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उत्तर प्रदेश

रमेश लोधी की पुलिस हिरासत में मौत के सदमे से उनके चाचा नन्हें पहलवान की भी मौत

हिरासत में मौत को छिपाने के लिए पुलिस ने बेगुनाहों को बनाया आरोपी… जांच के नाम पर नन्हें पहलवान के परिजनों और हमदर्दों को परेशान कर रही है पुलिस…  नन्हें पहलवान नहीं रहे. वह लखनऊ के इंदिरा नगर इलाके में बहुत पहले शामिल हो चुके तकरोही गांव के मजरे फतहापुरवा के निवासी थे. वह मामूली आदमी थे लेकिन उनकी मौत की खबर इसलिए ख़ास है क्योंकि वह उस रमेश लोधी के चाचा थे जिसकी पिछली 7 अप्रैल को पुलिस हिरासत में मौत हुई थी और वही इस मामले के प्रमुख पैरोकार भी थे.

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हिरासत में मौत को छिपाने के लिए पुलिस ने बेगुनाहों को बनाया आरोपी… जांच के नाम पर नन्हें पहलवान के परिजनों और हमदर्दों को परेशान कर रही है पुलिस…  नन्हें पहलवान नहीं रहे. वह लखनऊ के इंदिरा नगर इलाके में बहुत पहले शामिल हो चुके तकरोही गांव के मजरे फतहापुरवा के निवासी थे. वह मामूली आदमी थे लेकिन उनकी मौत की खबर इसलिए ख़ास है क्योंकि वह उस रमेश लोधी के चाचा थे जिसकी पिछली 7 अप्रैल को पुलिस हिरासत में मौत हुई थी और वही इस मामले के प्रमुख पैरोकार भी थे.

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नन्हें पहलवान स्वाभाविक मौत नहीं मरे. पुलिस ने पहले उनका भतीजा छीना और फिर इंसाफ मांगने पर उनका चैन भी लूट लिया. ख़ास बात यह भी कि उन्होंने उन चार लोगों को बेकसूर माना था जिन्हें पुलिस ने इस मामले के आरोपी के बतौर जेल भिजवा दिया. इंसानी बिरादरी, रिहाई मंच और इंसाफ अभियान की हुई साझा बैठक ने नन्हें पहलवान की असमय मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे इंसाफ की लड़ाई के लिए बड़ा नुकसान करार दिया. लेकिन साथ ही संकल्प भी लिया कि उनकी लड़ाई को इंसाफ मिलने तक जारी रखा जायेगा. संगठनों से जुड़े लोगों ने इस पूरे मामले की छानबीन की थी जिसके नतीजे पुलिस को ही कटघरे में खड़ा करते हैं.

यह मामला मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की इस गर्वीली घोषणा की वास्तविकता का उदाहरण है कि कानून व्यवस्था को ठीक करना उनकी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. यह उल्लेख भी ज़रूरी है कि नन्हें पहलवान ने एसएसपी के घर दस्तक दी और मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी इंसाफ की गोहार लगायी लेकिन इंसाफ मिलने की संभावना का कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. राजधानी की इस स्थिति से अंदाज लगाया जा सकता है कि सूबे के दूसरे इलाकों में कानून व्यवस्था की हालत कैसी होगी.

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जांच दल में शामिल थे- इंसानी बिरादरी के खिदमतगार ‘सृजनयोगी’ आदियोग और वीरेंद्र कुमार गुप्ता, रिहाई मंच के अध्यक्ष और मशहूर वकील शोएब मोहम्मद, महासचिव राजीव यादव और अनिल यादव, इंसाफ अभियान की गुंजन सिंह, विनोद यादव और परवेज सिद्दीकी. जांच दल ने शिद्दत के साथ महसूस किया कि भतीजे की पुलिस हिरासत में हुई मौत ने नन्हें पहलवान को बुरी तरह झकझोर दिया था. घरवालों की मर्जी के खिलाफ पुलिस उसका शव पोस्टमार्टम हाउस से सीधे भैंसाकुंड ले गयी थी जहां विद्धुत शवदाह गृह में उसे फूंक दिया गया.

