Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

गर्व का क्षण : तीन सोना जीतने वाली दीपिका को उनके खिलाड़ी पति ने सबके सामने चूम लिया! देखें तस्वीरें

अशोक कुमार पांडेय-

अतानु दास और दीपिका कुमारी पति-पत्नी हैं. यह अब से कुछ घंटे पहले पेरिस में चल रही विश्व तीरंदाजी प्रतियोगिता के मिक्स्ड डबल्स में उनके गोल्ड मैडल जीतने के तुरन्त बाद की तस्वीर है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

जीत के तुरंत बाद पूछे गए एक सवाल के जवाब में अतानु ने कहा – “हम एक दूसरे के लिए बने हैं. इसी लिए हमने शादी की है. मैदान पर हम एक दम्पत्ति नहीं रह जाते. वहां हम प्रतिद्वंद्वी होते हैं. एक दूसरे को प्रेरणा देते हुए और साथ जीतते हुए.”

नौ साल पहले कुछ समय के लिए वर्ल्ड नंबर वन बन चुकीं दीपिका कुमारी ने अपने पति से एक कदम आगे जाकर कल के दिन अकेले कुल तीन गोल्ड मैडल जीते. ऐसा करने वाली वह पहली महिला हैं. इस उपलब्धि के नतीजे में यह बात तय हो गयी है कि अब से थोड़ी देर बार जारी होने वाली रैंकिंग में वे फिर से वर्ल्ड नंबर वन बन जाएंगी.

अगले महीने टोक्यो में होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिए क्वालीफाई कर सकने वाली वे इकलौती भारतीय तीरंदाज हैं.

रांची के नजदीक एक छोटे से गाँव में 1994 में जन्मी इस असाधारण चैम्पियन का यहाँ तक का सफ़र एक मिसाल है. ऑटो ड्राइवर शिवनारायण महातो और नर्स गीता महातो के संसाधनहीन घर में जन्मी दीपिका के इस सफ़र को युराज बहल और शाना लेवी बहल ने अपनी 2017 की डॉक्यूमेंट्री ‘लेडीज फर्स्ट’ का विषय बनाया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

उसके बारे में जानना हो तो इस फिल्म को देखिये, उसके वीडियो खोजिये, नेट खंगालिए. जान जाएं तो क्रिकेट और उसकी सुर्ख़ियों के मारे अपने मित्र-परिचितों को उसके बारे में बताइये. टोक्यो से सोने का तमगा ले कर आएगी तो शिकायत मत करना कि पहले क्यों नहीं बताया.


रंगनाथ सिंह-

Advertisement. Scroll to continue reading.

दीपिका ने जब से तीरंदाजी में तीन सोना जीता है तब से उनपर लिखना चाह रहा हूँ लेकिन संकोच हो रहा था। भारत में फैशन तो क्रिकेट-फुटबॉल पर लिखकर कूल दिखने का है लेकिन ठण्डे लोग मुझे अच्छे नहीं लगते। दूसरी तरफ सोने का बाजार भाव और भारतीय संस्कृति में तीर-धनुष का इतिहास मुझे बार-बार कुरेद रहे थे कि दीपिका पर लिखना बनता है।

जब टीवी देखकर गोबरपट्टी का नागरिक यूरो कप विशेषज्ञ बन सकता है तो मैं तीरंदाजी पर क्यों नहीं लिख सकता। मेरे पास तो तीरंदाजी का कई सालों का तजुर्बा है। जाहिर है कि हमारा तजुर्बा दीपिका की तरह सभ्य सुरक्षित वातानुकूलित तजुर्बा नहीं बल्कि वास्तविक जीवन के जोखिम और रोमांच वाला रहा है। याद रहे, असल जिन्दगी के खेल में सही निशाना लगाने पर स्वर्ण पदक मिले यह जरूरी नहीं है।

