पत्रकार रोहित द्विवेदी (स्ट्रिंगर स्वदेश न्यूज़ चैनल), मनोज गुप्ता (संवाददाता स्पष्ट आवाज- मान्यता प्राप्त पत्रकार), बालेन्द्र तिवारी (स्वतंत्र बात अखबार) और दीपक कुमार पांडेय से गिरवां की बरियारी खदान में दबंगों ने की मारपीट..
उत्तरप्रदेश के चित्रकूट मंडल का मुख्यालय बांदा कभी खांटी पत्रकारों की कर्मस्थली हुआ करता था। बसपा और सपा सरकार से इस पत्रकारिता को बट्टा लगने का दौर शुरू हुआ जिसने मौजूदा सरकार मे पत्रकारों के ‘बुलडोजर बाबा’ राग-अलाप तक चर्मोत्कर्ष कर लिया है। इस खबरिया मकड़जाल मे फंसे पत्रकारों ने मीडिया मे लोकतंत्र की कसौटी का अंतिम संस्कार कर दिया है।
बांदा मे बीती 29 फरवरी को गिरवां क्षेत्र की बरियारी मौरम खदान मे कवरेज करने गए चार पत्रकार रोहित द्विवेदी, मनोज गुप्ता, दीपक कुमार पांडेय और बालेन्द्र तिवारी पर खदान संचालक संजू गुप्ता के कारखास शैलेंद्र यादव सहित अन्य मातहतों ने हमला कर दिया। पीड़ितों ने अपर एसपी लक्ष्मी निवास मिश्रा को शिकायत पत्र देकर कार्यवाही की मांग उठाई है। मौरम खदान में मारपीट और जूतमपैजार से आहत पत्रकारों के समर्थन मे बांदा के आंशिक पत्रकार कलेक्टर परिसर मे समर्थन देते दिखाई दिए है।
चार पत्रकारों पर बरियारी मौरम खदान में मारपीट और कैमरा, माइक आईडी लूट लिए जाने की खबर सुनकर मौरम मंडी से पोषित पत्रकार बिरादरी मे कोलाहल होने लगा। पीड़ित पत्रकारों का वेदना शिकायत पत्र सोशल मीडिया व्हाट्सएप ग्रुपों मे वायरल होने लगा। आनन-फानन मे छोटे अखबारी व डिजीटल प्लेटफार्म पर खबर ब्रेक की जाने लगी। वहीं बांदा पुलिस द्वारा अपर एसपी साहब की मीडिया को दी गई बाइट अपने अधिकृत ट्विटर हैंडल पर डालना पड़ा जो बाद मे हट गया।
लेकिन सूचना है कि बांदा की मुख्यधारा पत्रकारिता और अखबारों से यह खबर नदारद है। पुलिस के आला अफसरों ने उक्त मामले में जांच कर कार्यवाही का आश्वासन दिया है। यहां यह बताना समसामयिक है कि बुंदेलखंड में बांदा या आसपास के जिलों पर अक्सर मौरम खदानों पर कवरेज के दरम्यान मारपीट या खदान संचालक द्वारा दबंगई की खबरें सामने आती रहती हैं। इसका बड़ा कारण है स्थानीय पत्रकारिता पलटन मे मौरम-बालू खदानों को अपने वर्चस्व में करने की आपसी प्रतिस्पर्धा।
बाकी बुंदेलखंड के बांदा मे केन, बाघेन, रंज, हमीरपुर बार्डर पर यमुना मे अवैध खनन कोई नई इबारत नही है। यह सरकार संरक्षित और कद्दावर सफेदपोश ठेकेदारों व माफियाओं द्वारा संचालित करोड़ों का व्यापार है। इसमें ऊपर से नीचे तक संगठित नेटवर्किंग के जरिये लाल मौरम का उत्खनन होता है। खनिज एक्ट की धारा 41-ज का अनुपालन एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जल-वायु एनओसी सहित एनजीटी व सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइंस को धता बताकर रातदिन प्रतिबंधित पोकलैंड मशीनों से नदियों को बलात मरुस्थल मे तब्दील किया जा रहा है।
बताते चलें कि सपा सरकार में हमीरपुर के अवैध खनन पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी को सीबीआई का नोटिस हाल ही में गवाही के लिए 29 फरवरी को तामील हुआ था लेकिन वे पेश नहीं हुए और अपने बयान वीडियो कांफ्रेंसिंग व सीबीआई टीम उनके पास आकर दर्ज करे ऐसा प्रतिउत्तर उन्होंने राजधानी की मीडिया में दिया। यह वही बुंदेलखंड है जहां के तत्कालीन खनिज मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति पिछले सात साल से जेल में है।
वहीं आधा दर्जन लोगों, तत्कालीन सपा नेताओं व तत्कालीन हमीरपुर डीएम, खनिज अधिकारी, कर्मचारी पर सीबीआई ने वर्ष 2012-2016 के बीच हुए अवैध खनन पर हाईकोर्ट इलाहाबाद के आदेश पर सीबीआई ने मुकदमा किया और गत सात साल से जांच कर रही है। अलबत्ता बांदा समेत आसपास लाल मौरम का अवैध खनन और पत्रकारों पर हमलों की किस्सागोई बदस्तूर चलती रहती है। बड़ा सवाल यह कि लाल बालू से पतनशील पत्रकारिता कब तौबा करेगी? साथ ही सवाल यह भी कि सरकार मीडिया का लोकतंत्र कब बहाल करेंगी?
नीचे खनन, सीसीटीवी फुटेज और शिकायत का पत्र..