Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

चौकीदार बनकर चोरी करने में काफी सुविधा है! पढ़ें ये 5 कांड

Krishna Kant : चुनावी चंदा हर साल होने वाला अरबों का घोटाला है… जेटली जी कह रहे थे कि चुनावी बांड से चंदे में पारदर्शिता आएगी। अब ऐन चुनाव के वक़्त मामला सुप्रीम कोर्ट में है और चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा कि इस बांड व्यवस्था से सारी पारदर्शिता ध्वस्त हो गई है। दूसरी तरफ सरकार ने कोर्ट से कहा कि अगर हमारी पार्टी और हम जनता को बता देंगे के हमें चंदा किसने दिया, कितना दिया तो हमारी निजता भंग हो जाएगी। जनता को हमारे लेनदेन से क्या लेना देना? वाह क्या तर्क है?

चौकीदार बनकर चोरी करने में काफी सुविधा है। इसे और सुविधाजनक बनाने के लिए कानून बनाया जा रहा कि अब चोरी का अर्थ चौकीदारी समझा जाए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी राजनीतिक दल चुनावी बान्ड पर 30 मई तक जानकारी दें। इस जानकारी में बाॅन्ड की राशि और देने वाले के बैंक खाते की जानकारी देनी होगी। राजनीतिक चंदे के रूप में दो साल में भाजपा को 1800 करोड़ से अधिक मिले हैं। यह कांग्रेस से पांच गुना अधिक है। यह इलेक्टोरल बाॅन्ड पूरी तरह से टैक्स फ्री होता है। यानी न तो चंदा देने वालों को टैक्स लगता है और न ही चंदा लेने वालों को।

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2017-18 में चुनावी बाॅन्ड के ज़रिये भाजपा को 210 करोड़ रुपए मिले जबकि अन्य राजनैतिक पार्टियों को 11 करोड़ रुपए मिले। सियासी चंदे के रूप में भाजपा को 2016-17 में 990 करोड़ रुपए तो 2017-18 में 997 करोड़ रुपए मिले। ये राशि इन दो साल में कांग्रेस को मिले संपूर्ण सियासी चंदे से पांच गुना अधिक है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह खेल शुरू हुआ था जब एनडीए की अटल सरकार ने कारपोरेट कंपनियों को भी राजनैतिक चंदे पर टैक्स में छूट लेने की इजाजत दी। इसके पहले राजनैतिक पार्टियों को चंदे से हुई कमाई पर कोई टैक्स नहीं देना होता था। इसके बाद कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने चंदे के लिए इलेक्टोरल ट्रस्ट बनाने की सुविधा दी।

फिर ईमानदारी का ढिंढोरा पीटते हुए मौजूदा मोदी सरकार आई। इस सरकार ने वित्त विधेयक 2017 में कंपनियों के लिए राजनैतिक चंदे पर लगी अधिकतम सीमा को हटा दिया और चंदा देने वाले का नाम गुमनाम रखने की व्यवस्था की। इससे यह रास्ता साफ हो गया कि कंपनियां अपनी मर्जी के मुताबिक चंदा दे सकती हैं। इससे पहले कंपनियां अपने तीन साल के शुद्ध लाभ का अधिकतम 7.5 फीसदी हिस्सा ही चंदे के रूप में दे सकती थी। इस कानून से कंपनियों को यह भी छूट मिल गई कि वे अपने चंदे को गोपनीय रखें।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एडीआर के मुताबिक, 2017 में बिना पैन नम्बर और बिना पते का यानी जितना भी बेनामी राजनीतिक चंदा आया, उसका 95 फीसदी भाजपा को गया है। लोगों से उनकी पाई पाई का हिसाब लेने वाली सरकारें काले धन की गंगा में डुबकी लगाकर देश की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने चली हैं। राजनीतिक चंदे के इस धतकरम में कांग्रेस और अन्य पार्टियां भाजपा की सहयोगी हैं। अपनी चोरी छुपाने के लिए वे आपस में सहमत हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने बोला है कि चौकीदार लोग अपनी सब चोरी का ब्यौरा पेश करें। सवाल फिर भी है कि क्या इससे चुनाव में अकूत काले धन का इस्तेमाल बंद हो पाएगा?

xxx

Advertisement. Scroll to continue reading.