यूपी महिला आयोग के कुछ लोगों को लगता होगा कि दीपिका ने मोबाइल पर देखकर तीरंदाजी सीखी होगी। मुझे ऐसा नहीं लगता। मुझे लगता है कि यह विद्या दीपिका के सामूहित अचेतन का प्रतिफल है। धनुष विद्या का हमारा पुराना इतिहास रहा है। इतिहास में प्रवेश करना है तो निकट इतिहास से भीतर जाना उचित रहेगा। दीपिका उस क्षेत्र से आती हैं जहाँ अप्रतिम तीरंदाज बिरसा मुण्डा हुआ। बिरसा मुण्डा क्या निशाना लगाता था! जब तलवार-बंदूक वाले बड़े-बड़े मुगल-राजपूत अंग्रेजों के आगे दुम हिलाते थे तब बिरसा ने कहा, बेटा इधर दिख मत जाना, दिखे तो तीर मार दूँगा। बिरसा ने जो कहा वह कर दिखाया। ये अलग बात है कि सरकण्डे को कलम बनाकर पोथी काला करने वालों ने बिरसा के इतिहास पर स्याही पोतने का प्रयास किया इसलिए बिरसा के बारे में लोगों को देर से पता चला।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इतिहास में बहुत पीछे जाने पर एकलव्य की कथा मिलती है। एकलव्य तीरंदाजी में इतने तेज थे कि मिट्टी के मूर्ति को गुरु मानकर ऐसा तीर चलाना सीख लिया कि उनकी प्रतिभा देखकर असली गुरु द्रोण का कलेजा दहल गया कि मेरे अर्जुन का क्या होगा? द्रोण ने अर्जुन को प्रॉमिस किया था कि मेरी कोचिंग कर के तू दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर बनेगा। एकलव्य को देखते ही द्रोण को अहसास हो गया कि ओपन कम्पीटिशन हुआ तो एकलव्य तो अर्जुन को बीट कर देगा। द्रोण ने सोचा, न रहेगा बाँस न बाजेगी बाँसुरी और उन्होंने एकलव्य से ही एकलव्य का अँगूठा कटवा दिया। कुछ लोग कहते हैं कि तभी से कोचिंग वाले नॉन-कोचिंग वालों को मेरिट लिस्ट से निकालने के लिए ऐसे हथकण्डे अपनाते रहे हैं, कभी पेपर आउट करा दिया, कभी इटरव्यू में सेटिंग-गेटिंग करा दिया।

ध्यान रहे, अर्जुन भी शानदार धनुर्धर था। एकलव्य का अँगूठा काटने में उसका कोई रोल नहीं था। यह उसके गुरु का अहंकार था कि उनकी कोचिंग का चेला ही नम्बर वन बनेगा। एकलव्य, अर्जुन के अलावा शानदार धुनर्धरों की परम्परा में अपना कर्ण भी था। आज हम सब मानते हैं कि कर्ण बचपन से ही सामाजिक अन्याय का शिकार था। उसकी माँ ने शादी से पहले ही उसे जन्म दिया इसमें उसका कोई कसूर नहीं था। उसे रथ बनाने वाले सारथी ने पाला-पोसा तो इसमें उसका कोई कसूर नहीं था। खैर, धनुर्विद्या के प्रति उसका कमिटमेंट भी एकलव्य भाई जैसा ही था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कर्ण को पता था परशुराम गुरु सनकी हैं। क्षत्रिय जात का नाम सुनकर ही वह सनक जाते हैं। उन्होंने अपनी कोचिंग के साइनबोर्ड पर लिखवा दिया था- केवल ब्राह्मणों के लिए। फिर भी कर्ण ने शस्त्र सीखने के लिए रिस्क लिया। मनोयोग से सीखा। परशुराम भी उसकी प्रतिभा से प्रसन्न रहते थे। परशुराम गुरुओं की उस परम्परा से आते हैं जो कई बार शिष्य को तकिये के तरह इस्तेमाल करते हैं। कथा कहती है कि गुरु परशुराम बालक कर्ण के जाँघ को तकिया बनाकर सो रहे थे। तभी कर्ण की जाँघ पर खून पीने वाला कीड़ा चढ़ गया। बालक कर्ण दर्द से भर उठा लेकिन गुरु की नींद न टूट जाए इसलिए वह पीड़ा को सहते हुए गुरु का तकिया बना रहा। तभी गुरु की आँख खुली उन्होंने देखा कि कर्ण की जाँघ से रक्त प्रवाहित हो रहा है।

गुरु ने कर्ण के घाव के मरहम-पट्टी की चिन्ता की हो इसका जिक्र कथा में नहीं मिलता। यह दृश्य देखकर गुरु का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। गुरु को लगा कि इतनी पीड़ा कोई ब्राह्मण नहीं सह सकता। परशुराम जन्मआधारित वर्ण व्यवस्था में शायद गहरा यकीन रखते थे इसलिए उन्हें लगा कि इतनी पीड़ा सह गया इसका मतलब यह क्षत्रिय है! इसके बाद परशुराम ने वह किया जो आज के कोचिंग वाले भी नहीं करते। उन्होंने कर्ण को श्राप दे दिया कि तुम्हें जब सबसे ज्यादा जरूरत होगी तभी तुम मेरी सिखायी हुई शस्त्र विद्या भूल जाओगे!

Advertisement. Scroll to continue reading.

जरा कल्पना कीजिए कि आपकी कोचिंग वाले सर अगर ऐसा कह दें कि पेपर देखते ही तुम भूल जाओगे कि यहाँ क्या पढ़ाया गया था तो आपको कैसा लगेगा? वैसे, ज्यादातर मौकों पर ज्यादातर बच्चों के साथ यही होता है। कोचिंग क्लास का ज्ञान प्रश्न-पत्र की आँच पड़ते ही कपूर की तरह उड़ जाता है। कौन जाने परशुराम का श्राप किसी रूप में आज भी वर्क कर रहा हो! खैर, कर्ण भाई जिगरे वाले थे। गुरु की अवज्ञा न की। उन्हें पता था कि जब जान पर बन आएगी तब उनका धनुष-बाण उन्हें धोखा दे जाएगा फिर भी उन्होंने गुरु के खिलाफ एक शब्द न कहा। इस श्राप के साथ ही वह धनुष-बाण से महाभारत लड़े और मारे गये।

आपको पता ही होगा कि धनुर्विद्या के एक्सपर्ट गुरु परशुराम की कोचिंग से तीन ही प्रसिद्ध शिष्य निकले। भीष्म, द्रोण और कर्ण। भीष्म भी बहुत बड़े धनुर्धर थे। कथा कहती है कि द्रोण की गरीबी और प्रतिभा देखकर भीष्म उन्हें पाण्डवों-कौरवों के ट्यूशन पर रखवाया थे। कुछ लोग कह सकते हैं कि एक ही कोचिंग से निकलने वाले उसी जमाने से एक-दूसरे के ऐसे फेवर देते रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

खैर, भारत की धनुष कथा राम-लक्ष्मण के बिना पूरी हो जाए यह कथा के संग अन्याय होगा। आप सभी जानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे लोकप्रिय भगवान राम धनुर्धारी थे। आपको याद होगा, शिव धनुष तोड़ने को लेकर ही परशुराम जो बवाल काटे थे उसपर बाबा तुलसीदास ने रोचक वर्णन किया है। आप समझ ही गये होंगे, क्रान्ति और युद्ध के अलावा अपने यहाँ शादी-ब्याह में भी तीरंदाजी का काफी महत्व रहा है। दो महान धनुर्धरों राम और अर्जुन के ब्याह से जुड़े धनुष प्रसंग आज तक प्रसिद्ध हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता रही होगी इसलिए स्वभाविक रूप से दीपिका बहुत दबाव में रही होंगी लेकिन आप उस दबाव की कल्पना कीजिए जब ऊपर नहीं नीचे पानी में देखकर मछली की आँख में तीर मारना है और अगर चूके तो द्रौपदी हाथ से गयी! आप समझ रहे हैं न, द्रौपदी को पाने का एक ही चांस है। दीपिका को तो कई राउण्ड मिला होगा।

