ब्लैकमेलर कहे जाने से परेशान हैं ग़ाज़ीपुर के ब्लैकमेलर पत्रकार!

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यशवंत सिंह-

ब्लैकमेलिंग सिर्फ पैसे का लेन-देन ही नहीं होता. ब्लैकमेलिंग में पैसे का लेन-देन किए जाने के लिए परिस्थिति का निर्माण भी शामिल होता है. जिन्हें सिर्फ एक शब्द ब्लैकमेलर कहे जाने से कष्ट है, वे जान लें कि चार पार्ट में जिन शिक्षक अधिकारी और जिन शिक्षकों का मानमर्दन किया है, उन्हें कई कई रोज कष्ट हुआ. मजेदार तो ये कि हर पार्ट में बस एक ही कहानी… शिक्षक स्कूल छोड़कर ब्लाक के शैक्षणिक आफिस पर बैठते हैं… इसी की एक फोटो भी प्रकाशित की जो साल भर पुरानी है…

सोचिए, कोई शिक्षक अपने शिक्षण से जुड़े आफिस में किसी मीटिंग में बैठा है, ये फोटो प्रकाशित कर कहा जाए कि शिक्षक अधिकारी और शिक्षक दोनों नालायक हैं, तो इसे ब्लैकमेलिंग नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे… अरे भाई शिक्षक अपने शिक्षकीय कार्यालय ही तो जाएगा काम पड़ने पर… शिक्षक अधिकारी अपने आफिस में ही तो बैठेगा… अगर ये शिक्षक कहीं रंडीबाजी कर रहे होते, कहीं दारू पीकर गिरे पड़े होते तो आप शौक से छाप कर इनकी कमियां उजागर करते… लेकिन जो आदमी अपने ही विभागीय काम से अपने ही आफिस में बैठा है, वही तस्वीर छापकर आप उसे नालायक कैसे बता रहे हैं… ये सरासर ब्लैकमेलिंग है…

पहला पार्ट… दूसरा पार्ट… तीसरा पार्ट… चौथा पार्ट… पांचवां पार्ट आना था… सारे पार्ट में क्या है… बस एक बात.. शिक्षा अधिकारी नालायक हैं… शिक्षक नालायक हैं…. अरे यार.. .पत्रकारिता की एबीसीडी जानते हो… अगर कहानी बस इतनी ही छोटी है तो ये पार्ट पार्ट क्या खेला खेल रहे हो… एक पैराग्राफ की खबर को चार पार्ट में…. जाहिर सी बात है… इंटेशन ब्लैकमेलिंग का है… हर पार्ट में बता रहे हो कि अगले पार्ट में बहुत सनसनीखेज खुलासा होने वाला है… वीडियो आने वाला है.. .फोटो आने वाला है… घंटा आने वाला है… आया क्या? साल भर पुरानी एक तस्वीर जिसमें अधिकारी और शिक्षक अपने आफिस में बैठे मीटिंग कर रहे हैं…

शिक्षा अधिकारी को किसी का फोन गया… किसी के भी जरिए गया हो… कहा गया कि मैनेज कर लीजिए… शिक्षा अधिकारी ने बोल दिया… जो छापना हो छापो… बहुत होगा तो मेरा तबादला हो जाएगा और मैं यही चाहता भी हूं….

तो दाल नहीं गली… शिक्षा अधिकारी ने मना कर दिया.. शिक्षकों ने पहले ही कुछ ब्लैकमेलर पत्रकारों को सबक सिखाया था… तो शिक्षकों से बात करने की औकात थी नहीं… हां बस बदनाम कर सकते थे… लेकिन बदनाम भी ऐसा किया कि उस बदनामी में कोई दम ही नहीं.. बिना किसी सुबूत एक पार्ट दो पार्ट तीन पार्ट चार पार्ट और पांचवां आना बाकी था…

