बिहार के राज्यपाल के दामन पर भी छींटे?

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Swami Vyalok

बिहार को हो क्या गया है…? आज दोपहर एक फोन आया। राजस्थान से पत्रकार मित्र का था। उन्होंने कहा कि यार, आपकी पुलिस तो हमारे यहां बाड़मेर से एक पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित को उठा ले गयी। मैं आधी नींद में था। कहा, ‘भाई, हमारे यहां शराबबंदी के बाद रामराज आ गया है। अब पुलिस सिवा मुंह सूंघने के कोई काम नहीं करती, वो राजस्थान जाकर किसी को क्यों उठाएगी?’

पत्रकार मित्र की संजीदगी बनी रही। उन्होंने मामले में महामहिम का भी नाम लिया, तब मेरी नींद खुली। खैर, उन्होंने जो बताया, उसका लब्बो-लुआब ये था कि दुर्ग सिंह राजपुरोहित पर बिहार के एक व्यक्ति (जो किसी नेत्री का नौकर है) ने एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया है, साथ ही 420 की भी धारा लगायी गयी है।

इसमें, महामहिम राज्यपाल कहां से आ गए? मैंने जिज्ञासा की।

…राज्यपाल मलिक दरअसल, हरेक महीने बाड़मेर दौरे पर जाते हैं। वह दौरा व्यक्तिगत होता है और शायद किसी नेत्री के यहां का होता है। दुर्ग सिंह ने उन्हीं यात्राओं के मकसद और व्यवस्था को लेकर सवाल उठा दिया। महामहिम की भौं तनी और उन्होंने एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करवाया। एसपी पटना के आदेश पर एसपी बाड़मेर ने दुर्ग सिंह को पकड़ा और बिहार पुलिस के हवाले कर दिया।

यह सारा मसला तो समझ आया, पर मामला महामहिम राज्यपाल का था। मेरे पास न जानकारी थी, न सबूत था। अभी कुछ देर पहले देखा कि भड़ास पर Yashwant Singh भाई ने यह खबर रेल दी है। फिर, अपनी भी समझ में आय़ा कि कुछ तो आग है ही, बिना आग के धुआं नहीं होता।

वैसे, बिहार के रीढ़विहीन तथाकथित पत्रकारों सॉरी पक्षकारों से तो यह उम्मीद नहीं ही की जानी चाहिए कि वे महामहिम के खिलाफ कुछ लिखेंगे, लेकिन इस पूरे मामले की गहराई से रिपोर्टिंग तो होनी चाहिए। राज्यपाल की निजी जिंदगी से मुझे कोई लेना-देना नहीं, किसी को नहीं होना चाहिए, लेकिन एक संवैधानिक पद पर उनसे तो कोई भी आरटीआइ डालकर भी यह जानकारी मांग सकता है। साथ ही, किसी पत्रकार की ज़िंदगी को यूं तबाह होने देना कौन सा न्याय है?

क्या यह उम्मीद की जाए कि जो बिहारी जद यू-भाजपा युति के किसी छुटभैए को भी कुछ नहीं कह पाते, वह महामहिम की ख़बर लेंगे औऱ देंगे? क्या यह उम्मीद की जाए कि दुर्ग सिंह की कम से कम खोज-खबर ही बिहारी पक्षकार लेंगे…क्या यह उम्मीद करें कि इस पर दो-चार आवाजें भी उठेंगी, हंगामा होगा, न्याय मिलेगा..।

वैसे, बिहार इस वक्त अपने स्वर्णिम काल से गुज़र रहा है। मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में रेप और हत्या के छींटे सभी राजनीतिक दलों के छोटे-बड़े नेताओं पर पड़ ही रहे थे…अब महामहिम का दामन भी दागदार हो रहा है…।

बिहार के राज्यपाल के दामन पर भी छींटे?

सचमुच, यह राज्य अभिशप्त है। कुएं में ही भांग पड़ी है। प्रशासन के उच्चतम स्तर से लेकर नागरिक व्यवस्था के निम्नतम पायदान तक एक सी विकृति, एक सी अहमन्यता और एक सा विराग है। शिक्षा को लेकर नीतीश कुमार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। अपने अभिनव प्रयासों से पूरी शिक्षा व्यवस्था को बैठा देने में कोई धतकर्म बाकी नहीं रखा है।

