विजय सिंह ठकुराय-
अगर किसी परजीवी सूक्ष्मजीव से यह सवाल पूछा जाए कि वो किसी ध्रुवीय भालू को अपना शिकार बनाना चाहेगा? अगर सूक्ष्मजीव बोल सकता तो उसका जवाब होता कि – नहीं…!
कारण? वह भालू उस सूक्ष्मजीव के लिए एकदम घाटे का सौदा है, बोले तो एकदम कहानी खत्म! अब न भालू पिकनिक मनाता है, न दुनिया के दूसरे कोनों में बसे दूसरे भालुओं से मिलने जाता है, न हवाई-जहाजों में यात्रा करता है। भालू एक भी काम ऐसा नहीं करता जो उस सूक्ष्मजीव को अपनी आबादी फैलाने का मौक़ा दे। पर हम इंसान ऐसा अक्सर करते हैं, इसलिए हम इन सूक्ष्मजीवों की सबसे बड़ी लाटरी का टिकट साबित होते हैं।
किसी सूक्ष्मजीव को जब हमारी कोशिकाओं को निशाना बनाना होता है तो उसमें एक अहम चरण है, कोशिकाओं की सतह पर मौजूद रिसेप्टर के अनुसार खुद को ढालना। इन रिसेप्टर को आप एक तरह का दरवाजा समझिये जिसकी चाबी सूक्ष्मजीवों को बनानी है। अगर सूक्ष्मजीव ने अपने शरीर पर मौजूद “एंटीजन” को चाबी की शक्ल में ढाल दिया तो कोशिका उसे “परिचित” समझ अन्दर आने का रास्ता दे देती है। वैसे तो ये द्वार करोड़ों टाइप के होते हैं, सबकी चाबी अलग। पर चूँकि सूक्ष्मजीव संख्या में अरबों-खरबों होते हैं, तो बहुत ज्यादा संभावना बन जाती है कि उनमें से कोई न कोई ताले की चाबी ढूंढ ही लेगा।
अगर दो जीवों की जैविकी (बॉडी स्ट्रक्चर) में बेहद समानता है तो एक जीव पर मौजूद सूक्ष्मजीव को दूसरे जीव तक पहुँचने के लिए खुद में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं करने पड़ते और इस तरह, उस सूक्ष्मजीव के होस्ट जम्प करने की प्रायिकता बढती जाती है। यहाँ रोचक बात यह है कि आधुनिक कसाईखानों में मौजूद ज्यादातर जीव, जिन्हें हम खाते हैं, जैविक वृक्ष में हमसे बहुत दूर नहीं, अर्थात वे भी लगभग हम जैसे ही हैं और हमारे और उनके बीच की होस्ट जम्प की संभावना भी सबसे अधिक। यही कारण है कि पिछली एक शताब्दी में जितनी भी होस्ट जम्प जनित बड़ी बीमारियाँ फैली हैं, उनमें आपको कोई मांस का बाजार, कसाईखाना अथवा अन्य किसी परिस्थिति में हुआ मानव-जानवर का मेल ही ग्राउंड जीरो के रूप में प्राप्त होगा।
इन कसाईखानों में अमानवीय परिस्थितियों में ठूस कर रखे गये जानवरों को स्वस्थ रखने के लिए थोक के भाव दवाइयां खिलाई जाती हैं, इंजेक्शन लगाए जाते हैं। अब सूक्ष्मजीव तो हर 10 मिनट में अपनी औलाद पैदा करता है इसलिए उनमें जेनेटिक विविधता भी भरपूर होती है और गाहे-बगाहे हर सूक्ष्मजीव दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता विकसित कर ही लेता है। इसलिए हमारी दवाइयां अक्सर कुछ समय असर दिखाने के बाद बेअसर साबित होने लगती हैं। इसलिए जब कोई सूक्ष्मजीव होस्ट जम्प करके हम तक पहुंचता है, तो अक्सर हमारे पास पहले से मौजूद दवाइयां उस जीव पर बेअसर होती हैं।
