राफेल की कोई फाइल चोरी नहीं हुई है। दरअसल, मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में साबित करना चाहती है कि रक्षा मंत्रालय से जो फाइलें ‘‘चोरी’’ हुई हैं, उन्हीं का इस्तेमाल वकील प्रशांत भूषण कर रहे हैं। यानी कि परोक्ष रूप से सरकार कहना चाह रही है कि फाइलों की कथित चोरी में प्रशांत भूषण की भूमिका हो सकती है।
ये साबित करने की कोशिश का मतलब है कि सरकार प्रशांत भूषण के खिलाफ सरकारी गोपनीयता कानून (ओएसए) के तहत केस दर्ज कर उन्हें घेरने और उनका मुंह बंद कराने का प्रयास करेगी।
लेकिन लॉंग टर्म में देखें तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इस वाकये के जरिए मोदी सरकार एक बार फिर पत्रकारों को संदेश देना चाहती है कि आप जब भी कोई खबर लिखें, तो वो ‘‘सरकारी सूत्रों’’ या ‘‘सरकार द्वारा मुहैया कराए गए दस्तावेजों’’ पर ही आधारित होने चाहिए। वरना आप पर सरकारी गोपनीयता कानून के उल्लंघन का केस ठोंक कर हमेशा के लिए मुंह बंद करा दिया जाएगा।
अगर आपको मेरी बात पर यकीन न हो तो पेट्रोलियम मिनिस्ट्री कवर करने वाले पत्रकार शांतनु सैकिया के केस को गूगल करके पढ़ लें। शांतनु को 2015 में पेट्रोलियम मिनिस्ट्री से ‘‘गोपनीय दस्तावेज’’ की लीक के मामले में गिरफ्तार किया गया था। उस वक्त ऐसा माना जा रहा था कि शांतनु किसी बड़े घोटाले का पर्दाफाश करने वाले थे। लेकिन सरकार ने ऐन मौके पर उनका मुंह बंद करा दिया।
ये वाकया भी मोदी सरकार के शासनकानल में ही हुआ था। इस मामले के बाद मंत्रालयों और सरकारी दफ्तरों में पत्रकारों का आना-जाना बहुत कम हो गया। उन्हें सिर्फ प्रवक्ताओं से मिलने की इजाजत दी गई। दफ्तरों में फोटो कॉपी का भी पूरा हिसाब-किताब रखा जाने लगा, ताकि घोटालों का खुलासा करने वाला कोई दस्तोवज बाहर नहीं जा सके। इसका एकमात्र मकसद ‘खोजी पत्रकारों’ पर नकेल कसना था।
बहरहाल, इस राम कहानी के बीच दिल्ली के सीजीओ कॉम्प्लेक्स में एक इमारत में लगी आग की खबरों को बारीकी से पढ़ें। जिस इमारत में आग लगी है, उसमें भारतीय वायुसेना का भी एक दफ्तर है। राफेल वायुसेना के लिए ही खरीदा जाना है।
एक तरफ आग लग रही है और दूसरी तरफ राफेल की फाइल चोरी हो रही है। दोनों का कोई कनेक्शन तो नहीं?
पीटीआई के तेजतर्रार पत्रकार प्रियभांशु रंजन की एफबी वॉल से.
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