बिहार में बनेगा नया कानून, बूढ़े माता-पिता की सेवा नहीं करने पर होगी जेल… केंद्र सरकार का मैंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट 2007 लागू… पिता के घर पर नहीं है बेटे का अधिकार…
बिहार की नीतीश सरकार ने बुजुर्ग माता-पिता की सामाजिक सुरक्षा के लिए एक अहम फैसला लिया है। बिहार में अब अपने बूढे माता-पिता की सेवा नहीं करने पर जेल भी जानी पड़ सकती है। माता-पिता की शिकायत मिलते ही ऐसी संतानों पर कार्रवाई होगी। सरकार एक कानून ला रही है जिसके तहत बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करना बच्चों के लिए अनिवार्य होगा और ऐसा न करने पर उन्हें जेल भेजने का भी प्रावधान किया गया है। मंगलवार को नीतीश कुमार की अगुआई में राज्य की कैबिनेट ने इससे जुड़े कानून को मंजूरी दी। अब इस कानून के लागू होने के बाद अगर कोई माता-पिता अपने संतान की शिकायत करते हैं तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
पूरे देश में बिहार संभवत: ऐसा पहला राज्य होगा जहां यह कानून लागू किया जा रहा है। इस कानून को बनाने की पहल सर्वे रिपोर्ट के बाद की गई जिसमें बूढ़े माता-पिता की बदतर हालत सामने आई थी।दरअसल बूढ़े माता-पिता को प्रश्रय हो या दहेज प्रथा या बाल विवाह के खिलाफ उठे कदम, यह बदले गर्वनेंस का हिस्सा है जिसमें सामाजिक सरोकार भी है। विपक्षी भी मन रहे हैं कि बिहार में सरकार के इस फैसले से पहली बार सामाजिक आंदोलन की बुनियाद पड़ी है।
गौरतलब है कि वर्ष 2007 में ही भारत सरकार ने बुजुर्गों की सुरक्षा को देखते हुए मैंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट 2007 (माता-पिता वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख एवं कल्याण अधिनियम 2007) लागू किया है । बुजुर्ग या वरिष्ठ नागरिक आत्मसम्मान एवं शांति से जीवनयापन कर सकें, इसी के लिए यह कानून बनाया गया है। यह कानून बच्चों और परिजनों पर कानूनी जिम्मेदारी डालता है, ताकि वे अपने माता-पिता और बुजुर्गों को सम्मानजनक तरीके से सामान्य जीवन बसर करने दें। वरिष्ठ नागरिक से मतलब है देश का ऐसा कोई भी नागरिक जो साठ वर्ष की उम्र पूर्ण कर चुका है। इसके अलावा परिजन वे कहलाते हैं, जो कानूनी रूप से उन वरिष्ठ नागरिकों के उत्तराधिकारी हों, जिनके बच्चे नहीं हैं। कानूनी अधिकार प्राप्त वारिस नाबालिग हो और बुजुर्ग के गुजर जाने के बाद वही उनकी संपत्ति का हकदार हो।
इस कानून के अनुसार जो माता-पिता अपनी आय से अपना पालन-पोषण करने के काबिल नहीं है, वे मेंटेनेंस के लिए अपने वयस्क बच्चों से कह सकते हैं। इस मेंटेनेंस में उचित आहार, आश्रय, कपड़ा और चिकित्सा उपचार आता है, ताकि वे पालक सामान्य जीवन जी सकें। पालक या तो वास्तविक हो, या उन्होंने बच्चे को गोद ले रखा हो, या सौतेले माता या पिता हों। फिर भले ही वे वरिष्ठ नागरिक हों या नहीं, लेकिन उनकी देखरेख का जिम्मा बच्चों पर होता है।
इस कानून के अनुसार ऐसे बुजर्ग जिनके बच्चे नहीं हैं और जो साठ वर्ष या इससे अधिक के हैं, वे भी मेंटेनेंस का दावा कर सकते हैं। वे परिजनों से मेंटेनेंस की अपील कर सकते हैं। वे उन लोगों से कह सकते हैं, जिनको उत्तराधिकार के रूप में उनकी संपत्ति मिलने वाली हो। इसका आवेदन उक्त बुजुर्ग को खुद ही देना होता है। इसके लिए वे किसी व्यक्ति को भी अधिकृत कर सकते हैं। साथ ही वे किसी स्वैच्छिक संगठन से भी आवेदन देने को कह सकते हैं। इस कानून के तहत बनाए गए न्यायाधिकरण या ट्रिब्यूनल तभी बनते हैं, जब यह स्पष्ट हो कि बच्चों या परिजनों ने उक्त बुजुर्ग की अनदेखी की या फिर उनकी देखरेख करने से इंकार कर दिया। ये न्यायाधिकरण इन बच्चों या परिजनों को 10,000 रु. महीना गुजारे के लिए देने को कह सकता है। इस तरह की प्रक्रिया में वकीलों की भी कोई जरूरत नहीं होती है।