अब आपने मौजूद सारी दवाइयां तो जानवरों को पहले ही खिला दी, नयी दवाइयां सूक्ष्मजीवों के एवोल्यूशन के अनुसार उस रफ़्तार से पैदा हो नहीं रही। तरकश के जब सारे तीर ही खत्म तो युद्ध में शत्रु को निरीह भाव से निहारने के अलावा क्या किया जा सकता है? उस पर तुर्रा यह है कि आज पूरा विश्व ग्लोबल विलेज बन चुका है। जो जीव 2020 में चीन में पैदा हुआ, वो महज कुछ दिनों में एयर-कनेक्टिविटी की बदौलत सारे विश्व में पहुँच चुका था। मांस की बढती जरुरत, प्रतिरोधक दवाइयों का बेतहाशा इस्तेमाल और एयर-कनेक्टिविटी के मद्देनजर बहुत से वैज्ञानिकों का ऐसा अनुमान है कि बहुत जल्दी एक ऐसा अविनाशी सूक्ष्मजीव पैदा होगा, जिस पर हमारा कोई हथियार काम नहीं करेगा और उस जीव के हाथों इंसानों का सफाया हो जाए, यह मानवों के अंत की सबसे प्रबल आशंका है।
पशुओं से जनित रोगों का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना पशुपालन! पिछले 10 हजार वर्षों में पशुपालन से शुरू होकर आधुनिक कसाइखानों तक, जितना मनुष्य की मांसाहार की जरूरतें बढ़ी हैं, उतना ही जानवरों से संपर्क और उतनी ही बीमारियों की दर! और कोई बड़ी बात नहीं, एक न एक दिन यही मांसाहार की प्रवृत्ति मनुष्यता के अंत का कारण बने।
जंगल में एक जीव दूसरे का शिकार करता ही है, प्रकृति का यही चलन है। पर मनुष्य ने तो एक कदम आगे बढकर निरीह पशुओं को आजीवन बंदी ही बना दिया, जहाँ जन्म से लेकर मृत्यु तक पाशविक क्रूरता सहना ही उन पशुओं की नियति बन गयी। तिस पर भी, सिर्फ जिव्हास्वादन के लिए अरबों जानवरों का अनावश्यक वध कर, कभी ईश्वर तो कभी परम्परा के नाम पर नित्य नये ढोंग कर अपने पापकर्म को न्यायोचित ठहराने की धूर्तता भी दिखाता है।
जो कहे कि “पेट भरने को खाता हूँ” – वो कम से कम ईमानदारी बरतने के लिए ही प्रशंसनीय है।
जो अपनी परंपरा अथवा ईश्वर को प्रसन्न करने के नाम पर पशुओं का रक्त बहाता है, ईश्वर उसे एक न एक दिन जरूर दंड देगा
…… और दंड का निमित्त वही पशु बनेंगे, जिनका रक्त बहाने में मनुष्य ने पुण्य अर्जित करने का स्वांग किया है।
कहते हैं न… उसके घर देर है, अंधेर नहीं!!
अभी कुछ मित्र आ कर कहेंगे कि मांसाहार बंद हो गया तो जानवरों की संख्या भोत बढ़ जाएगी। अमा यार, थोड़ा जिगरा तो दिखाओ। महीने भर को मांसाहार बंद करो। इस बीच आपके घर पर आ कर किसी बकरी या मुर्गे ने कब्जा कर किया या घर से निकलते ही चहुं ओर आपको भेड़, बकरी, गाय, भैंस दिखाई दी तो मैं मान जाऊंगा कि बिना खाये इन जानवरों की संख्या बढ़ रही है। तब मैं आपसे व्यक्तिगत क्षमा मांगूंगा।
इस पोस्ट में परजीवी सूक्ष्मजीव से आशय बैक्टीरिया एंड वायरस से है। पोस्ट में उनका उल्लेख इसलिए नहीं किया क्योंकि कोरोना पश्चात ये शब्द फेसबुक द्वारा सेंसर कर दिये गए हैं।
पर ये नीच माँसभक्षी मानेंगे नहीं!
