‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ का हवाला देकर और ‘अवमानना का भय’ दिखाकर जब तक सिस्टम के सड़ांध को छिपाया या दबाया जायेगा तब तक देश की न्यायपालिका वास्तविक सन्दर्भों में निष्पक्षता, स्वतंत्रता और निर्भीकता से काम नहीं कर सकती। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीडन के आरोप और इसी बीच कार्पोरेट्स द्वारा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ साजिश के दावों से देश की पूरी न्यायपालिका न केवल हिल गयी है बल्कि अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रही है।
एक ओर इनहाउस कमेटी यौन उत्पीडन की जाँच कर रही है वहीं साजिश की जाँच का दायित्व पूर्व जज जस्टिस पटनायक को सौंपा गया है। कोर्ट कचहरी में मूलतः तीन पक्ष होते हैं जिनमें न्यायाधीश और पक्ष विपक्ष के दो पक्षकार होते हैं। अब किसी भी मामले में बेंच हंटिंग या बेंच फिक्सिंग होती है तो निश्चित ही इसमें पक्ष या विपक्ष के किसी पक्षकार की भूमिका होती है। लेकिन इसमें बेंच शामिल न हो तो बेंच हंटिंग या बेंच फिक्सिंग होना सम्भव ही नहीं है। इसलिए मी लार्ड, क्या इसके साथ यह जाँच नहीं होनी कि बेंच में कौन कौन लोग हैं जो इस तरह के कामों में रूचि रखते हैं?
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की विशेष पीठ ने कहा कि कुछ अमीर और ताकतवर लोग आग से खेल रहे हैं और न्यायपालिका को रिमोर्ट कंट्रोल की तरह चलाना चाहते हैं। उनका कहना था कि गत तीन साल से न्यायपालिका को नियंत्रित करने का प्रयास हो रहा है जो किसी भी हालत में सफल नहीं हो सकता है। उन्होंने चेतावनी के लहजे में कहा कि अब इन लोगों को जवाब देने का समय आ गया है। कोर्ट ने साजिश की जाँच के लिए अवकाशप्राप्त जस्टिस एके पटनायक को नियुक्त कर दिया और केन्द्रीय एजेंसियों को सहयोग करने का भी निर्देश दिया। लेकिन इस खेल में मी लॉर्ड क्या सभी किरदारों की भी पहचान होना जरूरी नहीं है?
न्यायपालिका में बेंच फिक्सिंग का मामला सीधे-सीधे भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। इसके तीन महत्वपूर्ण पहलू है। पहला यह कि उच्चतम न्यायालय और हाईकोर्ट में भाई भतीजावाद का बोलबाला है। दूसरा यह कि जजों के बेटे, बेटी और रिश्तेदार उसी कोर्ट में बेधड़क होकर वकालत करते हैं और कई बार इसमें भी “ब्रदर जजों” के आरोप लगते हैं। तीसरा पहलू यह कि न्यायाधीश एवं इनके सगे संबंधियों के सम्पत्ति का खुलासा प्रतिवर्ष नहीं होता है।
कहते हैं कुछ ही मछलियां होती हैं, जो पूरे तालाब को गंदा करती हैं। लेकिन जब न्यायपालिका जैसे अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील संवैधानिक संस्था की बात हो तो इन मछलियों को चिन्हित कर कार्रवाई करना बहुत बड़ी चुनौती होती है। हकीकत यह है कि इन मछलियों को न्यायपालिका में सभी जानते पहचानते हैं पर उन्हें सिस्टम से बाहर करने की दिशा में कोई ठोस कार्य नहीं किया जाता है। सब कुछ ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ का हवाला देकर और ‘अवमानना का भय’ दिखाकर इस तरह ढक दिया जाता है, जैसे अंदर सब कुछ ठीक-ठाक है वास्तव में यदि उच्चतम न्यायालय बेंच फिक्सिंग को लेकर चिंतित है और न्यायपालिका की गरिमा बचाना चाहती है, तो उसे ट्रांसफर नीति और संपत्ति का खुलासा नीति उच्चतम न्यायालय और हाईकोर्ट के न्यायाधीश और इनके सगे संबंधियों के संबंध में कड़ाई से लागू करना पड़ेगा।
रजिस्ट्री में क्या चल रहा है?
इस बीच डीएनडी टोल मामले में स्वयं मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने तल्ख टिप्पणी की है कि हम जानते हैं कि रजिस्ट्री में क्या चल रहा है? ये मामला करोड़ों रुपयों से जुड़ा है, क्या इसलिए इसे बार-बार सूचीबद्ध किया जा रहा है? रजिस्ट्री इसके बारे में जानकारी दे।
अब यह सर्वविदित है कि उच्चतम न्यायालय हो या हाईकोर्ट यहाँ मुक़दमे की तारीख लगना या लगवानें में प्रतिदिन रजिस्ट्री में लाखों का वारा न्यारा होता है और आज तक इसपर किसी भी मुख्य न्यायाधीश ने अंकुश लगाने का ठोस प्रयास नहीं किया। अब चूँकि इस समय बेंच फिक्सिंग का मामला बहुत गरम है इसलिए पहलीबार किसी मुख्य न्यायाधीश ने न्याय प्रणाली के इस फोड़े पर हाथ धर दिया है ,जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
हुआ यह कि दिल्ली से नोएडा को जोड़ने वाले डीएनडी टोल मामले को लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बार- बार इस केस को सूचीबद्ध करने पर रजिस्ट्री पर ही सवाल उठा दिए। गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ के सामने जब ये मामला सुनवाई के लिए आया तो मुख्य न्यायाधीश ने इसकी सुनवाई से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “आखिर इस मामले को बार-बार सुनवाई के लिए सूचीबद्ध क्यों किया जा रहा है? पिछली बार पीठ ने यह आदेश दिया था कि अप्रैल के अंतिम सप्ताह में इसकी सुनवाई होगी तो अब ये मामला कैसे सूचीबद्ध हुआ?” चीफ जस्टिस गोगोई ने आगे कहा, “हम जानते हैं कि रजिस्ट्री में क्या चल रहा है? ये मामला करोड़ों रुपयों से जुड़ा है, क्या इसलिए इसे बार-बार सूचीबद्ध किया जा रहा है? रजिस्ट्री इसके बारे में जानकारी दे।”
इस दौरान पीठ ने कोई भी दलील सुनने से इनकार कर दिया और इस मामले को स्थगित कर दिया ।पीठ ने कहा कि वो पहले मामले की तह तक जाएंगे। उच्चतम न्यायालय डीएनडी टोल चलाने वाली कंपनी की अपील पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। इससे पहले हाईकोर्ट ने टोल वसूलने पर रोक लगा दी थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और कंपनी के दावों की जांच के लिए कैग से ऑडिट भी कराया था।
इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार और विधि के जानकार जे.पी.सिंह की रिपोर्ट.