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सियासत

दम तो है केजरीवाल की तल्खी में

अरविन्द केजरीवाल की तल्खी और आरोपों को लगाने की दमदारी का मैं हमेशा कायल रहा हूं। एक सशक्त लोकतंत्र में जब तक इस तरह की बेबाकी नहीं होगी तब तक उसकी गूंज राजनीतिक गलियारों से लेकर मीडिया तक सुनाई नहीं देगी। सफल लोकतंत्र का तो सबसे बड़ा तकाजा भी यही बोलता है कि पक्ष से ज्यादा ताकतवर विपक्ष होना चाहिए तब ही जनता के हित सुरक्षित रह सकेंगे। इसमें भी कोई शक नहीं कि भाजपा ने विपक्ष का रोल पूरी दमदारी से निभाया और आज भी सत्ता पक्ष में आने के बावजूद वह अपने प्रचार-प्रसार और मार्केटिंग में कोई कोताही नहीं बरत रही है। इसके ठीक विपरित कांग्रेस की हालत यह है कि उसकी ट्यूबलाइट लगातार बुरी तरह हार के बावजूद आज तक नहीं जलती दिख रही है।

<p>अरविन्द केजरीवाल की तल्खी और आरोपों को लगाने की दमदारी का मैं हमेशा कायल रहा हूं। एक सशक्त लोकतंत्र में जब तक इस तरह की बेबाकी नहीं होगी तब तक उसकी गूंज राजनीतिक गलियारों से लेकर मीडिया तक सुनाई नहीं देगी। सफल लोकतंत्र का तो सबसे बड़ा तकाजा भी यही बोलता है कि पक्ष से ज्यादा ताकतवर विपक्ष होना चाहिए तब ही जनता के हित सुरक्षित रह सकेंगे। इसमें भी कोई शक नहीं कि भाजपा ने विपक्ष का रोल पूरी दमदारी से निभाया और आज भी सत्ता पक्ष में आने के बावजूद वह अपने प्रचार-प्रसार और मार्केटिंग में कोई कोताही नहीं बरत रही है। इसके ठीक विपरित कांग्रेस की हालत यह है कि उसकी ट्यूबलाइट लगातार बुरी तरह हार के बावजूद आज तक नहीं जलती दिख रही है।</p>

अरविन्द केजरीवाल की तल्खी और आरोपों को लगाने की दमदारी का मैं हमेशा कायल रहा हूं। एक सशक्त लोकतंत्र में जब तक इस तरह की बेबाकी नहीं होगी तब तक उसकी गूंज राजनीतिक गलियारों से लेकर मीडिया तक सुनाई नहीं देगी। सफल लोकतंत्र का तो सबसे बड़ा तकाजा भी यही बोलता है कि पक्ष से ज्यादा ताकतवर विपक्ष होना चाहिए तब ही जनता के हित सुरक्षित रह सकेंगे। इसमें भी कोई शक नहीं कि भाजपा ने विपक्ष का रोल पूरी दमदारी से निभाया और आज भी सत्ता पक्ष में आने के बावजूद वह अपने प्रचार-प्रसार और मार्केटिंग में कोई कोताही नहीं बरत रही है। इसके ठीक विपरित कांग्रेस की हालत यह है कि उसकी ट्यूबलाइट लगातार बुरी तरह हार के बावजूद आज तक नहीं जलती दिख रही है।

उसके युवराज राहुल गांधी रटारटाया भाषण देते हैं और फिर पता नहीं कहां गायब हो जाते हैं। अभी मणीपुर से लेकर जम्मू कश्मीर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे रहे, जिन पर सोनिया से लेकर राहुल गांधी का एक भी जबरदस्त बयान सामने नहीं आया। इसके विपरित अरविंद केजरीवाल के बयानों में जहां दम रहता है वहीं वे नरेन्द्र मोदी से लेकर भाजपा और कांग्रेस पर हमला बोलने में पीछे नहीं रहते और रॉबर्ट वाड्रा से लेकर अम्बानी तक को नहीं बख्शते। यह बात अलग है कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी की तुलना में उन्हें उतना पॉजिटिव प्रचार नहीं मिलता और मीडिया भी बाल की खाल निकालने में जुटा रहता है। मैं खुद कई बार यह कह चुका हूं कि नरेन्द्र मोदी का विरोध करने की कूवत सिर्फ और सिर्फ अरविन्द केजरीवाल में ही है और यह बात खुद अन्ना हजारे भी कह चुके हैं। अभी तो विपक्ष यानि कांग्रेस भी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ हमलावर रुख अपनाने में लगभग असफल रही है। भूमि अधिग्रहण बिल जैसे मुद्दे को अगर छोड़ दिया जाए और मीडिया भी उतनी चीरफाड़ नहीं कर रहा जितनी पैनी निगाह उसकी नई दिल्ली की आप पार्टी सरकार और टीम केजरीवाल पर रहती है।

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यहां तक कि न्यूज चैनलों के एंकर अमित शाह का इंटरव्यू लेने के वक्त ही भीगी बिल्ली नजर आते हैं और केजरीवाल के मामले में शेर की तरह गुर्राने लगते हैं। एनडीटीवी की बरखा दत्त को दिए गए इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर दमदारी दिखाई और जोरदार तरीके से नरेन्द्र मोदी से लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग पर हमले बोले। उनकी बात इसलिए भी सही लगती है कि जनता ने उन्हें प्रचंड बहुमत से जिताया, तो दिल्ली में स्वतंत्र रूप से काम भी करने देना चाहिए। अरविन्द केजरीवाल ने एक और बड़े मार्के की बात कही जो मैं खुद पूर्व में कई बार लिख भी चुका हूं कि राहुल गांधी से अधिक राजनीतिक समझ अरविन्द केजरीवाल में है और इस बार तो खुद केजरीवाल ने अपने इंटरव्यू में दो टूक कहा कि नरेन्द्र मोदी उन्हें राहुल गांधी ना समझें।

व्यंग्यपूर्वक की गई इस बात में बड़े गहरे अर्थ छुपे हुए हैं। सोशल मीडिया में तो राहुल गांधी लगातार पप्पू करार दे ही दिए गए हैं और उनकी राजनीतिक समझ भी इस बात को प्रमाणित करती रही है। भाजपा दरअसल नई दिल्ली में तमाम अवरोध इसीलिए खड़ा कर रही है ताकि केजरीवाल सरकार सफल ना हो सके और विवादों में ही घिरी रहे। भाजपा के सारे सुरमा नई दिल्ली में इसीलिए ढेर हो गए और खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी नई दिल्ली के चुनाव में कोई चमत्कार नहीं दिखा पाए। इसी से यह साबित होता है कि नरेन्द्र मोदी का मुकाबला हर स्तर पर अरविंद केजरीवाल ही कर सकते हैं और यह समझ आज तक राहुल गांधी में नहीं देखी गई है और यह बात अब खुद केजरीवाल ने भी व्यंग्यपूर्वक कह दी है। कम से कम राहुल गांधी को अरविंद केजरीवाल से ही क्लास लेने की जरूरत है और पिछले दिल्ली के विधानसभा चुनाव में वे आप पार्टी से सीखने की बात भी कह चुके हैं। कम से कम दिल्ली के मामले में कांग्रेस को भाजपा की हां में हां मिलाना बंद करना चाहिए ताकि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार काम कर सके। अभी तो भाजपा द्वारा लगाए गए आरोपों को ही कांग्रेस दोहराती नजर आती है।

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वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक राजेश ज्वेल संपर्क : [email protected]

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