राफेल पर नया खुलासा… फ्रेंच अखबार ला मांद ने दावा किया है कि भारत और फ्रांस के बीच 2015 में राफेल डील पर सहमति बनने के 6 महीने बाद अनिल अंबानी की फ्रांस स्थिति कंपनी का 1200 करोड़ रुपये का टैक्स माफ कर दिया गया। अखबार ने अपने रिपोर्ट में दावा किया, “फरवरी 2015 से अक्टूबर 2015 के बीच, जब फ्रांस भारत के साथ राफेल डील पर बातचीत कर रहा था, अनिल अंबानी की कंपनी का करीब 1100 करोड़ रुपये (143 मिलियन यूरो) टैक्स माफ कर दिया गया।”

अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस 2015 में भारत और फ्रांस के बीच राफेल लड़ाकू विमान को लेकर किए गए समझौते में ऑफसेट पार्टनर है। आरोप है कि रिलायंस डिफेंस एक बोगस कंपनी है जो समझौते के मात्र 10 दिन पहले बनाई गई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अनिल अंबानी की फ्रांस में एक रजिस्टर्ड टेलिकॉम (दूरसंचार) कंपनी है, जिसका नाम ‘रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस’ है। ला मांद के साउथ एशिया संवाददाता Julien Bouissou ने ट्वीट किया, “फ्रेंच टैक्स अथाॅरिटी द्वारा जांच के दौरान यह पाया गया कि कंपनी के ऊपर 2007 से लेकर 2010 के बीच 60 मिलियन यूरो टैक्स बकाया है। रिलायंस ने समझौते के लिए 7.6 मिलियन यूरो देने की पेशकश की, लेकिन टैक्स ऑथरिटी ने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद 2010 से 2012 के बीच के समय के लिए फिर से जांच की गई और 91 मिलियन यूरो अतिरिक्त टैक्स जमा करने को कहा गया।”

रिपोर्ट के अनुसार, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2015 में डसॉल्ट से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की घोषणा की, उस समय अनिल अंबानी की कंपनी पर करीब 151 मिलियन यूरो फ्रेंच सरकार का बकाया था। हालांकि, राफेल डील की घोषणा के छह महीने बाद फ्रेंच टैक्स ऑथरिटी ने रिलायंस से समझौते के तौर पर सिर्फ 7.3 मिलियन यूरो लिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हालांकि रिलायंस ने अपनी सफाई जारी कर कहा है कि कंपनी से जिस टैक्स की मांग की जा रही थी, वह अवैध थी। बाद में इस टैक्स विवाद को फ्रांस में काम करने वाली सभी कंपनियों के लिए बने कानून के अनुसार इसका निष्पादन किया गया। इस मामले में किसी तरह का लाभ नहीं लिया गया।

तेजतर्रार पत्रकार कृष्ण कांत की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Daya Sagar : सोचिए जिस दौर में कोई बिना मकसद सौ का नोट किसी दूसरे को नहीं देता उस दौर में बड़े बड़े कारोबारी सियासी दलों को हजारों करोड़ रूपए का चंदा क्यों दे देते हैं? ये परम्परा नेहरू के जमाने से चली आ रही है। इस अवैध परम्परा को वैध बनाते हुए चुनावी बांड का नाम दिया गया है। लेकिन इस बांड के साथ ये शर्त भी नत्थी कर दी गई कि दान देने वाले दानवीरों के नाम गुप्त रखे जाएंगे। गोपनीयता की ये शर्त क्यों रखी ये बताते की जरूरत नहीं। जबकि सब जानते हैं कि चुनावी बांड काला धन को सफेद करने का तरीका है। क्योंकि हैरत की बात ये है कि करोड़ों रूपए के बांड जारी करने वाले बैंक को भी उस दानवीर का नाम नहीं पता होता। सोचिए जिस सरकार ने काला धन खत्म करने के लिए नोटबंदी कि वही सरकार खुद राजनीतिक दलों के लिए काले धन से आक्सीजन खरीद रही है।

पूंजीपति चुनाव में चंदा देते हैं और बाद में सरकार से मनचाही नीतियां बनवाते हैं और फिर उससे कई गुना ज्यादा पैसा बनाते हैं। ये एक दुश्चक्र है। यही वजह है कि इन कारोबारियों की सालाना इनकम एक आम करदाता कि सालाना आय से सौ गुना ज्यादा बढ़ जाती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कायदे से राजनीतिक दलों को बाकायदा विज्ञापन छाप कर बताना चाहिए कि किस व्यापारिक प्रतिष्ठान ने उन्हें कितना चंदा दिया। ताकि पता चले कि अचानक किसी अम्बानी को लडाकू विमान बनाने वाली विदेशी कंपनी से साझेदारी कैसे मिल जाती है?