घरवाले चाहते थे कि शव पहले उनके गांव ले जाया जाये लेकिन पुलिस ने उनकी एक न सुनी. इस बेचारगी का मलाल उनका पीछा नहीं छोड़ रहा था. सदमे के इस आलम में पुलिस की जब तब आमद और अपने साथ खड़े लोगों पर बन रहे उसके दबाव ने उनकी बेचैनी और बढ़ा दी थी. इंसाफ पाने की उम्मीद बिखरती जा रही थी कि 24 अप्रैल को दोपहर बाद उनका बुझता दिल आखिरकार थम ही गया.

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जांच दल ने जोर देकर कहा कि रमेश लोधी की मौत शक के घेरे में है. जेल में बंद लोगों के परिजनों और पड़ोसियों के मुताबिक़ 6-7 अप्रैल की रात कोई सवा बजे इंदिरा नगर के दायरे में शामिल हो चुके चांदन गांव के सुनसान कोने में स्थित कय्यूम के घर चोर घुसा था. आहट से घरवालों की नींद टूट गयी, शोर से पड़ोसी भी जाग गये और वह पकड़ा गया. उसकी थोड़ी बहुत पिटाई हुई और 100 नंबर पर उसके पकड़े जाने की सूचना दे दी गयी.

पुलिस घटनास्थल पर पहुंची लेकिन उसने पानी-मिट्टी से सने चोर को अपने वाहन में बिठाने से परहेज किया और चोर को गोमती नगर थाना पहुंचाने की जिम्मेदारी कय्यूम और उसके पड़ोसी अकील पर लाद दी. मोटरसाइकिल पर दोनों के बीच चोर बैठा. पड़ोसी होने के नाते दूसरी मोटरसाइकिल से इरफान और बबलू भी साथ हो लिये. रात ढाई बजे तक चारों अपने घर वापस भी लौट आये. यही चारों बाद में आरोपी बना दिये गये. चारों गरीब परिवार से हैं और अपने घरों के मुखिया भी हैं. उनके जेल चले जाने के चलते उनके परिवार भीषण तंगी से गुजर रहे हैं.

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पुलिस कहती है कि उसने चोर को अपने कब्जे में लिया था लेकिन वह उसकी पकड़ से भाग निकला. उसे बहुत खोजा गया लेकिन वह हाथ न आया. दूसरे दिन सुबह तकरोही से सटी मायावती कालोनी के पास लावारिस लाश मिली. 100 नंबर पर इसकी सूचना मिलने पर पुलिस आयी और उसे मेडिकल कालेज ले कर चली गयी. उसे लावारिस घोषित कर दिया गया.

नन्हें पहलवान के मुताबिक़ रात कोई 3.30 बजे पुलिस उनके घर आयी थी और उनसे रमेश लोधी के बारे में पूछताछ की थी. लेकिन यह नहीं बताया कि आखिर इतनी रात में की जा रही पूछताछ के पीछे माजरा क्या है. अगले दिन यानी 7 अप्रैल को कोई 11.30 बजे पुलिस फिर गांव आयी और उनसे मोबाइल पर एक धुंधली सी तसवीर पहचानने को कहा. नन्हें पहलवान और फिर रमेश की मां सताना समेत घर के दूसरे सदस्यों और पड़ोसियों ने भी उस तसवीर को नहीं पहचाना. तो भी पुलिस ने नन्हें पहलवान को पोस्टमार्टम हाउस चल कर लाश की पहचान करने का दबाव बनाया.

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नन्हें पहलवान ने लाश को देखते ही उसकी पहचान अपने भतीजे के तौर पर कर दी. इसके साथ ही पुलिस ने रहस्यमयी मुस्तैदी दिखायी और लाश को फ़टाफ़ट फुंकवा कर ही दम लिया. इस बीच सूचना पा कर रमेश की बहन बिंदेश्वरी सीधे भैंसाकुंड पहुंची थी. उसने लाश को गांव ले जाने की ज़िद पकड़ी और पुलिस की इस जल्दबाजी के पीछे किसी साजिश की आशंका भी जतायी. लेकिन उनकी आवाज अनसुनी रहा गयी. पुलिस ने जो चाहा, वही किया. वर्दी का आतंक बहुत भारी होता है.

