आधे पन्ने के इंटरव्यू में ना ढंग से सवाल पूछे ना खुद सही स्थिति बताई
दैनिक भास्कर में आज भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह से अहमदाबाद में दिव्य भास्कर स्टेट एडिटर देवेंद्र भटनागर की खास बातचीत छपी है। इसमें अन्य सवालों के साथ एक सवाल है – साध्वी प्रज्ञा को टिकट देने का कारण? क्या भगवा आतंक को मुद्दा बनाना था? जवाब है – बिलकुल नहीं। भारतीय संस्कृति को बदनाम किया था। भगवा आतंकवाद जैसे नाम दिए गए। जो हिंदू धर्म काटने वाली चींटी को भी आटा डाले वो क्या बम धमाके करेगा? हिंदू संस्कृति को आतंकवाद के साथ जोड़ने के खिलाफ ये हमारा सत्याग्रह है। इसपर अगला सवाल है – यानी भोपाल का चुनाव सत्याग्रह है? इसका जवाब है – ये उनकी साजिश थी। उसे उजागर करने के लिए साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाया। ताकि षड्यंत्र के मूल सूत्रधार को बेनकाब किया जा सके।
कहने की जरूरत है कि जवाब संतोषजनक नहीं है और टालू है। कायदे से इसपर आगे सवाल किए जाने चाहिए थे या फिर इस सवाल जवाब को छापना ही नहीं चाहिए था। हालांकि पूरा इंटरव्यू ही ऐसा है और ढंग से काउंटर सवाल नहीं किए गए है। अभी मैं इस विस्तार में नहीं जाउंगा पर साध्वी प्रज्ञा का मुद्दा इस समय गर्म है और भाजपा का जवाब भी सार्वजनिक है और अखबार ने इस इंटरव्यू के जरिए हमें कुछ खास नहीं बताया है इसलिए इसपर प्रकाश डालने के लिए मैं आपको बताता हूं कि साध्वी प्रज्ञा पर आरोप ऐसे ही नहीं हैं और ना हिन्दू आतंकवाद का मामला इतना कमजोर है कि श्राप देने से खत्म हो जाएगा। फिर भी काउंटर सवाल नहीं किया जाना आपत्तिजनक है और मैं बताता हूं कि मामला क्या है।
इंटरनेट पर इस संबंध में ढेरों सूचनाएं उपलब्ध हैं। उमा भारती का 2008 का बयान है कि भारतीय जनता पार्टी साध्वी प्रज्ञा सिंह से पल्ला झाड़ रही है और 2017 में कैच न्यूज की खबर है कि प्रज्ञा सिंह को भले केसरिया आतंक पसंद न हो पर इसका मतलब यह नहीं है कि यह (पूरा मामला) हौव्वा है। मैंने यह जानकारी कोई बहुत मेहनत करके नहीं जुटाई है इंटरनेट पर उपलब्ध है और गूगल करने से ही मिल गए। यानी घर बैठे-बैठे। कई पन्ने जरूर पढ़ने पड़े कुछ अनुवाद भी किया पर लिंक को देखते ही समझ में आ गया कि काम की जानकारी कहां हो सकती है और इसमें बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी। इंडिया टुडे एंटी फेक न्यूज वॉर रूम ने अपनी पड़ताल में पाया कि मालेगांव ब्लास्ट केस से महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) हटा लिया था, लेकिन इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत साध्वी पर अब भी मुकदमा चल रहा है।
अमनप्रीत कौर ने अपनी इस खबर में लिखा है, चौकीदर पुनीत अग्रवाल ने ट्वीट किया जिसका हिंदी अनुवाद है: ‘साध्वी प्रज्ञा पर केवल आरोप लगे थे और उन्हें एनआईए कोर्ट ने बरी कर दिया है। हर कोई जानता है कि उन्हें फंसाया गया था। ….।’ दैनिक भास्कर में प्रकाशित सवाल-जवाब से भी ऐसा ही लग रहा है। खबर में कहा गया है, कई ट्विटर यूजर्स जैसे वरिष्ठ पत्रकार अमीष देवगन, चौकीदार दीपज्योति पाल, पूर्व पत्रकार मोनिका, टीवी चैनल आज तक, फेसबुक यूजर्स अंशुमन गुप्ता और शुभम सिंह ने भी यह दावा किया कि साध्वी प्रज्ञा को कोर्ट ने बरी कर दिया है। खबर लिखे जाने तक अमीष के ट्वीट पर 6000 से ज्यादा रीट्वीट्स और 15000 से ज्यादा लाइक्स आ चुके थे। इसका मतलब आप समझ सकते हैं कि इतने लोगों तक गलत सूचना पहुंच गई है और उनके दिमाग में दर्ज हो चुका है। यह सूचना अब सार्वजनिक है जबकि तथ्य यह है कि साध्वी पर 2008 मालेगांव ब्लास्ट में फिलहाल गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा चल रहा है। हालांकि कोर्ट ने इस केस से मकोका के चार्ज हटा लिए हैं और साध्वी अप्रैल 2017 से जमानत पर हैं।