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिए हैं कि वह चुनावी बांड यानी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए जुटाई गई रकम की जानकारी 30 मई तक सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को दें। उन्हें इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने वाली पार्टियों को दानकर्ता के नाम के साथ, उनसे मिली रकम की भी जानकारी देनी होगी। ये सूचना आम जनता को शेयर करनी है या नहीं इस पर कोर्ट बाद में फैसला करेगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कई अखबारों में संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर की एफबी वॉल से.

Shishir Soni : आर्थिक संकट अचानक किसी कंपनी पे आये और हज़ारों के बेरोज़गार होने का खतरा मंडराए तो सरकारों को एक्टिव होना चाहिए। तय नियमो के मुताबिक कंपनी की मदद की जानी चाहिए, लेकिन आर्थिक संकट खुद कंपनी द्वारा खड़े किये जायें, एक सोची समझी आर्थिक लूट के लिए कंपनी की बैलेंस सीट हांफती हुई दिखाई जाए तो उसकी विस्तृत जांच होनी चाहिए। लुटेरों के कमर में रस्सा बांधा जाना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जेट एयरवेज मामला ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। इसके एमडी नरेश गोयल ने एथियाद एयरवेज के साथ पार्टनरशिप में जेट एयरलाइन्स का संचालन किया। मिल रही जानकारी के मुताबिक उसने धीरे धीरे अपने पैसे कंपनी से निकालकर कई अन्य उपक्रमो में निवेश कर दिया फिर एथियाद एयरलाइन्स को और पैसा लगाने को कहा। नरेश गोयल अपना पैसा नहीं लगाना चाहते एथियाद से और पैसा चाहते थे। जाहिर है एथियाद ने खेल भांपते हुए पैसा लगाने से मना कर दिया। दर्जनों भारतीय बैंकों से ऋण लेकर खडा किये गए जेट एयरवेज को हमारा आपका पसीने से कमाया गया ईमानदारी से दिए गए टैक्स की रकम ही बैंकों ने बतौर लोन के रूप में दिया था। जेट में अब नरेश गोयल और एथियाद ने पैसा लगाने से मना कर दिया। बैंकों को अपना लोन वापिस चाहिए सो उन्होंने जेट एयरवेज की नीलामी की है। अब इन बड़े चोरों का खेल देखिये। नीलामी की पॉलिसी ऐसी बनाई गयी की नरेश गोयल भी इसमें शिरकत कर सकते हैं। क्यों साहेब ? जो कंपनी ऑपरेटर खुद को दिवालिया घोषित कर हाथ खड़ा कर रहा है जिसके कारण उसकी कंपनी नीलाम हो रही है तो फिर उसी दिवालिया मालिक को नीलामी में भाग लेने की अनुमति क्यों दी गयी?

यही इन खबरों को बल मिलता है, दरअसल ये एक कृत्रिम दिवलियापन है। कोई बेरोजगार न हो कंपनी बन्द न हो इस नाम पे बैंक से मिले लोन का बड़ा हिस्सा माफ़ कर दिया जायेगा। चोर को हज़ारों करोड़ रुपया डकारने दिया जायेगा। और फिर बड़ी आसानी से उसी चोर या उसके पार्टनर को फिर से कंपनी सौंप दी जायेगी। ये चोरी और सीनाजोरी की पटकथा की शुरुआत है। ये खुलेआम हमारे पैसे की लूट की दास्ताँ है। कल तक बोली लगाने का आखिरी दिन है। होशियार रहिये। चौकस रहिये। खेल हुआ तो पीआईएल दाखिल करने को तैयार रहिये।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सोनी की एफबी वॉल से.

Girish Malviya : चुनाव आयोग की इससे ज्यादा बेहयाई कभी देखी है आपने! ‘आज तक’ न्यूज चैनल की एक खबर बता रही है कि बीजेपी ने ‘नमो टीवी’ को चुनाव आयोग की मीडिया सर्टिफिकेशन एंड मॉनिटरिंग कमेटी (MCMC) की मंजूरी के बिना ही लॉन्च किया था. दस्तावेजों के मुताबिक MCMC ने नमो टीवी की लॉन्चिंग का अनुरोध रद्द कर दिया था. बीजेपी ने MCMC से मंजूरी लेने की अपील की थी लेकिन पार्टी की इस मांग को खारिज कर दिया गया था. इस मामले की पूरी रिपोर्ट चुनाव आयोग को भी भेजी गई.बिना अनुमति ही नमो टीवी की लॉन्चिंग करने को सीधे प्रक्रियाओं का उल्लंघन माना जा रहा है. मीडिया सर्टिफिकेशन एंड मॉनिटरिंग कमेटी राज्य और जिला स्तर पर चुनाव आयोग की ओर से चुनावों के दौरान स्थापित की जाती है. आचार संहिता लागू होने के बाद विज्ञापनों और प्रचार आदि की मंजूरी इस संस्था की मंजूरी जरूरी होती है. लेकिन इसके बावजूद कुछ देर पहले चुनाव आयोग ने नमो टीवी पर रोक लगाने से इंकार कर दिया. लगता है चौकीदार ने सारी संस्थाओं को अपने जैसा बना दिया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंदौर निवासी राजनीतिक विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.

Vishnu Nagar : चुनाव के ऐन बीच में अडाणी की चिंता केंद्र सरकार को है।केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग ने अडाणी पावर के मूंदड़ा पावर प्लांट को 2000 मेगावाट की बिजली दरें बढ़ाने की अनुमति दे दी है।कारण बताया गया है कि आयातित कोयला महंगा होने के बाद से यह प्लांट घाटे में चल रहा था।किसान फसल घाटे में बेच सकता है, अडाणी बिजली नहीं।और खैर बड़े पूँजीपति जब घाटे की बात करते हैं तो घाटा कितना सचमुच का और कितना किताबी होता है,अब इस बारे में न कहना ही बेहतर है।बहरहाल मोदी जी और अडाणी जी का यह प्रेमभाव बना रहे,जनता यही चाहती है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

वैसे, हमारे मोदी जी अमीरों के ऋण माफ करने के मामले में इतिहास पुरुष हैं।’द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार पिछले दस साल में बड़े चोरों के 156702(एक लाख छप्पन हजार सात सौ दो करोड़)के ऋण बट्टे खाते में डाल दिए गए हैं और इसे बड़ा खूबसूरत नाम दिया गया-‘नान परफार्मिंग एसेट’।यानी यह संपत्ति तो है मगर अभी जरा सुस्त पड़ी है।जो ऋण इनके माफ किए गए, इनमें से 80 फीसदी ऋण ‘हिंदू हृदय सम्राट’,’एयर सट्राइकर’, ‘चौकीदार’, ‘फकीर’ ने माफ किए हैं।

यह आरोप नहीं है भाइयो-बहनो, माँगने पर रिजर्व बैंक आफ इंडिया द्वारा दी गई सूचना है। अनेक मामलों में जानबूझकर, सरकारी खजाने में डाका डालने के लिए, ये ऋण लेकर लौटाए नहीं गए हैं मगर बैंक यूनियनों के बार -बार माँग करने पर भी इनके नाम सामने आने नहीं दिए गए। बेचारे ‘बदनाम’ न हों, इसका खयाल है कृपालु भजमन को।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार और कवि विष्णु नागर की एफबी वॉल से.

Sanjaya Kumar Singh : ट्वीटर पर नजर आया… प्लीज़ नोट: 1. पति-पत्नी के आपसी संबंध पारिवारिक मामला है। लेकिन एक एफेडेविट में खुद को अविवाहित बताने के बाद अगले एफेडेविट में विवाहित बताना मक्कारी है। 2. अनपढ़ होना गुनाह नहीं है। लेकिन एक चुनाव में खुद को डिग्रीधारक बताकर अगले चुनावी एफेडेविट में डिग्री गायब करना फरेब है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेरा ज्ञान : नामुमकिन मुमकिन है उसमें सब शामिल है।

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
https://www.youtube.com/watch?v=TOvti1XdDVY

इसे भी पढ़ें-

रॉफेल कांड : फ्रांस की मैगजीन Le Monde के खुलासे के बाद मोदी सरकार फिर घिरी

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement