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अमर उजाला ब्यूरो चीफ के खिलाफ धरना

मथुरा में अमर उजाला के ब्यूरो चीफ श्यामा ओझा के विरोध में पिछले दिनों धरना दिया गया। डेम्पियर नगर में भगत सिंह पार्क किनारे धरना पर बैठे प्रकाश चंद्र अग्रवाल की मांग थी कि चीफ ब्यूरो श्याम ओझा को हटाया जाए।

धरना का कारण बताते हुए प्रकाश चंद्र अग्रवाल का कहना है कि श्याम ओझा लोगों से अच्छे से नहीं बोलते और उनका अच्छा व्यवहार नहीं है। वे धरना प्रदर्शन का समाचार नहीं छापते हैं। प्रकाश चंद्र अग्रवाल ने अपनी मांग लिखकर धरना शुरू किया। यह धरना सुर्खियों में रहा। राह चलते लोगों का ध्यान खींचता रहा।

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4 Comments

4 Comments

  1. mayank

    July 16, 2023 at 12:16 pm

    श्याम ओज्झा का तो रोहतक और नॉएडा दफ्तर का भी रिकॉर्ड खराब रहा है. मानसिक रोगी है. अपनी नौकरी बचाने के लिए किसी भी स्तर पर चला जाता है.

    • Rohitash

      September 5, 2023 at 1:14 am

      किसी के बारे में अच्छी तरह से जाने समझे बग़ैर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. मेरे और न जाने कितने मेरे ही जैसे साथियों ने उनके साथ काम किया है. उनकी कर्मठता, समय पाबंदी, कठिन परिश्रमी, स्वाभिमानी, रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क तक हर काम में निपुण, मार्गदर्शक और न्यूज़ रूम में जूनियर साथियों के साथ एक शिक्षक के तौर पर बेहद सौम्य और संजीदा व्यक्ति के रूप में पहचान रही है.रोहतक से उन्हें पदोन्नति देकर नोएडा भेजा गया. नोएडा में एनसीआर डेस्क इंचार्ज के तौर पर पांच साल काम किया. संस्थान ने उनकी काबिलियत को देखते हुए मथुरा जैसे महत्वपूर्ण संस्करण की जिम्मेदारी दी है. रही बात बीमारी की तो उनकी स्वाभिमानिता देखिए की किडनी ट्रांसप्लांट के बाद तीन माह तक अवैतनिक रहे, लेकिन संस्थान के सामने हाथ नहीं फैलाया. इसलिए अपने ज्ञान को जरा परिक्षकृत कर लीजिए. नहीं तो एक दिन मुलाकात कर लें आपके सारे भ्रम दूर हो जाएंगे.

  2. mayank

    July 16, 2023 at 12:27 pm

    श्याम ओझा ने ना जाने कितने लोगों की नौकरी खा ली, बीमार बनकर अमर उजाला से वित्तिय मदद ले ली और अब भूपेन्द्र सिंह और उदय सिन्हा का इस्तमाल करते हैं। रोहतक में मानसिक रोग दिखाकर कुछ दिन घर बैठ गया था। फिर इसे नोएडा भेजा गया। यहाँ भी गुटबाज़ी करने लगा। किसी जिम्मेदार ने देखा ही नहीं इसको।

    • Rohitash

      September 5, 2023 at 1:08 am

      किसी के बारे में अच्छी तरह से जाने समझे बग़ैर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. मेरे और न जाने कितने मेरे ही जैसे साथियों ने उनके साथ काम किया है. उनकी कर्मठता, समय पाबंदी, कठिन परिश्रमी, स्वाभिमानी, रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क तक हर काम में निपुण, मार्गदर्शक और न्यूज़ रूम में जूनियर साथियों के साथ एक शिक्षक के तौर पर बेहद सौम्य और संजीदा व्यक्ति के रूप में पहचान रही है.रोहतक से उन्हें पदोन्नति देकर नोएडा भेजा गया. नोएडा में एनसीआर डेस्क इंचार्ज के तौर पर पांच साल काम किया. संस्थान ने उनकी काबिलियत को देखते हुए मथुरा जैसे महत्वपूर्ण संस्करण की जिम्मेदारी दी है. रही बात बीमारी की तो उनकी स्वाभिमानिता देखिए की किडनी ट्रांसप्लांट के बाद तीन माह तक अवैतनिक रहे, लेकिन संस्थान के सामने हाथ नहीं फैलाया. इसलिए अपने ज्ञान को जरा परिक्षकृत कर लीजिए. नहीं तो एक दिन मुलाकात कर लें आपके सारे भ्रम दूर हो जाएंगे.

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