वैसे तो भारतीय जनता पार्टी के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) वैसे ही है जैसे कांग्रेस के लिए एनएसयूआई। पर एनएसयूआई के मामलों में कांग्रेस कितना शामिल होती थी यह हम देखते रहे हैं और 2014 के बाद से अभाविप को भी देख रहे हैं। अभाविप और एनएसयूआई दो बड़े राजनीतिक दलों के छात्र संगठन होते हुए भी मातृ संगठन से संरक्षण पाने के मामले में अलग हैं। ऐसे में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यक्ष चुने गए अंकिव बसोया की डिग्री फर्जी होने का मामला प्रधानंमंत्री के साथ केंद्रीय मंत्री मंत्री स्मृति ईरानी के डिग्री विवाद से जोड़कर ही देखा जाएगा खासतौर से बचने का तरीका भी वैसा ही हो तो।
इस साल 12 सितंबर को छात्र संघ चुनाव के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगा। उसके बाद हुए चुनाव में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सह-सचिव के पद पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने जीत दर्ज की जबकि सचिव पद पर कांग्रेस की छात्र इकाई भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) ने कब्ज़ा किया। कुछ ही दिन बाद बसोया की डिग्री फर्जी होने का आरोप लगा और उन्हीं दिनों सोशल मीडिया पर विश्वविद्यालय का दस्तावेज आ गया जो डिग्री फर्जी होने के आरोप की पुष्टि करता था। फिर भी मामला खिंचता रहा। ईवीएम की गड़बड़ी का मामला यह था कि 08 उम्मीदवारों के नाम थे और एक 9वां नोटा था, लेकिन 10वें नंबर पर 40 वोट पड़े थे।
बीबीसी की एक खबर के अनुसार छात्र संघ चुनाव की रिटर्निंग ऑफिसर पिंकी शर्मा ने कहा था, “उस ईवीएम में गलती से 09 के बजाए 10 बटन थे। राजधानी कॉलेज प्रशासन को इस बारे में हमें तुरंत जानकारी देनी चाहिए थी, ताकि हम चुनाव शुरू होने से पहले ही उसे बदल देते। इस बात को लेकर विवाद हुआ तो सभी दलों के उम्मीदवारों ने सहमति जताई कि इस ईवीएम के वोटों की गिनती न की जाए। सभी पार्टी के उम्मीदवारों ने हस्ताक्षर करके लिखित में दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को दिया था, जिसके बाद उन वोटों को शामिल नहीं किया गया। ऐसे में चुनाव परिणामों में गड़बड़ी की बात ही नहीं आती।” इस तरह चुनाव परिणाम की घोषणा हो गई। ईवीएम की गड़बड़ी का मामला निपट गया।
फोटो टाइम्स नाऊ से साभार
फर्जी डिग्री का आरोप लगा तो सबको पता था कि मामला दो महीने में नहीं निपटेगा तो चुनाव नहीं होंगे और उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का पदभार संभालेगा। अध्यक्ष को तो पता ही था कि उसकी डिग्री फर्जी है। फिर भी मामला टलता रहा। हाईकोर्ट में केस होने के बावजूद। हाई कोर्ट ने एनएसयूआई की याचिका पर 12 नवंबर तक जांच पूरी करने की तारीख तय की थी। जांच कर रही समिति का कार्यकाल चार दिन में खत्म होने वाला था तब विश्वविद्यालय ने तय किया किसी अधिकारी को तमिलनाडु के संबंधित विश्वविद्यालय भेजकर मामले की पुष्टि के लिए पक्की जानकारी लाई जाए।
उधर, सोमवार को हाईकोर्ट ने अंतिम तिथि को बढ़ाकर 20 नवंबर कर दिया। दो महीने बाद पद खाली होने पर चुनाव नहीं कराने के नियम के अनुसार उपाध्यक्ष ही अध्यक्ष का भी काम देखेगा। उपाध्यक्ष अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का ही है। इसलिए हार कर, फर्जी डिग्री का आरोप साबित होने पर भी कुर्सी बची रही। यह आरोप दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान भी लगा था। जब समय निकल गया तो कल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने बसोया की सदस्यता निलंबित कर दी। अखबारों ने ना तब पूरी बात बताई ना आज बताई है। बसोया दो महीने जबरन कुर्सी पर रहा।
फोटो नई दुनिया से साभार
गोदी मीडिया की मेहरबानी से यह सीधे-सीधे “सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का” – वाला मामला है। और यह कोई अकेला नहीं है। ऐसा ही एक मामला भाजपा सांसद ज्योति धुर्वे का है। दिलचस्प यह कि वे पांच साल सांसद रह चुकी हैं और यह दूसरा कार्यकाल भी पूरा होने वाला है। इस मामले में दैनिक जागरण की 07 मई 17 की खबर है कि बैतूल सांसद ज्योति धुर्वे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र मामले में राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने स्टे लगा दिया है। धुर्वे ने समिति के सामने पुनर्विचार की अपील की थी। जिसमें उन्होंने नए तथ्य प्रस्तुत किए थे। इसी के आधार पर फैसले को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है।
मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एसके मिश्रा ने छानबीन समिति के फैसले को स्थगित किए जाने की पुष्टि करते हुए बताया कि धुर्वे ने समिति के सामने जो अभ्यावेदन प्रस्तुत किया है उसमें कई नए तथ्य दिए गए हैं जिसके चलते स्टे दिया गया है। आरोप है कि इस समिति ने एक साल में एक भी सुनवाई नहीं की है। दैनिक भास्कर ने 16 जुलाई 2018 को खबर दी थी कि बैतूल के आदिवासी मंगल भवन में युवा आदिवासी विकास संगठन और समस्त आदिवासी समाज संगठन के सदस्यों की सामाजिक बैठक में सांसद के जाति प्रमाण पत्र का मुद्दा भी गरमाया रहा। इस पर कार्रवाई को लेकर ज्ञापन देने का निर्णय लिया गया।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की पोस्ट। संपर्क : [email protected]