जब माननीय नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने खूब छांटकर समाजवादी सतपाल मलिक को (जिनका भाजपा से कहीं भी लेन-देन नहीं था। वह चौधरी चरण सिंह के आदमी हैं, जिनको भाजपाइयों ने किसान चेहरे के तौर पर या किसानों के मसले को समझने के लिए आगे किया) बिहार का राज्यपाल बनाकर भेजा, तो कुछ मासूमों को उम्मीद थी कि कम से कम चांसलर के तौर पर वह बिहार की उच्च-शिक्षा का चीरहरण रोकेंगे, लेकिन वह तो जो कुछ चीथड़े बचे थे, उसको भी नोंचने लगे। देखिए, कैसे…

उच्च शिक्षा पर अपनी मर्जी थोपने और सिवाय थोथी बातों के राज्यपाल सतपाल मलिक ने यही किया है कि गर्त में गिरी व्यवस्था को और गिरा दिया है।कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं—-

1. हालिया बी.एड. परीक्षा का संचालन और एडमिशन विवादों में घिर गया है। राज्य के माइनॉरिटी संस्थानों को हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद राहत दी औऱ अब राज्यपाल महोदय की लड़ाई सरकार सुप्रीम कोर्ट में लड़ रही है। सोचने की बात यह है कि जिस नालंदा खुला विश्वविद्यालय के पास खुद का इंफ्रास्ट्रक्टर घंटा नहीं है, जिसकी खुद की मान्यता रद्द होने वाली थी, जैसे-तैसे बची, उसे इतना बड़ा इक्जाम आयोजित कराने का ठेका किस मुहूर्त में क्या सोच कर दिया गया।

2. मगध महिला कॉलेज की प्राचार्या शशि शर्मा का भी मामला खूब है। उन्हें पटना विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर से रीडर पर डिमोट कर दिया, और इसी वजह से उनको प्राचार्या का पद भी छोड़ना पड़ा, लेकिन महामहिम मलिक ने उनको फिर से प्राचार्या बना दिया। बिना वी.सी. का पक्ष जाने। है न कमाल की बात….

3. मगध विश्वविद्यालय के वीसी ने कुलसचिव बनाने के लिए चार नामों की अनुशंसा मलिक साब को की। विधान यह है कि यदि वे चार नाम राज्यपाल को पसंद नहीं तो फिर से नए नाम मांगे जाएं। महामहिम मलिक ने ऐसा कुछ नहीं किया, उन चार नामों से अलग एक पांचवां नाम भेज दिया।

4. इसी तरह, नवस्थापित पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय का रजिस्ट्रार राज्यपाल ने अपने बिहारी एडीसी के निकट संबंधी को बना दिया। फिलहाल, वहां के वीसी ने रजिस्ट्रार को हटा दिया है (जो उनके अधिकार-क्षेत्र में नहीं है)। अब वीसी पर दवाब बनाया जा रहा है कि यदि उनको रिस्टोर नहीं किया गया, तो राजभवन चिट्ठी निकाल कर उनको रिस्टोर करेगा। इन सब में नुकसान किसका? पढ़ाई का..छात्रों का…बिहार का।
कुलाधिपति की इस नाराजगी का सबब– नवस्थापित पाटलिपुत्र विश्वविद्याालय के वीसी ने स्थापना दिवस में मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री को तो आमंत्रित किया, लेकिन कुलाधिपति को ही नहीं। क्यों?

5. राज्यपाल महोदय ने एक सहायक मीडिया प्रभारी की भी नियुक्ति की और उतनी ही तेज़ी से उसे हटा भी दिया। क्यों?

ये टिप ऑफ आइसबर्ग है। जितने मामले खुलेंगे, कूड़ा उतना ही अधिक दिखेगा। हालांकि, महामहिम राज्यपाल क्या कर रहे हैं? वह रोहतास घूम रहे हैं, शेरशाह के मकबरे की अफगानिस्तान तक मार्केटिंग करने की बात कर रहे हैं, विश्वविद्यालयों को ऑटोनॉमी देने और ऑक्सफोर्ड बनाने की बातें कर रहे हैं, लेकिन उसका गला भी घोंट दे रहे हैं। एक बात तो तय है। भाजपा की पसंद अद्भुत है। बातें महामहिम से जितनी लीजिए, काम धेले भर का नहीं…। क्या बिहार के केंचुए पत्रकारों से उम्मीद करें कि वे कुछ लिखेंगे, या तहकीकात करेंगे…?

वरिष्ठ पत्रकार स्वामी व्यालोक की एफबी वॉल से.

राजस्थान के पत्रकार श्रवण सिंह राठौर की इस रिपोर्ट को भी पढ़ें…

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