ऐसा नहीं है कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर को साध्वी कहा जाता है तो वे साध्वी ही हैं और मालेगांव ब्लास्ट तथा मकोका मामला उनपर ऐसे ही लगा दिया गया था। जैसा अमित शाह कहना चाह रहे हैं। प्रज्ञा को साल 2017 में मध्यप्रदेश के देवास कोर्ट ने सात अन्य लोगों के साथ पूर्व आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी की हत्या के केस से बरी किया था। साध्वी प्रज्ञा पर 2007 के इस मर्डर केस में षड्यंत्र रचने के आरोप भी थे। जहां तक 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस की बात है, महाराष्ट्र एंटी-टेरोरिज्म स्कवैड ने साध्वी प्रज्ञा को इस केस में प्रथम आरोपी बनाया था। मामला यह है कि 29 सितंबर 2008 को मोटरसाइकल में आईईडी से हुए बम धमाकों में छह लोगों की मौत हो गई थी, जबकि करीब 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। यह मोटरसाइकिल पहचानी न जाए इसके भी उपाय किए गए थे, इंजन नंबर चेसिस नंबर बदल दिए गए थे।
विस्फोट के लिए दो मोटर साइकिल का उपयोग किया गया था। एक सिमी ऑफिस में रखी गई थी और दूसरी गुजरात के मदोसा में। जांच करने वालों को भ्रमित करने के लिए इनपर इस्लामिक स्टीकर लगाया गया था और दो भिन्न गाड़ियों के फ्रेम व इंजन का उपयोग किया गया था। इंजन और चेसिस नंबर मिटा दिए गए थे। इसके बावजूद जांचकर्ताओ ने पता लगा लिया कि यह मोटर साइकिल सूरत आरटीओ में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पंजीकृत थी। दूसरी मोटर साइकिल एबीवीपी के किसी कार्यकर्ता के नाम थी जो इंदौर में एनजीओ चलाता है। हेमंत करकरे के नेतृत्व में एटीएस की टीम ने साध्वी को गिरफ्तार किया था। एटीएस की चार्जशीट के अनुसार साध्वी ने यह मोटरसाइकल रामचंद्र कलसांगर को दी थी, जिसने संदीप डांगे के साथ मिलकर इन धमाकों को अंजाम दिया था। चार्जशीट में यह भी कहा गया कि उसी साल भोपाल में 11 अप्रैल को इस धमाके का षड्यंत्र रचने के लिए हुई मीटिंग में साध्वी मौजूद थी और उसने धमाकों को अंजाम देने के लिए आदमी मुहैया करवाने की जिम्मेदारी भी ली थी।
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) के बनने के बाद यह केस अप्रैल 2011 में एनआईए को सौंपा गया। एनआईए ने 2016 में चार्जशीट दायर की जिसमें कहा कि एजेंसी को साध्वी प्रज्ञा के इस केस से जुड़े होने के कोई सबूत नहीं मिले, जिसके कारण उन्हें बरी किया जाना चाहिए। एजेंसी ने केस से मकोका हटाने की भी सिफारिश की जिसे कोर्ट ने मान लिया, लेकिन कोर्ट ने एजेंसी की साध्वी प्रज्ञा को केस से बरी करने की दलील को खारिज कर दिया। अप्रैल 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने साध्वी को जमानत दी। एनआईए ने साध्वी की जमानत की अर्जी पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की थी। वहीं कोर्ट ने भी इस तथ्य पर गौर किया कि साध्वी को हॉस्पिटल में दाखिल करवाया गया था और उनका इलाज चल रहा था। जमानत के ऑर्डर में वजह बताते हुए लिखा गया कि साध्वी ‘स्तन कैंसर से पीड़ित है’ और ‘इतनी कमजोर हो चुकी है कि बिना सहारे के चल भी नहीं सकती’। साध्वी को जमानत मिलने के कारणों में उनकी बीमारी भी एक वजह थी।
एनआईए ने ये कहते हुए साध्वी को क्लीन चिट दी थी कि उनके खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं, लेकिन एनआईए स्पेशल कोर्ट ने एजेंसी की इस दलील को अस्वीकार करते हुए दिसंबर 2017 में यह साफ कर दिया कि साध्वी पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलेगा। इसके बाद अक्तूबर 2018 में कोर्ट ने साध्वी और छह लोगों पर आरोप तय किए। प्रमुख मीडिया संस्थानों ने इस खबर को भी प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इस तरह, साफ है कि वे हत्या के आरोप से बरी हैं (जिसकी चर्चा नहीं के बराबर है) पर मालेगांव ब्लास्ट केस में आरोपी साध्वी प्रज्ञा को कोर्ट ने बरी नहीं किया है, इस मामले में उन पर मुकदमा अभी चल रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट।
BINOD KUMAR LAL
April 23, 2019 at 7:25 pm
Amzad Ali kaun tha jisko 14 din me bari ho gaya? jo bina passport & visa ka pakistan se aaya tha.
Aap Dr. Praveen Tiwari ka book “Atank Se Samjhauta” paden.