दैनिक भास्कर सागर इन दिनों भारी उठापठक का शिकार है। बताया जाता है कि संपादकीय प्रमुख और एसएमडी प्रमुख के बीच खासी रस्साकशी चल रही है। पिछले दिनों हुई यूएलटी (यूनिट लीडर टीम) की बैठक में संपादकीय विभाग के कई मुद्दों को लेकर एसएमडी प्रमुख और संपादक के बीच तीखी नोकझोंक हुई। कुछ अन्य लीडर ने मामले को शांत कराया अन्यथा नौबत मारपीट तक पहुंचती।
बताया जाता है कि अखबार में स्थानीय खबरों में जनहित की खबरों को तबज्जो न दी जाकर दुकानदारी की खबरों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इसी बात को लेकर एसएमडी प्रमुख अपनी नाराजगी जता रहे थे और कह रहे थे कि यदि खबरों का स्तर यही रहा तो अखबार को भारी नुकसान हो सकता है। एक सूत्र ने बताया कि इस बात को लेकर संपादक खासे तिलमिला गए और बात बढ़ गई।
दोनों ने अपने-अपने स्टेट हेड को लिखित शिकायत की है। वैसे अफवाहों पर ध्यान दिया जाए तो भास्कर में इन दिनों उन्हीं खबरों को प्रकाशित किया जाता है जिनकी सेटिंग होती है। बिजली कंपनी एस्सेल प्राइवेट लिमिटेड को लेकर मामला गर्म है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि संपादक और रिपोर्टर की सेटिंग के चलते बिजली से संबंधित खबरें दबा दी जाती हैं। जनता परेशान हैं लेकिन यह तथाकथित नंबर एक अखबार इस ओर ध्यान न देकर दुकानदारी पर ध्यान दे रहा है। एसएमडी प्रमुख का भी यही विरोध है कि जनता की खबरों पर ज्यादा ध्यान दिया जाए ताकि अखबार बेचने में दिक्कत न हो।
अखबार का दिन-प्रतिदिन गिरता स्तर भी इस बात की पुष्टि कर रहा है कि कुछ न कुछ दाल में काला जरूर है। बताया जाता है कि स्थानीय संपादक, समूह संपादक का खास दरबारी है और बिना योग्यता के चमचागिरी के दम पर संपादक बना बैठा है। कर्मचारी भी प्रताड़ित हैं कि अच्छा काम करने का कोई सिला नहीं मिलता है और उल्टे चार बातें सुनीं पड़ती हैं। एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि संपादक न्यूज रूम में मां बहन की गालियां बकता है और चाहे जिसे बर्खास्त करने की धमकी देता रहता है। कर्मचारी नौकरी बचाने के लिए चुपचाप सब सहन कर रहे हैं।
ऊपर से समूह संपादक के वरदहस्त ने स्थानीय संपादक को गाली बकने सहित सभी प्रकार की छूट दे रखी है। उच्च प्रबंधन भी सूरदास की भांति सब कुछ चुपचाप देख रहा है। स्थानीय संपादक पहले इंदौर में समूह संपादक का पीए हुआ करता था और समूह संपादक के घर के गेहूं पिसवाने और सब्जी लाने के पुरस्कार के रूप में उसे बिना योग्यता के संपादक की कुर्सी मिल गई है। न्यूज एडीटर भी अपनी कुर्सी बचाने की खातिर संपादक की चमचागिरी में लगा रहता है। संपादक द्वारा एसएमडी प्रबंधक की झूठी शिकायत की पोल भी ऊपर तक खुल गई है जिससे उसे नीचा देखना पड़ा है बावजूद उसके वो कुछ समझने को तैयार नहीं है। मजीठिया बेज बोर्ड को लेकर भी कर्मचारियों को धमकाया-चमकाया जाता है। इस मामले में एचआर प्रमुख जरूर कर्मचारियों की मदद कर रहा हैं।
एचआर प्रमुख की कोशिश होती है कि कुछ कर्मचारी सेठ के खिलाफ केस दायर कर दें। एचआर ने कुछ कर्मचारियों को उकसाया भी है । अंदरखाने की चर्चाओं पर कान धरें तो यह भी सामने आ रहा है कि एचआर व संपादक भ्रष्टाचार के मामले में भी एक हैं और दोनों मिलकर कंपनी को आर्थिक रूप से चूना पोत रहे हैं। एक कर्मचारी ने कई प्रमाणों सहित शिकायत भी की है लेकिन ऊपर बैठे आका के कारण इनका बाल बांका नहीं हो रहा है। यही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब दैनिक भास्कर औंधे मुंह जमीन पर गिरेगा।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित