यशवंत सिंह-
आज भड़ास की मेल आईडी [email protected] का स्पेस चेक कर रहा था. पंद्रह जीबी फ्री मिलता है. साढ़े सात जीबी भरा हुआ है. सारे डिलीटेड मेल को परमानेंटली डिलीट कर कुछ स्पेस बनाया. फिर सोचा कि सबसे पुराना मेल देखते हैं और उन्हें डिलीट करते चलते हैं. तो जो सबसे ओल्डेस्ट मेल दिखा, उसे भेजने वाले हैं पीयूष त्रिपाठी. 27 अप्रैल 2012 रात साढ़े आठ बजे उन्होंने ये मेल भड़ास को भेजा.
पीयूष की मेल में दो अटैचमेंट है. एक में क्रुतिदेव फांट है, दूसरे में क्रुतिदेव में लिखा मैटर. इस मैटर को जब क्रुतिदेव से यूनिकोड में कनवर्ट किया तो एक पत्र मेरे नाम लिखा मिला. साथ ही पीयूष जी का मोबाइल नंबर भी दिखा. इस नंबर पर फोन मिलाया तो दिखा कि ये नंबर मेरे मोबाइल में भी सेव है पीयूष त्रिपाठी जी के नाम से. लेकिन नंबर यूज में नहीं है, ऐसा काल करने पर पता चला. फिर सोचा कि क्यों न इस सबसे पुराने ईमेल को प्रकाशित किया जाए. पत्र, जिसे यहां बिलकुल नीचे प्रकाशित किया गया है, से पता चला कि पीयूष जी के पुत्र आशीष त्रिपाठी जी भी पत्रकार हैं.
जानना चाहूंगा कि पिता-पुत्र पीयूष त्रिपाठी जी और आशीष त्रिपाठी जी के हालचाल कैसे हैं… इस बहुत पुराने मेल को प्रकाशित करने के पीछे सिर्फ मकसद एक है- भड़ास की पुरानी यादों को ताजा करना. वक्त बीतने के साथ साथ कभी कभी पीछे मुड़कर भी देखना चाहिए. तो ये ईमेल पढ़ना और पढ़ाना, पीछे मुड़कर देखना ही है. इस ईमेल समेत कई अन्य सबसे पुराने मेल्स को आज भड़ास के मेल से डिलीट कर दिया जाएगा, लेकिन यहां सबसे पुराने मेल को प्रकाशित कर देने से इस मेल का कंटेंट जिंदा रहेगा.
संभव है इस मेल से पहले भी कई मेल भड़ास के पास आए रहे हों और उन्हें देखने पढ़ने के बाद डिलीट कर दिया गया हो. लेकिन आज जब भड़ास पर सुरक्षित साढ़े चार हजार मेल का सबसे पुराना मेल देखा तो ये मेल पीयूष त्रिपाठी का निकला. इस तरह पीयूष त्रिपाठी जी का ये मेल भड़ास की हिस्ट्री में आज दर्ज हो गया.
हालांकि इस मेल का रिप्लाई आज जब लिखा हूं तो पलटकर एक आटोमेटिक मेल आता है कि एड्रेस नाट फाउंड. मतलब पीयूष त्रिपाठी जी अब ये मेल आईडी यूज में नहीं है.
नीचे मेल का स्क्रीनशाट है और फिर मेल के भीतर का कंटेंट.
आभार
यशवंत
यशवंत जी नमस्कार। वर्ष 1986 में मैं दैनिक भास्कर झांसी में बतौर उपसंपादक दूसरी बार कार्यरत था। वहां से कानपुर लौटने पर एक विचार आया तो मैंने एक साप्ताहिक अखबार शुरू किया। बगैर रजिस्ट्रेशन कराए एक अंक निकाला। नाम था ‘खबरचियों की खबर’।
दृष्टिकोण यह था कि हम लोग जो भी अखबारों में उपसंपादक/रिपोर्टर पदों पर कार्य कर रहे हैं, देश और दुनिया के दुख दर्दों को उजागर करने का काम सौंपा गया है, मगर आफिस के भीतर हम सब खुद कितने दुख दर्दों, अपमान और तमाम विषगंतियों से ग्रस्त है, ये कोई नहीं जानता। हम सब किससे कहें अपने किस्से। बहरहाल अखबार छपा और लोगों तक पहुंचाया। सच्चाईयां थी। लोगों ने मुंह बिचकाए, कुछ ने पीठ पीछे तारीफ की लेकिन ज्यादातर ने विनम्र निवेदन किया कि कृपया अब ऐसा न करें वर्ना मालिकान समझेंगे कि उन्हीं के रिपोर्टर छपवा रहे हैं और नौकरी पर बन आएगी। लोग बहुत ही परेशान हुए। तो फिर दूसरा अंक नहीं छापा।
बहरहाल उस वक्त दिमाग में जो बात आई थी वह आपने बखूबी कार्यान्वित कर दी है। भडास मीडिया शानदार भूमिका निभा रहा है। बहुत ही अच्छा लगता है। मेरा बेटा आशीष त्रिपाठी दैनिक जागरण शांहजहापुर में रिपोर्टर है। उसका हाल ही में बरेली तबादला हुआ। उसने फोन कर मुझे बताया कि आपने भड़ास में तो मेरे ट्रान्सफर के बारे में पढ़ ही लिया होगा। यानी कि उसका पूरा विश्वास था कि वह मुझे बताए या न बताए, यह काम तो भड़ास ने ही कर दिया होगा। यही विश्वास, इसी स्तर का विश्वास पत्रकारों, मीडियाकर्मियों के बीच में बना रहना इस वेबसाइट की कामयाबी है। इसके लिए मेरी बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें। निश्चित तौर पर संघर्षपूर्ण कार्य है। अब तक की उपलब्धियां खुद ही गवाह है कि संघर्ष सफल है।
पीयूष त्रिपाठी
साप्ताहिक इतवार( लखनऊ ब्यूरो)
09506884662
संक्षिप्त कार्य अनुभव
हिन्दी दैनिक लोक भारती कानपुर, दै.भास्कर झांसी, अमर उजाला, दैनिक जागरण कानपुर, नीतिगत खबरें, राष्ट्रीय स्वरूप, नेशनल न्यूज फीचर्स लखनऊ में समाचार संपादक, मुख्य संवाददाता आदि पदों पर 1982 से कार्यरत रहने के बाद फिलहाल स्वतंत्र लेखन एवं साप्ताहिक इतवार के लिए लखनऊ ब्यूरों में पदस्थ। रिपोर्ताज, व्यग्य लेखन, साक्षात्कार, फील्ड रिपोर्टिंग, राजनैतिक विश्लेषण सहित लेखन की हर विधा में दक्षता किंतु हर वक्त एक विद्यार्थी के रूप में आचरण। जिज्ञासु और सीखने की ललक हर हद तक।
मेल- [email protected]