शवदाह के समय मौजूद लोगों ने कुछेक पुलिसवालों को फोन पर किसी को कुछ ऐसा भरोसा दिलाते हुए सुना कि सब ठीक हो जायेगा सर, कि काम पूरा हो गया सर. शव दाह के फ़ौरन बाद पुलिस नन्हें पहलवान को थाने पर पहुंचने का आदेश देकर चलती बनी. थाने में समझौते की बात चल रही थी और उनसे किसी कागज़ पर अंगूठे का निशान लिया जाना था. इस बीच वह दवा लेने बाहर निकले. इस बहाने उन्होंने किसी वकील से संपर्क साधा और उसकी सलाह पर वापस थाने जाने के बजाय सीधे अपने घर चले गये.

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इसके बाद पुलिस कैलाश लोधी के पीछे पड़ गयी जो उन्हें थाने से मेडिकल की दूकान तक ले गये थे. पुलिस को लगा कि नन्हें पहलवान के थाना वापस न लौटने के पीछे कैलाश लोधी का दिमाग है. पुलिस ने उन्हें धमकाया, लगातार उनका फोन घनघनाया और रिस्पांस न मिलने पर उनके घर भी धमक गयी. उन्हें डर है कि पुलिस उन्हें कभी भी फंसा सकती है.

इस डर की छाया नन्हें पहलवान की अंतिम यात्रा के दौरान भी दिखी. इस मामले पर सबने जैसे खामोशी ओढ़ रखी थी. एक नौजवान ने बताया कि सुबह नन्हें पहलवान बहुत उदास थे. कहा कि अब कुछ नहीं होनेवाला. पुलिस बच निकलेगी और चार लोग पुलिस के गुनाह की सजा भुगतेंगे, उन बेचारों के घर बर्बाद हो जायेंगे. नाम पूछने पर वह नौजवान चौकन्ना हो गया. बोला कि कहीं मेरा नाम मत लिखियेगा. जिन लोगों ने व्हाट्स एप पर इस मामले से संबंधित पोस्ट साझा की, पुलिस ने उनकी भी घेराबंदी की. तो पुलिस बहुत कुछ कर सकती है. उससे दूर ही रहने में भलाई है. वैसे, नन्हें पहलवान के अंतिम संस्कार के बाद भी विभिन्न रूपों में पुलिसिया घौंसपट्टी का यह सिलसिला जारी है.

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ढेरों सवाल हैं. लोगों का बयान है कि चोर को थाने ले जाया गया था. क्यों न माना जाये कि थाने में उसकी बेरहम पिटाई हुई जिससे वह लाश में बदल गया. खुद को बचाने के लिए पुलिस ने उसकी लाश सड़क किनारे फेंक दी और फिर लावारिस लाश की बरामदगी दिखा दी. तो फिर पुलिस देर रात नन्हें पहलवान के घर रमेश लोधी के बारे में पूछताछ करने क्यों और किस आधार पर गयी थी. अगर लाश लावारिस थी तो उसकी शिनाख्त करने के लिए उन पर इतना जोर क्यों था. शवदाह की जल्दी क्यों थी. लाश को घर ले जाने में पुलिस को क्या और कैसी हिचक थी. गांव स्थित श्मशान में शवदाह क्यों नहीं हो सकता था. यह झूठी बात क्यों फैलायी गयी कि रमेश शादीशुदा था, कि उसकी पत्नी उसकी इन्हीं आदतों के चलते छह माह पहले उसे छोड़ कर जा चुकी थी. जबकि रमेश अविवाहित था और हिंदू समाज में अविवाहित को जलाने की नहीं, दफनाये जाने की परंपरा रही है. तो क्या शवदाह और उसमें जल्दबाजी के पीछे पुलिस की मंशा अपने गुनाहों के सबूत मिटाने की थी. पुलिस किस बात का समझौता कराना चाहती थी और क्यों. नन्हें पहलवान के हमदर्दों के खिलाफ पुलिस ने निशाना क्यों साधा. ऐसा माहौल क्यों बनाया कि लोग चुप रहें, कि इसी में अपनी भलाई समझें. जांच दल की मांग है कि मुख्यमंत्री और एसएसपी को भेजी गयी नन्हें पहलवान की अर्जी के मुताबिक़ फ़ौरन कार्रवाई हो और पुलिस की भूमिका की उच्च स्तरीय जांच हो.

द्वारा जारी;
वीरेंद्र कुमार गुप्ता
खिदमतगार- इंसानी बिरादरी
मो. 8960087282 

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