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द हिंदू ने जले पर नमक की तरह आज भी राफेल की एक रिपोर्ट छाप दी है

Dilip Khan : सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा कि अगर रफ़ाल की सीबीआई जांच हुई तो देश का नुक़सान हो जाएगा. पिछली सरकार में विपक्ष के दबाव के आगे 2जी की सीबीआई जांच हुई थी. जेपीसी भी बनी थी. चलिए, सीबीआई जांच मत कराइए, जेपीसी ही बना लीजिए.

अदालत में सबसे मज़ेदार तो ‘चोरी’ वाली दलील थी. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि द हिंदू की जिन रिपोर्ट्स का याचिकाकर्ता हवाला दे रहे हैं वो ग़ैर-क़ानूनी है. केके वेणुगोपाल ने कहा कि असल में वो दस्तावेज़ रक्षा मंत्रालय से ‘चोरी’ किए गए हैं और सरकार इसकी जांच कर रही है.

जले पर नमक की तरह द हिंदू ने आज भी एक रिपोर्ट छाप दी है. मोदी सरकार से पहले मीडिया में दस्वावेज़ छपना ‘खोजी रिपोर्ट’ कहलाती थी. मोदी सरकार में अब इसे ‘चोरी’ कहा जा रहा है. फर्क तो है!

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तुर्रा ये कि चौकीदार निगरानी कर रहा है. अगर दस्तावेज़ चोरी हुए तो चौकीदार क्या कर रहे थे? सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने झूठा हलफ़नामा दिया. जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर को फ़ैसला सुना दिया. अब नए सिरे से सुनवाई चल रही है तो मोदी सरकार चोरी, ग़ैर-क़ानूनी, देश का नुक़सान जैसे जुमले फेंकने में जुट गई है.

Sanjay Kumar Singh : द हिन्दू में एन राम ने आज रफाल सौदे पर फिर एक खुलासा किया है। पहले पन्ने पर सात कॉलम में टॉप पर छपी खबर का शीर्षक है, “बैंक गारंटी नहीं होने का मतलब हुआ महंगा नया सफाल सौदा”। खबर के मुताबिक इंडियन नेगोशिएटिंग टीम ( यानी सौदे के लिए बनी मोल भाव करने वाली भारतीय टीम संक्षेप में आईएनटी) ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में खुलासा किया है कि समानांतर सौदेबाजी से उसकी स्थिति कैसे कमजोर कर दी गई थी और फ्रेंच स्थिति मजबूत हो गई थी। खबर के मुताबिक यह रिपोर्ट 21 जुलाई 2016 को रक्षा मंत्रालय को सौंपी गई थी।

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खबर के मुताबिक बैंक गारंटी नहीं होने से 36 विमानों का सौदा यूपीए के सौदे की तुलना में 246.11 मिलियन यूरो महंगा है।

भईल बिआह अब करबS का…. और नामुमकिन अब मुमकिन है। बचपन में सुनता था कि बिहार में पकड़ुआ विवाह होता है। अच्छे, योग्य लड़कों को पकड़ कर जबरन शादी कर दी जाती थी। इसके अपने नुकसान थे और बचने का अपना तरीका। पर जिसकी शादी हो जाती थी उससे समाज कहता था, “भईल बिआह अब करबS का?” मतलब शादी हो गई अब क्या करोगे? रहो उसी के साथ। मुख्य रूप से यह दहेज से बचने के लिए होता था। कहने की जरूरत नहीं है, उस शादी को सामाजिक स्वीकृति होती थी।

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रफाल पर जो मस्ती चल रही है उससे मुझे याद आया – अब फाइलें चोरी हो गईं तो हो गईं। क्या कर सकते हैं। इसे भी उतनी ही सामाजिक स्वीकृति है।

सबका साथ सबका विकास इसी को कहते हैं। ना शादी का टेंशन ना चोरी होने का। अब ऐसी शादी नहीं होती और बाकायदा जो होती है उसमें भी आप पत्नी छोड़ सकते हैं। तीन तलाक वालों की बात नहीं कर रहा (उनका भी विकास किया जा रहा है)। बाकी लोगों के लिए तलाक ही नहीं, आपसी सहमति से भी पत्नी को छोड़ना या विवाह को नल एंड वॉयड करना अपेक्षाकृत आसान हुआ है। और चोरी हो जाए तो भी कौन परवाह नहीं करता। साइकिल चोरी की तो एफआईआर नहीं लिखाते लोग। मैं आज तक कार नहीं खरीद पाया पर न जाने कितने परिचितों की कारें चोरी होने की कहानी जानता हूं। उनकी खबर भी नहीं छपी। ऐसे में फाइल की क्या औकत। इसलिए परेशान नहीं होने का। जस्ट चिल्ल। इसी को कहते है – नामुमकिन अब मुमकिन है।

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पत्रकारद्वय दिलीप खान और संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.

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