परदेस में हुए नए जमाने के मनोवैज्ञानिक कार्ल युंग मानते थे कि हम सबके मस्तिष्क के अन्दर एक सामूहिक अचेतन दबा होता है जिसमें कई पीढ़ियों का अनुभव एवं ज्ञान संचित होता है। मुझे लगता है कि तीर-धनुष हमारा वही सामूहिक अचेतन है। ये तो अंग्रेज हमें सांस्कृतिक गुलाम बनाकर क्रिकेट-फुटबॉल में लगा दिये। कभी कभी मैं सोचता हूँ कि जब तक मेरे मन-मस्तिष्क को स्कूल-कॉलेज की शिक्षा से कोलोनाइज्ड नहीं किया गया था तब तक मेरे ऊपर वही सामूहिक अचेतन हावी था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैं मानता हूँ कि दीपका हिरोइन हैं। उन्होंने विश्व स्तर पर बहुतों को पछाड़कर तीन सोना जीता है। मोबाइल यूज कर के बिगड़ रही महिलाओं के बीच से निकल कर दूर देश में सोना जीतना बहुत बड़ी बात है लेकिन। लेकिन, दीपिका भी मानेंगी कि उनकी तीरंदाजी में वह जोखिम नहीं है बिरसा, एकलव्य, कर्ण या मेरे तीरंदाजी करियर में रहा है।

आप लोग कहेंगे कि बिरसा, एकलव्य और कर्ण जैसे महान चरित्रों की लाइन में मैं कैसे घुस गया। आप आगे पढ़ेंगे तो माने लेंगे कि मेरे पास इसका ठोस कारण है। तीर-धनुष के साथ मेरे संघर्ष की कथा किसी वेदव्यास या वाल्मीकि ने नहीं लिखी, इतना ही फर्क है। एक जमाना था जब मैं सुबह सुबह अपना बाँस का धनुष और सनई का तीर लेकर लक्ष्य की तलाश में निकल पड़ता था। हमारा समाज इतना पाखण्डी है कि वो हर हफ्ते रामायण देखकर राम जी की जय तो बोल सकता है लेकिन एक उभरते हुए धनुर्धर को तीर रखने के लिए कमान नहीं उपलब्ध करा सकता इसलिए मुझे अपने तीर शर्ट के पीछे रखने पड़ते थे। खैर, भारतीय खिलाड़ियों का बेसिक इक्विपमेंट के लिए संघर्ष तो पुराना है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आप सब यह मानेंगे कि जब कोई पाँच-सात साल का धनुर्धर बाँस का धनुष कन्धे पर लटकाकर सनई के तीर अपनी शर्ट के पीछे डालकर घर से निकलता है तो वह धनुर्विद्या विरोधी समाज से बगावत कर रहा होता है। समाज के कोलोनाइज्ड बुजुर्ग चाहते हैं कि लड़के को खेलना है तो क्रिकेट-फुटबॉल खेले। दूसरी तरफ बालक का सामूहिक अचेतन उसे तीर-धनुष की तरफ धकेलता है। हमारे समाज ने जितना महिलाओं को दमन किया है उतना ही उसने धनुर्विद्या का किया है।

दीपिका खुशनसीब हैं कि उन्हें लक्ष्य भेदने के लिए सोना मिलता है। हमने तो जब जब लक्ष्य भेदा तो धनुर्विद्या विरोधियों का शोरशराबा स्यापा ही सुनने को मिला है कि अरे इसने यहाँ निशाना लगा दिया, वहाँ निशाना लगा दिया। अर्जुन भाई ने मछली की आँख में क्या तीर मारा, कलियुगी पड़ोसी किसी तरुण धनुर्धर के हाथों में धनुष-बाण देखते ही चिल्लाने लगते हैं कि अरे ये किसी की आँख फोड़ देगा!

Advertisement. Scroll to continue reading.

द्रोण और परशुराम के आधुनिक संस्करणों ने सही निशाना लगाने के कारण कई बार बालक निशानेबाज के नाजुक गालों पर थप्पड़ रसीद कर दिया लेकिन वह बहादुर तीरंदाज, अगली सुबह फिर अपना बांस का धनुष और सनई का तीर लेकर लक्ष्य भेदने निकल पड़ता था। कभी किसी की आँख नहीं फूटी लेकिन ये बालक की तीरंदाजी की प्रतिभा किसी को फूटी आँख नहीं सुहाई। खैर, दुख ही जीवन की कथा रही क्या कहूँ आज जो नहीं कही। और अब तो ऑफिस का टाइम हो गया है।

आखिर में इतना ही कहना है कि आज दिल खुशी से लबालब है। दीपिका की उपलब्धि से हमारे धनुष प्रेमी पुरखों की आत्मा जुड़ा गयी होगी। दीपिका को तहे दिल से हार्दिक बधाई!

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement