Yashwant Singh-

स्वामी रामदेव का क्या है महाप्लान… शिक्षकों की फ़ौज इन दिनों क्यों ले रही बाबा के इस ख़ास ias अफ़सर से ट्रेनिंग… cbse की तर्ज़ पर शुरू हुए बाबा के भारतीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष एनपी सिंह से बातचीत का पहला हिस्सा देखिए…
भारत जब अंग्रेजों के कब्जे में था तब यहां किस तरह की शिक्षा दी जाए, इसको लेकर अंग्रेज शासकों के अलग अलग मत था. फाइनली जो वाला लागू हुआ वो भारत को सैकड़ों सालों तक अपना उपनिवेश बनाए रखने की मानसिकता से तैयार किया गया सिस्टम था-‘आधुनिक ज्ञान विज्ञान की चीजें अंग्रेजी भाषा में पढ़ाओ और बाकी पढ़ाई के नाम पर जो कुछ चल रहा है भारत में, उसे न छेड़ो.’
बाबा रामदेव के भारतीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष एनपी सिंह से बातचीत का दूसरा भाग सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी में शिक्षा के भगवाकरण की आशंका को वो छूते हैं. लिंक कमेंट बाक्स में.
जारी…
One comment on “बाबा रामदेव की ‘शिक्षा क्रांति’ के प्रोजेक्ट का क्या है सच, देखें खुलासा”
पिछड़ों को साध सत्ता के करीब पहुंचे अखिलेश!
विजय कुमार त्रिपाठी
लखनऊ। 2022 के विधान सभा चुनावों से पहले इस बार अखिलेश यादव के सियासी गुलदस्ते में रंग-बिरंगे सियासी दल दिखाई दे रहे हैं। इनमें भी सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सपा प्रमुख पिछड़ों को एकजुट कर एक बार फिर जीत का मूल मंत्र मानकर काम कर रहे है। इसमें गैर यादव व मुस्लिम बिरादरी के अलावा तमाम ओबीसी जातियों को लामबंद कर अखिलेश सत्ता के करीब पहुंचते दिखाई दे रहे हैं। माना जा रहा है कि उनका यह दांव बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा रहा है। 2017 में जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी ने इसी दांव के सहारे सत्ता हासिल की थी तो अब उसी फार्मूले पर सपाई कुनबा आगे बढ़ रहा है। इसका असर भी दिखने लगा है जहां एक तरफ पिछड़ा वर्ग से आने वाले कई बड़े नेताओं ने लगातार साइकिल पर सवारी कर ली है। अंदर खाने सूत्रों का दावा है कि इसी वजह से अखिलेश यादव ने ओमप्रकाश राजभर को सरकार से तोड़कर नया समीकरण बनाया था। वही पश्चिम में रालोद मुखिया जयंत चौधरी से गठबंधन किया। इसके अलावा उन्होंने अपना दल के दूसरे गुट को तवज्जो देकर पटेल वोटों पर भी सेंध लगाई है। इसी तरह कई और छोटी पार्टियों को भी जिनमें कई इलाकाई छोटी बड़ी पार्टियां जैसे महान दल भी शामिल है। सपा प्रमुख ने लगभग हर कील कांटे को दुरुस्त करने का हर संभव प्रयास किया है। अगले दो दिनों में यह सबको पता चल जाएगा कि सत्ता की चाबी किसके हाथ में होगी। हालांकि अखिलेश यादव ने पिछली गलती न दोहराते हुए उन्होंने चाचा को भी साथ लिया। यूपी में मुलायम सिंह यादव के सहयोगियों और पुराने क्षेत्रीय छत्रपो को भी साधकर नया कुनबा तैयार किया है। परंतु अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह मुलायम की तरह सर्वमान्य नेता अब भी नहीं बन पाए हैं। छोटे दलों को अगर उनकी इच्छा अनुसार सीटें और सरकार बनने के बाद मनमुताबिक पद प्रतिष्ठा ना मिली तो वह छिटक कर भाजपा के कुनबे में जा सकते हैं। और यही एक उम्मीद बार-बार इस ओर इशारा करती है कि क्या वाकई अंत में जोड़-तोड़ के साथ भाजपा सरकार बना लेगी।
मेरी गुणा गणित के अनुसार लगभग 383 सीटों पर भाजपा और सपा में सीधी टक्कर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछली बार 325 सीटें जीतने वाला भाजपा गठबंधन इस बार उतनी सीटों पर मजबूती से चुनाव भी नहीं लड़ पा रहा। जबकि इसके ठीक उलट समाजवादी पार्टी का गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़ता दिख रहा है। और जनता भी जिन सीटों पर मजबूत पार्टी या प्रत्याशी नजर आता है उसी और झुकती है।
अब तक इन नेताओं को ला चुके साथ जिसका दिख रहा असर
इन नेताओं में सबसे बड़ा नाम शिवपाल यादव का है जिसकी वजह से पिछली सरकार के आखिरी 2 महीने में ही समाजवादी पार्टी के रसातल में जाने की इबारत लिखी गई थी। दूसरा बड़ा नाम सिगबत्तउल्लाह अंसारी हैं जिन्हें पिछली बार अखिलेश ने पार्टी में शामिल करने से मना कर दिया था। सपा से रूठे अपनो को भी मनाया जिनमें अंबिका चौधरी, नारद राय सरीखे पार्टी के क्षेत्रीय क्षत्रपो को भी सम्मान सहित वापस ले आए। इसके अलावा बसपा के पूर्व सांसद बालेश्वर यादव, पूर्व मंत्री राज किशोर सिंह, कांग्रेस के पूर्व सांसद चौधरी वीरेंद्र मलिक उनके पूर्व विधायक बेटे पंकज मलिक, बसपा नेता आर. के. चौधरी, ददुआ के परिवारीजनों जिनमें बालकुमार पटेल, राम सिंह, एवं बसपा, भाजपा के कई विधायक भी पार्टी ज्वाइन कर चुके हैं। वही सूत्रों का दावा है कि भाजपा सरकार के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव के नतीजे देखने के बाद अगर कुछ सीटें कम पड़ती हैं वह भाजपा के जीते हुए कुछ पिछड़ी जातियों के विधायकों को तोड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वर्तमान में एनडीए का हिस्सा केंद्रीय राज्य मंत्री व अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल से भी अंदर खाने अखिलेश यादव की बातचीत जारी है। वह भी सियासी चौसर की नई सहयोगी हो सकती हैं।