दो दिन (25-26 अप्रैल) वाराणसी मोदीमय रहा। एक दिन रोड शो के नाम पर, तो दूसरे दिन नामांकन के समय। जमीन से आसमान तक मोदी-मोदी गूंजता रहा। जमीन (सड़कों) पर खड़े या अपनी छतों एवं बालकनी में खड़े वाराणसीवासियों ने मोदी-मोदी की ध्वनि के साथ मोदी पर फूलों की वर्षा की। यह वाराणसी की सांस्कृतिक परंपरा है कि ‘अपनों’ का दिल खोलकर स्वागत करती है यहां की जनता। 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में कहा था ‘मां गंगा ने बुलाया है’। तब वह गुजरात के बड़ोदरा सीट से भी प्रत्याशी थे। पर इस बार उन्होंने मां गंगा के चरणों में ही अपना भविष्य देखा है।
वाराणसी के लिए यह पहला मौका है जब एक प्रधानमंत्री यहां से संसद में जाने के लिए वाराणसी की जनता के बीच है। वाराणसी के लोग इसे अपना गौरव मान रहे हैं। रोड शो में उमड़े जन-सैलाब को देखा जाए, तो मोदी को दिल्ली जाने से कोई रोक नहीं सकता। पर नहीं भूलना चाहिए कि यह वाराणसी है, जिसे पलकों पर बैठाती है, उसे उसके व्यवहार से नाराज होकर दिल से निकाल भी देती है। वाराणसी औघड़ की नगरी है। यहां की जनता पर औघड़ी साया रहता है। 2014 में जनता ने उनके वादों पर भरोसा किया और पूर्ण बहुमत की सरकार दी। लेकिन 2019 की चुनौती 2014 से ज्यादा कठिन है। 2014 में मोदी बंद मुट्ठी के समान थे। पर इस बार मुट्ठी खुली है।
चुनौती कितनी है- इसका नजारा 25 अप्रैल के रोड शो में दिखा। पीएम मोदी रोड शो में पसीने से नहाए हुए थे। उनका केसरिया रंग का कुर्ता पसीना-पसीना हो गया था। 25 अप्रैल को वाराणसी में सियासत का पारा चढ़ा हुआ था, तो गर्मी के मौसम का तापमान भी 40 डिग्री से ऊपर था। वैसे पीएम मोदी के सामने विपक्ष से कोई भी टक्कर देने वाला प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं है। 2014 में अरविंद केजरीवाल मोदी के सामने टक्कर देने की भूमिका में थे। इस बार विपक्ष ने वाराणसी में मोदी के लिए खुला मैदान छोड़ दिया है। महागठबंधन की शालिनी यादव और कांग्रेस के अजय राय बस प्रत्याशी रह जाएंगे। ये कितना ही जोर लगा लें, मोदी को पछाडऩे में पसीने-पसीने हो जाएंगे। हां, जैसी पिछले दिनों चर्चा थी कि प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती हैं, यदि वह स्थिति बनती, तो मुकाबला रोचक हो जाता।
पर इस चर्चा पर मोदी के रोड शो के एक दिन पहले पूर्णविराम लग गया। राहुल का मत रहा कि पं. जवाहर लाल नेहरू अपने घोर विरोधी राम मनोहर लोहिया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं की इज्जत किया करते थे। उनकी कोशिश होती थी कि इन नेताओं की संसदीय राहों में बेमतलब रोड़े नहीं अटकाए जाएं। नेहरू का मत था कि ऐसे विचारशील दिग्गज नेताओं की बदौलत ही लोकसभा का रुतबा और विश्सास बढ़ता है। राहुल गांधी का कहना रहा कि हमारे पिता राजीव गांधी ने हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ इलाहाबाद से अमिताभ बच्चन को चुनावी मैदान में उतारा था, जिसमें बहुगुणा जी चुनाव हार गए थे। इस तरह का कदम हम नहीं उठाने जा रहे हैं। राहुल गांधी की इस सोच का एक मतलब यह भी निकाला जा रहा है कि कांग्रेस चाहती है कि मोदी सदन में पहुंचें। यदि भाजपा को बहुमत नहीं मिलता है और मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनते हैं, तो संसद में ‘सत्ता से हारे हुए’ नेता के रूप में वह कैसे दिखेंगे, यह देखना चाहती है कांग्रेस।
वाराणसी में हुए रोड शो की तैयारियों के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दो दिन पहले ही वाराणसी आ गए थे। इस रोड शो के जरिए भाजपा अपनी पूरी ताकत दिखाना चाहती थी, जिसमें वह कामयाब रही। लंका चौराहे पर स्थित पं. मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके मोदी ने अपना रोड शो शुरू किया। 2014 में उन्होंने सरदार पटेल की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके रोड शो किया था। रोड शो के लिए मोदी ने गुरुवार का ही दिन चुना। 2014 में गुरुवार के दिन ही उन्होंने रोड शो और नामांकन किया था। इस बार वाराणसी को मोदीमय बनाकर एक दिन रोड शो और दूसरे दिन नामांकन किया। 2014 में वह खुली डीसीएम गाड़ी से निकले थे। उस समय उनके साथ राजनाथ सिंह, अमित शाह जैसे कई बड़े नेता थे। इस बार वह खुली कार में अकेले थे, अपने दो सुरक्षाकर्मियों के साथ। उनके पीछे चल रही डीसीएम गाड़ी में भाजपा के बड़े नेता थे। इस पर वाराणसी के एक संस्कृतिकर्मी ने कहा कि 2014 में ‘सबका साथ’ था, इस बार ‘मोदी का वार’ है।
पांच किलोमीटर से ऊपर के लंबे रोड शो में प्रमुख स्थानों पर लघु भारत दिखा। पीएम के स्वागत में 25 क्विंटल गुलाब के फूलों का इंतजाम किया गया था। गुलाब की पंखुडिय़ों को पैकेट बनाकर लंका से दशाश्वमेघ घाट तक भाजपा के कार्यकर्ताओं ने रास्तों पर पडऩे वाले दुकानदारों और रहवासियों को दिए थे, मोदी के स्वागत के लिए। चुनावी रोड शो को एक इवेंट में तब्दील कर देने का हुनर तो मोदी में है ही, वाराणसी में वह नजारा दिखा। वाराणसी में मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के बाद पीएम मोदी ने घूम-घूम कर 60 डिग्री तक झुक करके, हाथ जोड़ करके जनसैलाब का अभिवादन किया। भाषण-शैली में माहिर मोदी ने वाराणसी की जनता से कहा कि ‘लोग पूछते हैं कि मोदी ने काशी (वाराणसी) में क्या बदलाव किया, तो मैं बताता हूं कि काशी ने मुझमें क्या बदलाव किया। मुझे यहां से वैश्विक स्तर पर मूल्यों के साथ खड़े होने का संबल मिला है।’ बदलाव पर द्विअर्थी संवाद शायद इसलिए था कि काशी को ‘क्योटो’ बनाने का सपना मोदी ने दिखाया था, पर वह सपना आज भी सपना है। विकास की वह गंगा नहीं बही, जिसे दिखाया गया था। मां गंगा भी निर्मल नहीं हो सकीं।
दिनेश दीनू का विश्लेषण.