इस कानून के अनुसार यदि कोई वरिष्ठ नागरिक, जो गिफ्ट या किसी अन्य तरीके से अपनी संपत्ति का हस्तांतरण किसी को करता है। जिसके नाम संपत्ति की गई है, यदि वह उक्त बुजुर्ग व्यक्ति की देखरेख नहीं कर पाता है या करने से इंकार करता है तो यह माना जाता है कि संपत्ति हस्तांतरण धोखाधड़ी से किया गया है। या फिर यह माना जा सकता है कि किसी के प्रभाव में संपत्ति हस्तांतरण करा लिया गया है। किसी रियासत के एवज में भी वरिष्ठ नागरिक को मेंटेनेंस लेने का हक रहता है। या फिर यह रियासत या जमीन आदि किसी को हस्तांतरित की हो या तो आधी की हो या पूरी, तब भी मेंटेनेंस पाने का हक उक्त बुजुर्ग का रहता है।
पर्सनल लॉ
मुस्लिम लॉ के अनुसार बेटा और बेटी का यह दायित्व बनता है कि वे अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखरेख करें।हिंदू दत्तक एवं देखभाल कानून 1956 में स्पष्ट उल्लेख है कि बच्चों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे माता-पिता की देखरेख करें। यहां यह ध्यान देना जरूरी है कि जो माता-पिता या पालक खुद का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं, साथ ही उनको किसी स्रोत से आय नहीं है, उनको इस कानून में मेंटेनेंस पाने का अधिकार है।
ईसाई और पारसियों में इस तरह का कोई पर्सनल लॉ नहीं है। इनमें जो माता-पिता मेंटेनेंस चाहते हैं, उनको आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत आवेदन करना होता है। इस संहिता में सभी धर्म और समुदाय आते हैं। विवाहित बेटियों की भी यह जिम्मेदारी है कि वे माता-पिता की देखरेख करें। यदि किसी मजिस्ट्रेट ने किसी वरिष्ठ नागरिक या माता-पिता की जिम्मेदारी वहन करने का आदेश दिया है और कोई बच्चा या दत्तक या परिजन उसका पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत प्रकरण चलाया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के पास अपने माता-पिता की देखभाल करने के पर्याप्त कारण रहते हैं तो प्रथम श्रेणी के न्यायाधीश उसे माता-पिता को मासिक भत्ता देने को कह सकते हैं। वह भत्ता क्या होगा, यह मजिस्ट्रेट तय करेगा।
माता पिता के घर पर बेटे का कोई कानूनी अधिकार नहीं
नवंबर 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि किसी बेटे को अपने माता पिता के खुद की अर्जित किये गये घर में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वह केवल उनकी दया पर ही वहां रह सकता है, फिर चाहे बेटा विवाहित हो या अविवाहित।न्यायालय ने कहा कि चूंकि माता पिता ने संबंध अच्छे होने के वक्त बेटे को घर में रहने की अनुमति दी, इसका यह मतलब नहीं कि वे पूरी जिंदगी उसका बोझ उठायें।
न्यायूमर्ति प्रतिभा रानी ने अपने आदेश में कहा था कि जहां माता पिता ने खुद से कमाकर घर लिया है तो बेटा, चाहे विवाहित हो या अविवाहित, को उस घर में रहने का कानूनी अधिकार नहीं है और वह केवल उसी समय तक वहां रह सकता है जब कि के लिये वे उसे रहने की अनुमति दें।केवल इसलिए कि माता पिता ने उसे संबंध मधुर होने पर घर में रहने की अनुमति दी थी, इसका मतलब यह नहीं कि माता पिता जीवनभर उसका बोझ सहें।
पिता के बनाए घर में हिस्सा लेने का बेटे को नहीं होता कानूनी अधिकार
ऐसी कोई भी संपत्ति जो पिता ने खुद बनाई है, उस पर बेटी या बेटी का या कानूनी अधिकार नहीं होता। बच्चे सिर्फ पिता की दया पर ही रह सकते हैं। पिता की इच्छा के बिना कोई भी संपत्ति पर दावा नहीं जता सकता।पैतृक संपत्ति पर बच्चों का हक होता है। पैतृक संपत्ति वो संपत्ति होती है, जो पूर्वजों द्वारा बनाई जाती है। ऐसी संपत्ति में बेटा या बेटी अपना हक जता सकते हैं, लेकिन यदि पिता ने खुद कोई संपत्ति बनाई है तो उसे बच्चों को देना है या नहीं, यह फैसला सिर्फ पिता ही ले सकते हैं।