े शब्दों में भर्त्सना करता है. हैदराबाद, जनेवि, जोधपुर, जाधवपुर, कुरुक्षेत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय – इनके निंदनीय हमलों और कारनामों की फेहरिस्त लगातार लम्बी होती जा रही है. इन सभी मामलों में, और ठीक इस वक्त चल रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के मामले में, पुलिस की निष्क्रियता और मिलीभगत की भी हम कठोर निंदा करते हैं. हम मांग करते हैं कि इस गुंडागर्दी के खिलाफ एफआईआर अविलम्ब दर्ज की जाए, जिससे कि पुलिस भाग रही है, और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो.
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह (महासचिव, जलेस)
शाश्वती मजूमदार (अध्यक्ष, डीटीएफ)
संजीव कुमार (उप-महासचिव, जलेस)
आभा देव हबीब (सचिव, डीटीएफ)
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