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सुख-दुख

दैनिक भास्कर के फ़ीचर और फ़िल्म एडिटर चंडी कोरोना संक्रमण से उबर न सके

Tejendra sharma-

मित्रो… चंडीदत्त शुक्ल के जाने से दिल के भीतर कुछ टूट सा गया है। चंडीदत्त शुक्ल जैसे मित्र और छोटे भाई का हमें छोड़ जाना भीतर तक एक ख़ालीपन छोड़ गया है।

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विनम्र, सम्मान देने वाला, अपने काम के प्रति सजग… ऐसे लोग जब चले जाते हैं तो सबकी आँखों का एक कोना गीला कर जाते हैं।

चंडीदत्त की कविता और गद्य की भाषा पढ़ कर एक अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है।

चंडी… तुम जहां भी रहो हमारे दिल में तुम्हारी जगह हमेशा बनी रहेगी… तुम मेरे लिए कभी भी ‘थे’ नहीं बन पाओगे।

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Anil kumar-

भरोसा करना मुश्किल हो रहा है. पुराने सहकर्मी और शानदार पत्रकार चंडी दत्त शुक्ल भी नहीं रहे. फिलहाल भास्कर में फिल्म एवं फीचर एडिटर के तौर पर मुंबई में सेवारत थे. हार्टअटैक से आज गोंडा में पैतृक निवास पर निधन हो गया. कल अयोध्या में अंतिम संस्कार होगा. पता नहीं अभी क्या क्या देखना बाकी है!

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Fazle ghufran-

उफ्फ। चंडीदत्त शुक्ला भी आखिर हम सबसे जुदा हो ही गए। बीते वर्ष जून की बात है। उन्होंने कहा फजले भाई महीने में एकाध कॉल कर लिया कीजिए अच्छा लगता है। हम उन्हें हर महीने एक कॉल जरूर करते। जनवरी में कॉल किया तो बोले फाजले भाई तबियत बहुत खराब है, बात नही कर पाऊंगा।

बेशक लोगों से वो साहित्यिक लहजे में बात करते हूं लेकिन हमसे छेड़ छाड़ वाला ही अंदाज रहा। जब हाल पूछता तो कहते सेहत से दुखी हो चुका हूं। जिंदगी 50 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। बस जब मैं दुनिया से रुखसत हो जाऊं तो विनम्र श्रद्धांजलि,, ॐ शांति, भगवान आत्मा को शांति दे जैसे शब्द लिखकर काम मत चला लीजिएगा। में कहता ऐसा क्यों बोलते हो पंडित जी।

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फिलवक्त वो मुंबई में दैनिक भास्कर में फीचर एडिटर का कार्यभार संभाल रहे थे। मुंबई के नालासोपारा में रहते थे। नालासोपारा को लेकर बहुत से किस्से सुनाते। हम उम्र थे मगर करियर में सीनियर थे। मुझसे कहा मिया अपनी किताब नही भेजोगे रिव्यू के लिए, डरते हो कहीं ऐसी तैसी न कर दूं। समीक्षा की, खूबियां भी खामियां भी बराबर थी।

अरिंदम चौधरी के एक फिल्मी कार्यक्रम कोलकाता जाना हुआ, तब मैं दैनिक हिंदुस्तान में था और चंडीदत्त शुक्ला जी दैनिक जागरण में थे। तीन दिनों तक उन्होंने मस्ती और ठहाकों से पूरे माहौल को खुश गवार बने रखा। बात चाहे जयपुर प्रवास की हो या मुंबई की उन्हें जैसे पता चलता, कॉल करते, मिया आओ चाय और मिठाई खिलाते हैं। बातें बहुत हैं लेकिन इरादा नहीं है लिखने का। अलविदा चंडीदत जी।

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सारंग उपाध्याय-

ये कैसी विदा है चंडीदत्‍त भाई. यकीन नहीं हो रहा. मुलाकात अधूरी रह गई और बातें. बातें तो मानों हम लोग इस फोन में अभी बतियाने लगेंगे. जब जब फोन पर बात हुई इतनी आत्‍मीयता, इतना अपनत्‍व और नेह की ऐसी गर्माहट.

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बीते साल लॉकडाउन में दिल्‍ली और मुंबई के तार हमने ऐसे ही तो जोड़ रखे थे फोन से. गांव, शहर, महानगर, मुंबई, दिल्‍ली, बॉलीवुड, गोंडा, भोपाल कितनी बातें, कितने मुस्‍कुराहटें..।

पत्रकारिता, साहित्‍य, समाज, संस्‍कृति, विस्‍थापन, महानगर कब किस पर नहीं बतियाए.