सुशोभित-
अगर जीवहत्या के निषेध के लिए यह तर्क दिया जाये कि अगर आप इसे बंद नहीं करोगे तो संक्रामक रोग फैल जाएँगे तो इसको भी मैं अनैतिक समझता हूँ। क्योंकि मनुष्य की हत्या पर प्रतिबंध के लिए तो ऐसा कोई तर्क नहीं दिया गया है, सीधे कहा गया है कि आप मनुष्य की हत्या नहीं कर सकते।
पर ये माँसभक्षी इतने नीच हैं कि इनको हत्या जैसे जघन्य कर्म से रोकने के लिए भी यह बहाना देना होगा कि अगर तुम इसे बंद न करोगे तो तुम्हें हानि होगी। और ये तब भी न मानेंगे। पूरी पृथ्वी नष्ट हो जायेगी पर इनसे इनका जीभ का स्वाद नहीं छूटेगा। करोड़ों वर्षों के एवोल्यूशन से पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ और ज्ञात ब्रह्मांड में कहीं जीवन नहीं है, उसको इन राक्षसों ने दाँव पर लगा दिया है।
एक स्वप्न है मेरा- पशु अपने माँस को किसी उद्विकास की युक्ति से विषाक्त कर लें। माँसभक्षी भोजन करके सोएँ। सुबह उलटियाँ करते हुए उठें। शाम तक समाप्त हो जावें। पृथ्वी उस दिन पापमुक्त हो जायेगी। माँसभक्षी को जीवित रहने का अधिकार नहीं है। ये नीच शुभस्य शीघ्रम मृत्यु को प्राप्त हों- मैं दीपक जलाऊँगा और उत्सव मनाऊँगा।
डरावनी पोस्ट है लेकिन चर्चित विषय है ये पोस्ट दौड़ लगाएगी ! हालांकि पोस्ट में व्यक्त आशांकाएँ निर्मूल है ; मेरा इनसे इत्तेफाक नहीं ! अब तक कितनी महामारियां माँसाहार जनित हैं ! कोविड 19 के लिए भी कोई प्रमाण नहीं मिला बताया ! हाँ उसके बहाने चाइना का लाइव प्रोटीन बाजार जरूर देख लिया सँसार ने ! जब कि उन जीवों में ओर मानव में तो समानताएं ढूंढे ना मिले ? ये ठीक है कि हाइजीन का अभाव महामारी का जनक हो सकता है ; ओर जीव जनक खाद्य को अधिक समय तक हाइजीनिक रखना खर्चीला है तो व्यापारी / खरीदार रु बचाने के लिए रिस्क ले लेते है ! बाकी बल्क में पाले जन्तु तो तनिक आशंका होने पे सामूहिक नष्ट करवा देती है सरकारें ! विजय सिंह ठकुराय ये कमेन्ट सिर्फ स्वस्थ चर्चा है ; मेरे विचारों में संशोधन की हमेशा गुंजाइश रख छोड़ता हूँ मैं डिअर. -कुमार अशोक शर्मा
सर, होस्ट जम्प के लिए प्रमाण की जरूरत नही, जैविकी की तुलना के आधार पर यह ऑलरेडी प्रमाणित है कि closed related species में किस तरह होस्ट जम्प होती है। कोरोना भी चमगादड़ो से आया जो हमारे तरह स्तनधारी जीव हैं। कितनी महामारियां मांसाहार जनित हैं इसकी मैं थोड़े प्रयास से आपको लिस्ट दे सकता हूँ, लगभग हर जानवर ने इतिहास में मनुष्यों को बीमारी प्रदान की है। आज तक होस्ट जम्प जनित जितनी भी बीमारियां हुई हैं उसमें मांसाहार का 100% रोल है। एक सड़ा हुआ केला खा लेने या सब्जी खा लेने से इतिहास में लोगों के पेट खराब हुए हैं पर कभी कोई महामारी नहीं फैली। होस्ट जम्प से संबंधित बीमारियों के इतिहास में शाकाहारियों और पशुओं से क्लोज कांटेक्ट न बनाने व्यक्तियों का योगदान लगभग नगण्य है। -विजय सिंह ठकुराय