Nitin Thakur : इस ख़बर को ध्यानपूर्वक पढ़िए और जानिए कि छप्पन इंच के सीने कितनी देर तक अंकल सैम की धमकी झेल पाते हैं।
भारत सरकार ने 24 दवाओं के निर्यात पर से प्रतिबंध हटा लिया है. बीते महीने उसने इन पर रोक लगाई थी. कोरोना वारयरस महामारी के कारण ग्लोबल सप्लाई चेन बिगड़ने के बाद सरकार ने यह कदम उठाया था. भारत दुनिया में जेनरिक दवाओं के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता देशों में से एक है. निर्यात से प्रतिबंध हटाने का मतलब है कि अब इन दवाओं को दूसरे देशों को भेजा जा सकेगा. जिन दवाओं पर से रोक हटाई गई है उनमें दर्द निवारक दवा पैरासीटामॉल नहीं है. हालांकि, न्यूज एजेंसी रायटर्स के मुताबिक, भारत एंटी-मलेरिया ड्रग हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के कुछ निर्यात की मंजूरी देगा. इसके पहले सरकार ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर भी रोक लगाई थी.
वैसे यह अब तक साफ नहीं हुआ है कि सरकार ने इन दवाओं के निर्यात पर रोक क्यों हटाई है. लेकिन, भारत सरकार के सूत्रों ने बताया था कि अमेरिका से इसे लेकर काफी दबाव था. सरकार ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच टेलीफोन से बातचीत हुई है. दोनों शीर्ष नेताओं की बातचीत के बाद व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जड डीरे ने बताया था कि दोनों इस बात पर राजी हैं कि आवश्यक दवाओं की ग्लोबल आपूर्ति पर वे एक-दूसरे के साथ संपर्क में रहेंगे. वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान वे जितना हो सकता है, उतना समन्वय के साथ काम करते रहेंगे.
3 मार्च को भारत ने 26 दवाओं के निर्यात पर रोक लगाई थी. पुरानी सूची में पैरोसीटामॉल और उसके फॉर्म्यूलेशन दो आइटमों में शामिल थे. जिन 26 दावाओं के निर्यात पर रोक लगाई गई थी, उनकी कुल निर्यात होने वाली दवाओं में हिस्सेदारी 10 फीसदी थी.
भारत ने ज्यादातर डायग्नॉस्टिक टेस्टिंग किट्स के निर्यात पर भी रोक लगा दी है. हाल के हफ्तों में उसने वेंटिलेटर, मास्क और प्रोटेक्टिव गियर के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाया है. इनकी जरूरत मरीजों और मेडिकल स्टाफ को पड़ती है. शनिवार को हुई बातचीत के दौरान ट्रंप ने मोदी को मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की आपूर्ति जारी रखने को कहा था. माना जा रहा है कि यह दवा कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के उपचार में कारगर है. ट्रंप ने सोमवार को चेतावनी दी थी कि भारत को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर बैन लगाने के फैसले को लेकर सोचना चाहिए. अगर उसने यह नहीं किया तो हम भी ऐसे ही कदमों से इसका जवाब देंगे.
(इकोनॉमिक टाइम्स)
अब समझ लीजिए कि शाम को अंकल सैम का फोन आया और सुबह ही बैन हट गया और ये तब है जब खुद अंकल सैम ने कनाडा जा रहे पानी के जहाज़ रोक लिए जिनमें मेडिकल किट थी. कनाडा उन्हें गरिया रहा है और याद दिला रहा है कि कैसे 9/11 के दिन जब अमेरिका घबराया हुआ था तो उनके करीब साढ़े छह हज़ार नागरिकों को कनाडा ने शरण दी थी। ये सभी लोग हमले वाले दिन अमेरिका में हवाई यात्रा पर थे मगर अमेरिका ने इमरजेंसी में सभी विमानों को कनाडा में उतारा था। इसके उलट अंकल सैम भारत से ना केवल दवा ले रहे हैं बल्कि अपने लोगों के बीच ये संदेश भी साफ दे रहे हैं कि अगर भारत ना मानता तो विरोध में कदम उठाए जाते। उन्होंने हमारे देश की सरकार से ये मौका भी छीन लिया कि वो कह सकती कि दुनिया की भलाई के लिए हमने दवाओं से बैन हटा लिया, क्योंकि अब तो सबको पता चल गया कि अंकल सैम आदतानुसार धमकी देकर काम निकाल रहे हैं।
कभी अमेरिका की तरफ से सातवां नौसैनिक बेड़ा भारत की तरफ बढ़ा था ताकि पाकिस्तान की मदद कर सके तब एक प्रधानमंत्री ने पूरी ठसक से कहा था कि हिन्दुस्तान किसी से नहीं डरता, चाहे सातवां बेड़ा हो या सत्तरवां. इसी तरह परमाणु परीक्षण के बाद हर तरह के बैन की धमकी का जवाब एक और प्रधानमंत्री ने सीटीबीटी पर किसी हालत में साइन ना करके दिया था।