शिक्षकों और शिक्षक अधिकारी ने धैर्य का परिचय दिया… इग्नोर करते रहे… दो चार व्यू वाले पोर्टल पर छपी खबरों को इग्नोर ही करना चाहिए… जब आखिर में दिख गया कि ये ब्लैकमेलर बिना सिर पैर के अंड बंड संड छापता ही जा रहा है तो इसके पोर्टल के कथित संपादक को शिक्षकों ने फोन किया और वकील से तैयार कराए जा चुके लीगल नोटिस भेजने की बात कही… बस चारों पार्ट डिलीट… अरे भाई तेरी खबर में इतने ही तथ्य और इतना ही दम था तो उसे छापे रहते… डिलीट काहें कर दिया… कहां तो पांचवें पार्ट में खुलासा होना था लेकिन पांचवां पार्ट तो शेष चारों का खंडन लेकर आया….

तो दुखी तो तुम्हें कायदे से अपने संपादक से होना चाहिए था.. तुम्हारे किए धरे पर पानी फेर दिया तुम्हारे संपादक ने… तुम्हारी सारी रणनीति, गेम, प्लानिंग को फेल कर दिया… खंडन उपर से छाप दिया…

ब्लैकमेलिंग यही होती है… हलका सा कानून का डर दिखा और पत्रकारिता चली गई तेल लेने…

किसी कायदे के पत्रकार को अपने चारों पार्ट की स्टोरी को दिखा देना… वो इन्हें चार लाइन में समेट देगा… एडिटिंग कभी की हो तो समझ आए.. एक ही बात को चार पार्ट खबर बनाने की कूवत ब्लैकमेलर पत्रकारों के पास ही है क्योंकि उनका मकसद तो अपने टारगेट को हिट करना होता है ताकि वह सरेंडर कर दे और डील कर ले….

हां एक शिक्षक मेरे घर का है, इसलिए सारी बात बहुत गहराई से मुझे पता चलती रहती है… अगर वो घर का न होता तो मुझे इतना सब पता नहीं चलता… शिक्षा व्यवस्था और पत्रकारिता दोनों की अच्छाई बुराई समझ आती है… शिक्षकों के जिम्मे शिक्षण कार्य करने के अलावा दर्जनों काम विभाग और सरकार सौंपे है… एक शिक्षक तो केवल डाटा एंट्री करते करते समय बिता देगा… उपर से रोजाना के नए आदेश और उससे संबंधित बैठकें… पर ब्लैकमेलरों को इससे क्या… वे तो बस कैमरा घुमाते घुस जाएंगे विद्यालय में और ये कहां है वो कहां है ये ऐसा क्यों है वो ऐसा क्यों है… टाइप बातें तब तक करेंगे जब तक उन्हें कुछ पैसे या कुछ लात न मिल जाए…

मेरे एक परिचित मित्र हेडमास्टर है. बता रहे थे कि एक बार वो स्कूल में थे तभी एक बंदा कई माइक आईडी लेकर आया… स्कूल में घुस गया… इधर उधर का वीडियो बनाकर मेरे चैंबर में आया… सारे माइक आईडी बिछाकर खुद को किसी संस्थान का पत्रकार बताया… तभी हेडमास्टर मित्र ने अपने मोबाइल से गाजीपुर शहर के एक सज्जन को फोन मिलाया और स्पीकर आन कर दिया… फोन उठने पर बताया कि एक पत्रकार आए हैं जो खुद को इस संस्थान का पत्रकार बता रहे हैं… बहुत सी माइक आईडी लिए हैं.. वीडियो भी बनाया है… उधर से आवाज आई- दरवाजा बंद कर पहले जी भर कूटिए साले को… फिर बताते हैं कि क्या करना है…

स्पीकर पर उधर से आई इस आवाज को सुनते ही पत्रकार सारे माइक आईडी को समेटा और निकल लिया…

डिजिटल पत्रकारिता के विस्तार के बाद एक हिस्से में अब यही सब हो रहा है… न लिखने का शउर, न व्याकरण, न वाक्य विन्यास, न इंट्रो, न फैक्ट, न वर्जन… बस पत्रकारिता करने निकल पड़े हैं जवान…

मान जाइए…. यहां नहीं तो वहां फंसेंगे… आदत नहीं बदलेंगे तो कहीं न कहीं ट्रैप में आएंगे ही… पिछले पंद्रह साल से भड़ास4मीडिया के माध्यम से मीडिया को बहुत गहराई से देख रहा हूं… उसके पहले पंद्रह साल तक दैनिक जागरण, अमर उजाला और आईनेक्स्ट में सब एडिटर, सीनियर सब एडिटर, चीफ सब एडिटर, डिप्टी न्यूज एडिटर, न्यूज एडिटर, जनरल डेस्क इंचार्ज, सिटी डेस्क इंचार्ज, सिटी रिपोर्टिंग इंचार्ज, फीचर पेज इंचार्ज, एडिटोरियल इंचार्ज जैसे पदों पर कई शहरों में रहा. सैकड़ों मीडिया कर्मियों को ट्रेंड किया और उन्हें जाब पर रखा. ये सब बताने कहने का आशय ये है कि पत्रकारिता में आना आसान है, टिकना मुश्किल. अगर यहां बुरी नीयत से एंट्री मारते हैं और बुरी नीयत से शुरुआत करते हैं तो जान लीजिए, बुरी नीयत से किया गया कोई काम देर तक सुख नहीं दे सकता… क्षणिक लाभ और क्षणिक सुख तो मिल सकता है… ये जो ब्लाक स्तरीय उगाही और ब्लैकमेलिंग पत्रकारिता चल रही है, वह समझ में सबको आता है…पत्रकार का रूप धरे ये लोग वसूली के चक्कर में जगह जगह पकड़े जाते हैं, पिटते हैं… आए दिन ऐसी खबरें आती और छपती रहती हैं… प्रधान, कोटेदार, शिक्षक, डाक्टर, मेडिकल स्टोर… अगर पत्रकारिता के केंद्र में बस यही हैं और इनसे लेनदेन करने के बाद पत्रकारिता शांत हो जाती है तो ये सिर्फ ब्लैकमेलिंग नहीं बल्कि बहुत ठंढे दिमाग से किया गया आपराधिक कृत्य है… देर सबेर ऐसे अपराधी टंगे मिलते हैं… इसलिए अब भी वक्त है, सुधर जाइए भाई..सिर्फ ब्लैकमेलर कहे जाने से ग़म न मनाइए… कमाने खाने के लिए कोई और वैधानिक धंधा कर लीजिए… जरूरी नहीं पत्रकारिता से ही जीवन चलाया जाए… लेकिन भारत में जिस कदर बेरोजगारी है, उसके चलते पत्रकारिता में रोजगार खोजने और इससे कमाई करने भारी मात्रा में लोग आएंगे… आ ही रहे हैं… और फिर यही सब करेंगे जो गाजीपुर में हो रहा है…. ये सिर्फ गाजीपुर में नहीं बल्कि हर जिले में हो रहा है…

इन सब घटनाक्रम के कारण एक आइडिया आया है… क्यों न ब्लैकमेलर पत्रकारों से बचाने के लिए एक कंपनी शुरू की जाए… जो लोग ब्लैकमेलर पत्रकारों से परेशान हों, वो इस कंपनी से संपर्क करें, उन्हें समुचित इलाज मुहैया कराया जाएगा… इस आइडिया पर कई दिन से मंथन कर रहा हूं… ये एक सफल स्टार्टअप हो सकता है…. इसका रेवेन्यू मॉडल भी शानदार होगा… लोग ब्लैकमेलरों को पैसा देने की बजाय ब्लैकमेलरों से बचाने वाली कंपनी को पैसा देना ज्यादा सही समझेंगे… हो सकता है जल्द ही इसकी शुरुआत हो… तो एक शानदार आइडिया देने के लिए ब्लैकमेलर पत्रकार भाइयों को बहुत बहुत धन्यवाद भी देना चाहूंगा…

यशवंत
संपर्क- yashwant@bhadas4media.com

मूल खबर-

ग़ाज़ीपुर ज़िले में ब्लैकमेलर पत्रकारों की भरमार!



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