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मुंबई जब जब पहुंचा तो जिस प्‍यार और गर्मजोशी के साथ तुमने बुलाया मैं भुला नहीं पाया. ये देखो यही तो मैसेज है वह..

फिर कल ही कुछ तय करते हैं
घर पर आ पाएंगे? दोपहर 2 बजे के आसपास।
साथ खाना खाते हैं।
आप बच्चों और मेरी जीवनसाथी से भी मिल लीजिएगा।
चंडीदत्‍त

अभागा ही रहा चंडीदत्‍त भाई. ये मुलाकात अधूरी ही रह गई; जबकि महीने में कई दफे घंटों बात करने के बाद भी हम मिल ना सके. और आज इस खबर ने भीतर अकेला कर दिया.

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तुम्‍हारी तस्‍वीर है और आवाज.
मेल, वॉट्सएप्‍प, इनबॉक्‍स, ढेर सी बातें हैं
इतना कुछ छोड़ गए

अलविदा
दोस्‍त

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Raju mishra-

पहली दफा जब वह मिलने आया था, मूछें भी नहीं निकली थीं। संपादक के नाम पत्र लेकर आया था। हस्तलिपि जितनी सुंदर थी, भाषा भी काफी हद तक परिपक्व थी। नाम लिखता था-चंडीदत्त शुक्ल ‘सागर’। अरसे बाद तमाम संस्थान बदलते उसका एक रोज फोन आया- भैया मुंबई से चंडी बोल रहा हूं। आवाज सुनते ही पहचान गया। जवाब दिया-सागर कहां गायब हो गया? बोला- वह तो गोंडा में ही छूट गया था भैया।

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फिलवक्त अहा जिंदगी का संपादक था चंडी। अभी मालुम हुआ कि हमारे परम् प्रिय चंडी ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। बहुत याद आओगे चंडी। परमात्मा तुम्हें अपने श्रीचरणों में जगह दे। तुम बहुत अच्छे और नेक दिल लड़के थे।


अरविंद कुमार सिंह-

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चंडीदत्त शुक्लजी का जाना…. मित्र चंडीदत्त भी विदा हो गए। हिंदी में एक से एक नायाब हीरे ऐसी मौत पाएंगे कि अंतिम यात्रा में भी लोग शामिल न हो सकें, यह कभी सोचा नहीं थ। चंडीदत्त से 2006-07 के दौरान मेरा पहला परिचय फोन पर हुआ था। उन्होने मेरी किताब भारतीय डाक पर एक लेख लिखा था।

बाद में अचानक रूबरू हम दादरा नगर हवेली में सिलवासा में मिले। उन दिनों मोहन डेलकर हिंदी का एक अखबार आरंभ करना चाहते थे। उसके संपादक के लिए इंटरव्यू में मुझे भी बुलाया गया था और चंडीदत्त को भी। हम पहुंचे ही थे कि चंडीजी मेरे पास आए, अभिवादन किया और अपना परिचय दिया। मैने उन्हें लगे लगाया। फिर संवाद आरंभ हुआ।

शायद ही कोई महीना ऐसा जाता रहा हो जब उनसे बातचीत न होती हो। हम एक दूसरे की प्रगति यात्रा और विचारों मे सहयोगी थे। बहुत सी बातों में हम एकमत नहीं हो कर भी एक दूसरे के प्रति हमेशा अच्छे भाव रखते थे।

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बीच में तय हुआ था कि वे संसद भवन पुस्तकालय की शैर करेंगे। मैने वायदा किया था कि पूरी संसद आपको घुमायी जाएगी। लेकिन क्या पता था कि वे ही नहीं होंगे। इस पोस्ट के साथ चंडी भाई की लिखी यह याद भी साझा कर रहा हूं।


अमिताभ श्रीवास्तव-

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भास्कर समूह की पत्रिका अहा ज़िंदगी से जुड़े चंडीदत्त शुक्ल के बारे में बुरी ख़बर मिली है, फ़ेसबुक पर सक्रिय साथियों के हवाले से। चंडीदत्त प्रतिभावान पत्रकार थे। सिनेमा , साहित्य पर पकड़ रखते थे, लिखते थे। कई साल पहले नोएडा में मुलाक़ात से शुरू हुआ आत्मीय बातचीत का सिलसिला मुंबई चले जाने के बाद हाल-फ़िलहाल तक जारी रहा। बहुत ऊर्जावान , ज़िंदादिल , चुटीलेपन से भरपूर। परिवार में रमे हुए। लगाव और उत्साह के साथ बेटी-पत्नी की बातें तस्वीरें साझा करते हुए। क्या कहें। बहुत दुखद है। परिवार को इस शोक को सहन करने की शक्ति मिले, यही प्रार्थना है।

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