नई दिल्ली। साथियों, ज्यादातर राज्यों की रिपोर्ट आ गई हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की तरह कई राज्यों ने अखबार मालिकों को बचाने के लिए 20जे की आड़ देने की कोशिश की है। जिनमें दर्शाया गया है कि कर्मचारियों ने 20जे को अपनाया हुआ है और 20जे के तहत वहां मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसाएं लागू हैं। परंतु उन राज्यों के श्रमअधिकारियों ने मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें लागू होने के बाद भर्ती होने वाले नए कर्मियों के वेतनभत्तों को लेकर कोई जांच नहीं की और न ही उन कर्मियों का कहीं कोई जिक्र किया।
यह रिपोर्ट एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के आंखों में धूल झोंकने की तरह है। क्योंकि सिफारिशें लागू होने के बाद भर्ती होने वाले कर्मियों चाहें वे स्थायी हो या ठेके पर या अंशकालिक उनको भी न्यूनतम वेतनमान के अनुसार वेतन नहीं मिल रहा। वे भी न्यूनतम वेतनमान से कहीं कम पर काम कर रहे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की तो अवमानना हुई ही है। बस अब इंतजार है तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णायक फैसले का।
हम यहां उत्तराखंड की रिपोर्ट का उदाहरण दे रहे हैं जिसमें उसने दैनिक जागरण के संदर्भ में लिखा है- कर्मी 20जे में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार 3 सप्ताह के अंदर अपनी सहमति व्यक्त कर चुके हैं। जिसमें उनके द्वारा प्रतिष्ठान में पूर्व में लागू वेतन भत्तों को बनाए रखने का विकल्प दे दिया गया था। कर्मियों द्वारा प्राप्त किए जा रहे वेतन व मजीठिया वेजबोर्ड की संस्तुतियों में कोई विसंगति नहीं है। अत: मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसा भारत सरकार की अधिसूचना के अनुरुप लागू है।
साथियों, आपको इस तरह की रिपोर्टों से परेशान होने की जरुरत नहीं है। राज्य सरकारों ने भले ही 20जे की आड़ में कुछ खास अखबारों को बचाने की कोशिश की हो। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में आखिर न्याय की ही जीत होगी। सुप्रीम कोर्ट के 14 मार्च 2016 के आदेश से भी स्पष्ट होता है कि उसको इन तथ्यों की पूरी जानकारी है कि अखबार मालिक कैसे कर्मियों को मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों से प्राप्त हक को छलपूर्ण तरीकों से वंचित रखना चाहते हैं और इसके लिए विभिन्न हथकंडे अपना रहे हैं। इसलिए उसने कर्मियों को लेबर कमिशनरों के पास जाने का निर्देश दिया था।
साथियों, हम एक बार फिर से आपको बता रहे हैं कि 20जे कहीं भी वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम वेतनमान पाने के आपके हक के आड़े नहीं आ रहा है। क्योंकि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 की धारा 13 में स्पष्ट उल्लेख है कि कर्मचारियों को आदेश में विनिर्दिष्ट मजदूरी की दर से किसी भी दशा में कम मजदूरी नहीं दी जा सकती हैं।
[धारा 13 श्रमजीवी पत्रकारों का आदेश में विनिर्दिष्ट दरों से अन्यून दरों पर मजदूरी का हकदार होना– धारा 12 के अधीन केंद्रीय सरकार के आदेश के प्रवर्तन में आने पर, प्रत्येक श्रमजीवी पत्रकार इस बात का हकदार होगा कि उसे उसके नियोजक द्वारा उस दर पर मजदूरी दी जाए जो आदेश में विनिर्दिष्ट मजदूरी की दर से किसी भी दशा में कम न होगी।]।
साथियों, एक बात और एक्ट बड़ा होता है, नाकि वेजबोर्ड। क्योंकि एक्ट के द्वारा ही वेजबोर्ड का गठन होता है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई को अब मात्र एक दिन बचा है। सुप्रीम कोर्ट दूध का दूध और पानी का पानी करेगा। इसी शुभकामना के साथ। सत्यमेव जयते।
(दैनिक भास्कर के एक पत्रकार साथी से प्राप्त तथ्यों पर आधारित)